साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ हल्द्वानी बुद्धपार्क में जनसम्मेलन

हल्द्वानी/ बनभूलपुरा की दुर्भावनापूर्ण घटना के बाद बिगड़ी कानून व्यवस्था व जनता का पुलिसिया उत्पीड़न बंद करने व शान्ति पूर्ण माहौल बनाने के लिए राज्य के सामाजिक-राजनीतिक संगठन लगातार सरकार से अनुरोध कर रहे हैं। लेकिन अभी भी पुलिस प्रशासन द्वारा भयमुक्त वातावरण बनाकर जनता को राहत, रिपोर्टिंग का अधिकार, घायलों को समुचित उपचार की सुविधा उपलब्ध नहीं करायी जा रही है। इन्हीं मांगों को लेकर 12 फरवरी को हल्द्वानी के बुद्ध पार्क में एक जनसम्मेलन आयोजित किया गया।
    
जनसम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि, भाजपा की मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही साम्प्रदायिक विभाजन लगातार तेज होता जा रहा है। बनभूलपुरा कोई अलग-थलग घटना नहीं बल्कि भाजपा के फासीवादी प्रोजेक्ट का विस्तार है जिसको राज्य के मुख्यमंत्री धामी ने लैंड जेहाद जैसा असंवैधानिक और सांप्रदायिक नाम दिया था। इसलिए आगामी लोकसभा चुनाव में इस सरकार की विदाई के लिए सभी को एकजुट होकर काम करने की जरूरत है।
    
जन सम्मेलन से मांग की गई कि, बनभूलपुरा हिंसा के बाद रोजगार छिन गए, घायल, गिरफ्तार लोगों के परिजनों की कानूनी मदद प्रशासन स्वयं करे और किसी भी किस्म की मदद करने जा रहे लोगों को प्रताड़ित करना बंद किया जाय।
    
सम्मेलन से केंद्र की मोदी सरकार से सीएए-एनआरसी को वापस लेने की मांग का प्रस्ताव पारित किया गया।
    
कौमी एकता मंच के घटक विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक जनसंगठनों के कार्यकर्ता व सर्व सेवा से जुड़े सम्मानित गांधीवादी नेताओं ने कार्यक्रम में भागीदारी की। 
    
गौरतलब है कि 8 जनवरी को हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में पुलिस व नगर निगम कर्मी मनमाने तरीके से अतिक्रमण के नाम पर एक मस्जिद-मदरसा ढहाने पहुंच गये। जबकि यह मामला अभी उच्च न्यायालय नैनीताल में लंबित था। पुलिस की इस कार्यवाही के खिलाफ जब स्थानीय लोगों ने प्रतिकार किया तो पुलिस ने तत्काल लाठीचार्ज व फायरिंग शुरू कर दी। इससे आक्रोशित भीड़ भी हिंसक हो उठी। पुलिस फायरिंग में 6 लोग मारे गये। कई स्थानीय निवासी व पुलिसकर्मी भी घायल हुए। इसके बाद मुस्लिम बाहुल्य इस इलाके में अगले 10 दिन तक कर्फ्यू लगा जहां लोगों की रोजी-रोटी छीन ली गयी वहीं पुलिस ने बदले की कार्यवाही करते हुए सैकड़ों घरों में तोड़फोड़, महिलाओं-बच्चों-पुरुषों की पिटाई के साथ लगभग 100 लोग गिरफ्तार कर लिये। पुलिस की इस दमनात्मक कार्यवाही को प्रदेश के मुखिया से लेकर प्रशासन तक जायज ठहराने में जुटे रहे। 
    
मौके को भुनाने में सक्रिय हिन्दू साम्प्रदायिक तत्व जगह-जगह माहौल का इस्तेमाल कर मुस्लिम किरायेदारों-दुकानदारों पर मकान खाली करने का दबाव बनाने लगे। साम्प्रदायिक वैमनस्य फैला दरअसल भाजपा सरकार आगामी लोकसभा चुनाव में लाभ उठाने को उत्सुक थी। 
    
इस साम्प्रदायिक माहौल के खिलाफ शांति व भाईचारा कायम करने के उद्देश्य से व हिंसा पीड़ितों की मदद हेतु विभिन्न जनसंगठनों ने कौमी एकता मंच का गठन किया। पर हिन्दू फासीवादी ताकतों के इशारे पर सक्रिय स्थानीय जिला प्रशासन इन जनसंगठन कार्यकर्ताओं को भी डराने-धमकाने से बाज नहीं आया। घटना की जांच को आयी विदेशी पत्रकार की मदद के लिए प्रशासन ने मंच के कार्यकर्ताओं को धमकाने का काम किया तो साथ ही उनके द्वारा घटना की जांच में भी रुकावटें पैदा कीं। प्रशासन की ये हरकतें साफ इशारा कर रही थीं कि हल्द्वानी हिंसा में प्रशासन पूरी तरह संलिप्त है। 
    
कौमी एकता मंच के तत्वाधान में आयोजित जन सम्मेलन में सर्व सेवा संघ, उत्तराखंड सर्वोदय मंडल, भाकपा-माले, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, इंकलाबी मजदूर केंद्र, एक्टू, भीम आर्मी, भारत एकता मिशन, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, किसान महासभा, समाजवादी लोक मंच, मजदूर सहयोग केंद्र, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा, उत्तराखंड महिला मंच, जनवादी लोक मंच, क्रांतिकारी किसान मंच, सद्भावना समिति, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, महिला किसान अधिकार मंच आदि संगठन शामिल रहे।     -हल्द्वानी संवाददाता

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता