
उ.प्र. पॉवर कारपोरेशन में संविदा/निविदा कर्मचारी बहुत ही अमानवीय परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं। इन्हें बहुत ही कम वेतन पर काम करने को मजबूर किया जाता है। इनका वेतन न्यूनतम वेतन से भी कम है। इन्हें कोई भी सुविधा नहीं दी जाती है। ठेका कंपनियां इनके वेतन से लेकर पी.एफ. का पैसा तक हजम कर जाती हैं। इनसे क्षमताओं से ज्यादा काम लिया जाता है। काम के दौरान इस्तेमाल होने वाले सुरक्षा उपकरण भी मुहैय्या नहीं कराए जाते हैं जिस कारण आए दिन कर्मचारी दुर्घटनाओं का शिकार होते रहते हैं। कई बार इन दुर्घटनाओं से इनकी मृत्यु भी हो जाती है। विभागीय अधिकारी से लेकर ठेका कम्पनियों के मालिक कर्मचारियों की इन समस्याओं पर मौन साधे रहते हैं। कर्मचारियों द्वारा आवाज उठाए जाने पर इन्हें धमकी दी जाती है। कई बार अधिकारियों द्वारा मारपीट तथा काम से निकाल दिये जाने की घटनाएं भी होती रहती हैं।
इन संविदाकर्मियों में लाइनमैन तथा उपकेन्द्र संचालक होते हैं। इन्हें खंभों पर, फीडरों पर तथा ट्रासफार्मरों पर तथा सड़क किनारे लगे वितरण बाक्सों पर काम करना पड़ता है। काम करने के दौरान अक्सर करंट लगने, जलने, खम्भे से गिरने आदि की घटनाएं होती रहती हैं। घटना के बाद घायल कर्मचारी के इलाज और देखभाल की कोई सुविधा विभाग या ठेका कंपनियों द्वारा नहीं दी जाती। कर्मचारी स्वयं जीवन के लिए संघर्ष करता रहता है। उसका गरीब परिवार भी इस अवस्था में तबाह हो जाता है।
19 जनवरी को विद्युत उपकेन्द्र इस्लामनगर पर संविदाकर्मी अल्हामैहर लभारी फीडर पर लाइन ठीक करते समय झुलसकर खंभे पर लटक गया इन्हें इलाज के लिए बरेली व मुरादाबाद ले जाया गया। इलाज व पैसे के अभाव में इनकी मृत्यु हो गयी। इसी तरह, सहसवान उपकेन्द्र पर 33 केवीए लाइन पर फ्यूज जल गया। फ्यूज जोड़ते समय उपकेन्द्र परिचालक (ैव्) अनिल कुमार करंट से झुलसकर नीचे आकर गिरे। इन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। विद्युत आपूर्ति बंद होने के बाद भी करंट आना लचर सिस्टम को ही दिखाता है। इस तरह तमाम लोग या तो दम तोड़ देते हैं या फिर जीवन भर के लिए अपंग हो जाते हैं। ऐसे में इनके परिवार की भी स्थिति खराब हो जाती है।
इन सब मामलों को लेकर उ.प्र. पॉवर कारपोरेशन निविदा/संविदा कर्मचारी संघ लंबे समय से संघर्षरत है। संघ सुरक्षा उपकरणों की लगातार मांग कर रहा है। इनके लिए संघ स्थानीय स्तर से लेकर लखनऊ मुख्यालय तक मांगों को उठा रहा है। संघ के पदाधिकारी विभागीय अधिकारियों से लेकर मंत्री/मुख्यमंत्री तक आवाज उठा रहे हैं। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। हालात यह हैं कि हर समय कहीं न कहीं आंदोलन चल रहा होता है। लेकिन यह अमानवीय व्यवस्था गूंगी/बहरी बनी रहती है। उल्टे संघर्ष करने पर कर्मचारियों को दमन का शिकार होना पड़ता है।
इस अमानवीय/दमनकारी व्यवस्था जो लोगों को मौतें व अपंगता दे रही है। यह जीवन देने में अक्षम है। इसलिए इस व्यवस्था और ठेका/संविदा/निविदा के खिलाफ निर्णायक संघर्ष करने की जरूरत है। तभी कुछ हासिल कर पाएंगे। -बदायूं संवाददाता