‘इंस्टा मेड्स’ यानी त्वरित शोषण

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अर्बन कम्पनी ने ‘इंस्टा मेड्स’ या ‘इंस्टा हेल्प’ नाम से नई सेवा शुरू की है। इसके तहत ग्राहक को घरेलू काम मसलन बर्तन साफ करने, खाना पकाने, झाडू लगवाने आदि कामों के लिए एक फोन काल पर 15 मिनट के लिए नौकरानी मुहैय्या हो जायेगी। मुंबई में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू हुई इस सेवा की कीमत 49 रु. प्रति घण्टा रखी गयी है। भविष्य में इसे अन्य बड़े शहरों में विस्तारित करने की योजना है। 
    
जिस तरह कोई ओला-उबेर कार बुक करता है या अपने लिए आन लाइन खाना मंगवाता है, उसी तरह वह अब कुछ देर के लिए घरेलू नौकर का आनलाइन आर्डर दे सकता है। 
    
आनलाइन क्षेत्र में लगी तमाम गिग मजदूरों की यूनियनों ने इस नयी सेवा पर अपनी आपत्तियां दर्ज की हैं। नयी सेवा जहां स्थायी घरेलू नौकर-नौकरानियों पर दबाव बढ़ाने का काम करेगी वहीं सेवा देने वाले श्रमिकों को अधिक दबाव व उच्च जोखिम वाले वातावरण मे काम करने को मजबूर करेगी। यह नया माडल आधुनिक दासता का सूचक है जो घरेलू कामगारों को त्वरित वाणिज्य माडल के तहत वस्तु में तब्दील कर रहा है। 
    
अर्बन कम्पनी पहले भी बाल कटवाने, नर्सिंग सरीखी सेवायें देती रही है और मजदूरों के क्रूर शोषण के लिए बदनाम रही है। अब ‘इंस्टा मेड्स’ सेवा के जरिये घरेलू कामगारों के पहले से हो रहे शोषण को और बढ़ाने का उपाय किया जा रहा है। 
    
यह परिघटना अपने आप में पूंजीवाद के आम चरित्र को दर्शाती है कि वह हर वस्तु सेवा को माल बनाने पर उतारू होता है। यह मानव श्रम को डिस्पोजेबल एप फीचर में बदल देता है। एक ओर कम्पनी सेवा प्रदाता श्रमिक को मिलने वाले भुगतान का एक हिस्सा अपने कमीशन के बतौर काट लेती है, वहीं श्रमिक की किसी भी तरह की रोजगार सुरक्षा, दुर्घटना सुरक्षा आदि से कम्पनी बच जाती है। आनलाइन रोजगार इस तरह नये गुलाम बनाने की ओर ले जा रहे हैं। 

आलेख

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भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

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युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

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हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

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अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।