सुनो न्यायाधीश

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आप लोहे की कार का आनंद लेते हैं 
मेरे पास लोहे की बंदूक है।
मैंने लोहा खाया है 
तुम लोहे की बात करते हो।
    
सुनो न्यायाधीश! पाश के शब्द जो तुम्हें परिभाषित करते हैं। तुम्हें वह दिन याद ही होगा जब तुम्हारे ही वंश के लोग राजस्थान में न्याय की परिभाषा गढ़ रहे थे और भंवरी देवी को न्याय देते समय अपनी मुर्दा सोच का परिचय दे रहे थे। अपनी सवर्ण, सामंती घृणास्पद मानसिकता का परिचय कुछ यूं था कि जब सवर्ण किसी दलित जाति के व्यक्ति को छूना भी पाप समझते हैं तो कैसे वो तुम्हारे साथ दुष्कर्म कर सकते हैं। महान सभ्यता, और उसकी न्याय संहिता जीत जाती है और आरोपी दोषमुक्त करार दे दिए जाते हैं।
    
सुनो! तुम्हारी वंश की एक महिला न्यायाधीश ने फरवरी 2022 में फैसला दिया और एक आरोपी को यह कहकर दोषमुक्त कर दिया कि जब तक पुरुष का निजी अंग किसी महिला के निजी अंग के संपर्क में नहीं आता तब तक यह कृत्य दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं आता। और अभी तुम्हारे ही वंश के एक कुपुत्र जिसका नाम राम मनोहर नारायण मिश्रा है और जो इलाहाबाद के न्याय सिंहासन पर बैठा हुआ है, अपनी घृणित मानसिकता का परिचय देते हुए फैसला देता है।
    
उसके मुंह से शब्द नहीं पीव की धारा फूटती है जो न्याय की परिभाषा गढ़ते हुए कहती है कि किसी लड़की के स्तनों को छूना, नाड़ा तोड़ना, उसे खींचकर पुलिया के नीचे ले जाना दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता। हमने बिल्किस बानो से लेकर सैकड़ों मामलों में तुम्हें न्याय की परिभाषा गढ़ते हुए देखा है जब तुम्हारे बदबूदार, सड़ांध से बजबजाती हुई जबान से न्याय की परिभाषा में गढ़े हुए शब्द निकलते हैं।
    
जब एक सामान्य संतुलित विवेक सम्मत इंसान अपने शब्दों में तुम्हारे ऊपर लानतें भेज रहा है। तुम्हारे विवेक, तुम्हारे ज्ञान को तिरस्कार और घृणा से देख रहा है ठीक उसी समय हमारा दायित्वबोध, हमारी कलम भी तुम्हें कुछ उपहार देना चाहती है। हमारा दायित्वबोध हमें तुम्हारी पैदाइश और तुम्हारे इस न्याय सिंहासन के ऊपर सोचने के लिए विवश करता है कि हमारी कलम चाहती है कि वह ऐसा कुछ लिखे कि तुम्हारी नग्नता, तुम्हारी कलुषता, सभ्यता का नकाब पहने तुम्हारे जैसे तथाकथित सभ्य सफेदपोश लोग बेपर्दा हो जाएं और मवाद से भरा तुम्हारा शरीर देखकर एक मेहनतकश का सिर्फ एक ही जवाब हो। आक्क....थू।
    
सुनो न्यायाधीश! तुममें और हमारे कंपनी के एच आर में एक समानता है। वह जब भी मालिक के घर की महिलाओं को देखता है तब उनके सामने नतमस्तक हो जाता है। उन महिलाओं-लड़कियों को सम्मान और आदर से देखता है। उनके ऊपर नजर उठाकर देखने की उसकी औकात नहीं है। उन संभ्रांत स्त्रियों की रक्षा वह एक वफादार कुत्ते की तरह करता है। लेकिन कंपनी में काम करने वाली महिलाओं को वह अपनी बपौती समझता है। अपनी यौन कुंठाओं को पूरा करने के बारे में हरदम सोचता है और जब भी महिला उत्पीड़न का मामला आता है तब अपनी कुंठित मानसिकता से ही न्याय की परिभाषा गढ़ता है।
    
सुनो न्यायाधीश! तुम और तुम्हारे नाते रिश्तेदारों का जन्म इतिहास के उस दौर में हुआ जब उत्पादन करने वाले कृषक श्रमजीवियों को जमीन से बेदखल करना शुरू हुआ था। अब तुम्हारा काम बस इतना रह गया था कि अपने राजा के कुकृत्य पर पर्दा डाल, उसकी अय्याशी और लूट को न्यायसंगत कहे। जमीन के अधिग्रहण को न्याय संगत, दैवीय कृत्य घोषित कर दिया गया। न्याय शास्त्र की, न्याय संहिताओं की पोथियां लिखी गईं और तुम्हारा काम इसे न्याय संगत ठहराना था। तुम पीढ़ी दर पीढ़ी इस घृणित परंपरा में बराबर के भागीदार थे। तुम और कुछ नहीं परजीवी संपत्तिशाली, शासक वर्ग की बीट थे।
    
आजादी से पहले तुम्हारे पूर्वज उस पालतू पशु की तरह थे और अपने मालिक, उस ब्रिटिश हुक्मरान के ज़रखरीद गुलाम थे जो हर उस न्यायपसंद इंसान पर भौंकते, काटते थे जिन्होंने बहुसंख्यक के हितों के लिए आवाज उठाई। तुमने सैकड़ों हत्याकांडों को कानूनी जामा पहनाया। लेकिन तुम इतिहास का एक बहुमूल्य सबक भूल गए कि मेहनतकश जनता ही इतिहास की निर्माता होती है।
    
तुमने जिस ब्रिटिश हुक्मरानों को अपराजेय समझा वो मेहनतकशों के आगे बौना निकला, भगोड़ा निकला। वो मेहनतकशों के प्रचंड वेग के आगे भस्म हो गया। लेकिन उसके आगे एक विडंबना रही। अभी उसे तुम्हारी न्याय संहिताओं को, तुम्हारे न्याय सिंहासन को भस्म करना बाकी था। कि वह भेड़ की खाल ओढ़े खूनी भेड़ियों को पहचान न सका। कि दोस्ती का लबादा ओढ़े जिस भेड़िये को अपना रहबर समझने की गलतफहमी में था वो दरअसल खूंखार खूनी रहजन था। शातिर हुक्मरान का सिर्फ रूप बदला आत्मा वही रक्तरंजित थी। और तुम भी उसी के दरबार में जी हुजूरी में नतमस्तक थे।
    
सुनो न्यायाधीश! जूठन खाकर तुम शासन तंत्र के वफादार हो चुके हो। जो न्याय मांगने वालों को हिकारत, तुच्छता और घृणा से देखता है। तुम्हारा विवेक कुंठित हो चुका है, तुम अशुद्ध हो चुके हो। तुम्हारी न्याय की परिभाषा मेहनतकशों के हितों से बेमेल है। तुम्हारी न्याय की परिभाषा घृणित है। तुम्हारा चेहरा सत्ता के आगे याचना का बिम्ब है। निःसंदेह देश के मेहनतकशों के लिए तुम घृणा और तिरस्कार के पात्र हो और हम तुम्हें लानत भेजते हैं।
    
सुनो न्यायाधीश! एक क्रांतिकारी कवि ने जब तुम्हारे न्याय को परिभाषित किया था तो कहा था कि मेरे देश का कानून सिक्के का बना है जो सिर्फ आग से ही ढल सकता है। जल्द ही वह समय आने वाला है जब देश का भाग्य बनाने निकले करोड़ों मेहनतकशों के समूहगान से तुम्हारे कपटी हृदय में कंपन पैदा होगी। वो तुम्हारे न्याय सिंहासन को इतिहास के कूड़े के ढेर में फेंक देंगे। तुम्हारी न्याय संहिताओं के रक्त सने पन्ने उस कूड़े के ढेर में आग लगाने के काम आयेंगे। तुम्हारे न्याय के फतवे पर कालिखें पोती जाएंगी। कि जल्द ही तुम्हारी न्याय प्रणाली और उसे जन्म देने वाली अन्याय और मुनाफे, लूट पर टिकी शोषणकारी व्यवस्था को दफ्न कर दिया जाएगा और एक वास्तविक स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे पर टिकी हुई नई न्याय प्रणाली का सृजन किया जाएगा।
    
अंत में कविता का एक हिस्सा सुनते जाएं...

लोहा जब पिघलता है तब भाप नहीं उठती
जब कुठाली उठाने वाले दिलों से भाप निकलती है,
तब लोहा पिघल जाता है।
आप इस लोहे की चमक में चौंधियाकर,
अपनी बेटी को अपनी बीवी समझ सकते हैं।
लेकिन मैं लोहे की आंख से,
दोस्तों का मुखौटा पहने
दुश्मनों को भी पहचान सकता हूं।
क्योंकि मैंने लोहा खाया है 
और आप लोहे की बात करते हो
           -एक पाठक, काशीपुर

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