ठंड में बेघर लोग कहां जायें?

दिसंबर के आखिरी हफ्ते में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। दिल्ली एनसीआर में शीत लहर चल रही है और पारा 6 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया है। इस कड़कड़ाती ठंड में जब घरों के अंदर रजाई-कंबल में भी रहना मुश्किल हो रहा है ऐसे में खुले आसमान के नीचे रहकर गुजर-बसर करना कितना दुश्वार होगा, इसका एहसास किया जा सकता है। दिल्ली में लाखों की संख्या में बेघर लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। इस कड़कड़ाती ठंड में रहने के लिए मजबूर यह वह लोग हैं जो दिहाड़ी में या कुछ ना कुछ काम कर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। जिनके पास मेहनत-मजदूरी करने के बाद इतना भी नहीं बचता कि वह किराए का मकान लेकर रह सकें। ऐसे में उन्हें दिल्ली में बने फ्लाईओवर, बस स्टैंड, पार्क, फुटपाथ आदि में सोने को मजबूर होना पड़ता है। इसके अलावा दिल्ली एम्स के साथ-साथ कई बड़े अस्पताल हैं और दिल्ली के आस-पास यहां तक कि बिहार, उड़ीसा, राजस्थान आदि स्थानों से हजारों लोग इलाज कराने के लिए आते है और जब उन्हें कुछ दिनों के बाद दोबारा दिखाने के लिए बुलाया जाता है तो उनके पास इतना किराया-भाड़ा नहीं होता कि वह वापस जाकर दोबारा आएं और ना ही इतना पैसा होता है कि वह आस-पास कहीं किराए पर रह सकें। अस्पताल प्रशासन और सरकार द्वारा उनके लिए रहने की कोई उचित व्यवस्था व्यवस्था नहीं होती। ऐसे में उन्हें अस्पताल परिसर के बाहर खुले में रहने को मजबूर होना पड़ता है।

वैसे तो दिल्ली में लगभग 200 के करीब रैन बसेरे हैं जिसमें लगभग 30,000 के करीब लोग सो सकते हैं पर इन रैन बसेरों में भी मूलभूत सुविधाओं और असामाजिक और अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की वजह से लोग वहां पर जाना पसंद नहीं करते। इन्हीं लोगों में से इतनी कड़कड़ाती ठंड के कारण कई लोग बीमार पड़ जाते हैं। यहां तक कि उनकी मृत्यु हो जाती है।

बड़े-बड़े वादे करने वाली सरकारों की प्राथमिकता में यह बेघर लोग नहीं आते क्योंकि यह इनका वोट बैंक नहीं होते। आज जब वोट बैंक की ही राजनीति हावी हो चुकी है ऐसे में इन बेघर लोगों की सुध कौन ले। ऐसे में इन मजदूरों-मेहनतकशों को एक बेहतर व्यवस्था के लिए संगठित होकर संघर्ष करना होगा तभी उन्हें एक बेहतर जिंदगी मिल सकेगी। -हरीश, दिल्ली

आलेख

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भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

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युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

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हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

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अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।