संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर मऊ कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन व जनसभा

9 अगस्त को संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रीय समन्वय समिति ने विभिन्न मांगों को लेकर राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन का आह्वान किया था। इसे क्रियान्वित करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा मऊ के घटक संगठनों ने कलेक्ट्रेट पर साझा प्रदर्शन व जनसभा की। प्रदर्शन में इंकलाबी मजदूर केन्द्र व क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, भाकपा (माले), अखिल भारतीय किसान फेडरेशन, उत्तर प्रदेश खेत मजदूर सभा, उत्तर प्रदेश किसान सभा, एस.यू.सी.आई.(सी), किसान संग्राम समिति, साम्राज्यवाद विरोधी जनवादी मंच व राष्ट्रवादी जनवादी मंच ने भागीदारी की। जनसभा को इंकलाबी मजदूर केन्द्र के रामजी सिंह, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के सिकन्दर, भाकपा माले के जयप्रकाश ‘धूमकेतु’, रामनवल सिंह, अखिल भारतीय किसान फेडरेशन के अनुभव दास, उत्तर प्रदेश खेत मजदूर सभा के विरेन्द्र कुमार, एस.यू.सी.आई.(सी.) के डा. त्रिभुवन, किसान संग्राम समिति के राम प्रसाद, साम्राज्यवाद विरोधी जनवादी मंच के बाबूराम पाल ने सम्बोधित किया। सभा को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि मौजूदा सरकार किसान विरोधी, मजदूर विरोधी, जनविरोधी नीतियां बनाने और उन्हें लागू करने में जुटी है। कारपोरेट को मनमानी लूट-खसोट का मौका देते हुए बीजेपी सरकार फासीवादी एजेंडा लागू कर रही है। साम्राज्यवादी देशों के साथ मिलकर आम जनता पर अत्याचार बढ़ाती जा रही है। लाल झंडे की ताकतें, मजदूर-मेहनतकश, अल्पसंख्यक दलित व महिलाएं इस फासीवादी सरकार के निशाने पर हैं। 
    
वक्ताओं ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा ने ‘‘कारपोरेट लुटेरों को भगाओ, देश बचाओ’’ का नारा देकर राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया है और साबित किया है कि संयुक्त किसान मोर्चा का नेतृत्व राजनीतिक चेतना की दृष्टि से विकास कर रहा है। किसानों-मजदूरों और आम जनता की व्यापक एकता बनाकर ही कारपोरेट लुटेरों और फासीवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़कर जीती जा सकती है। मणिपुर हिंसा और हरियाणा के साम्प्रदायिक दंगे की तीखी आलोचना सभा में की गयी। सभा का संचालन इंकलाबी मजदूर केन्द्र के राम जी सिंह ने किया। 
    
प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति को सम्बोधित निम्न मांगों वाला मांगपत्र जिलाधिकारी के प्रतिनिधि को सौंपा गया- 

1. गारंटीकृत खरीद की व्यवस्था के साथ सभी फसलों के लिए ब्2़50ः की दर से लाभकारी एमएसपी के लिए कानून लागू किया जाये। एमएसपी कानून बनाने के लिए स्पष्ट संदर्भ की शर्तों के साथ एसकेएम के प्रतिनिधियों को शामिल करके किसानों के उचित प्रतिनिधित्व के साथ एमएसपी पर समिति का पुनर्गठन किया जाए। 

2. सरकार की नीतियों और लापरवाही के कारण ऋणग्रस्तता के जाल में फंसी सभी कृषक परिवारों के लिए माइक्रोफाइनेंस व निजी ऋण सहित सभी प्रकार के कर्ज से मुक्ति के लिए व्यापक ऋण मुक्ति योजना लागू की जाए। 

3. बिजली संशोधन विधेयक 2022 को वापस लिया जाए। और यह सुनिश्चित किया जाए कि बिजली कनेक्शन न काटा जाए। प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 300 यूनिट मुफ्त बिजली प्रदान की जाए। पानी पम्पों के लिए मुफ्त बिजली प्रदान की जाए। और कोई प्रीपेड मीटर न लगाया जाये। 

4. लखीमपुर खीरी में पत्रकार और किसानों के नरसंहार के मुख्य साजिशकर्ता केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी को बर्खास्त किया जाए। और उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जाये। 

5. लखीमपुर खीरी में जेल में बंद किसानों पर दर्ज फर्जी मुकदमे वापस लिये जायें और उन्हें रिहा किया जाए।

6. ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान भाजपा शासित राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों सहित सभी राज्यों में किसानों के खिलाफ सारे लम्बित मामलों को वापस लिया जाए। 

7. ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए सभी किसान परिवारों को मुआवजा दिया जाए। और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाए। 

8. ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए सभी किसानों के लिए सिंघु बार्डर पर भूमि आवंटित कर एक स्मारक का निर्माण किया जाए।

9. कारपोरेट समर्थक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को वापस लिया जाए। और जलवायु परिवर्तन, बाढ़-सूखा, फसल सम्बन्धी बीमारियों आदि के कारण किसानों को होने वाले नुकसान आदि की भरपाई के लिए सभी फसलों के लिए एक व्यापक फसल बीमा योजना लागू की जाए। 

10. सभी मध्यम, लघु व सीमान्त पुरुष और महिला किसानों और कृषि श्रमिकों के लिए प्रति माह 10,000 रु. की किसान पेंशन योजना लागू की जाए।             -मऊ संवाददाता

आलेख

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।