
तमिलनाडु में राजकीय स्वामित्व वाली ऊर्जा क्षेत्र की कम्पनी टांगेडको में पिछले 9 महीनों (अप्रैल-दिसंबर 2023-24) में मरने वाले मजदूरों की संख्या 40 हो गयी है। 2022-23 में यह संख्या 25 थी। इसके अलावा 487 अन्य लोग भी इस दौरान मारे गये हैं।
आंकड़े ये दिखाते हैं कि 2021-22 के पहले 9 महीनों में 978 दुर्घटनाएं (741 घातक) हुईं। 2022-23 में इसी दौरान 1065 दुर्घटनाएं (809 घातक) हुईं। और 2023-24 में इसी दौरान 1152 दुर्घटनाएं (868 घातक) हुईं। ये आंकड़े साफ दिखाते हैं कि किस तरह कम्पनी में मरने वाले मजदूरों की संख्या बढ़ती जा रही है।
मरने वाले इन मजदूरों की मौत की वजह काम का अत्यधिक दबाव, काम करने की उचित ट्रेनिंग की कमी और रिक्त पदों में बढ़ोत्तरी होना है। लेकिन अधिकारी इन मौतों के लिए कर्मचारियों के द्वारा काम करने के दौरान प्रोटोकाल का पालन न करना और उनके द्वारा सुरक्षा उपकरणों का काम के दौरान प्रयोग न करना बताते रहे हैं।
लेकिन आंकड़े सच जाहिर कर देते हैं। वायरमैन और हेल्पर बिजली आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इनके 35,000 पद खाली हैं। और इनका काम गैंगमैन से करवाया जाता है जो गड्ढा खोदने और बिजली के खम्बे लगाने के लिए रखे गये हैं। और उस पर इन गैंगमैन से इस तरह के काम करवाते समय कोई उचित ट्रेनिंग भी नहीं दी जाती। फलस्वरूप ये दुर्घटना के शिकार आसानी से हो जाते हैं।
इन दुर्घटनाओं से बचने के लिए तमिलनाडु विद्युत बोर्ड ने एक एप बनवाया है। इसमें काम के दौरान का पूरा विवरण भरा जायेगा। प्रोटोकाल का पालन करवाया जायेगा। और इस तरह इस एप के जरिये वे दुर्घटनाओं को रोकने का दावा करते हैं। सुरक्षा उपकरण न देकर एप भरवाने की नौटंकी कर इस तरह की दुर्घटनायें नहीं रुक सकतीं। विद्युतकर्मियों की इस तरह मौतें तमिलनाडु से लेकर उ.प्र. तक सब जगह देखी जा सकती हैं।
1991 से लागू की गयी नई आर्थिक नीतियों के तहत श्रम कानूनों को पूंजीपतियों के लिए उदार बना दिया गया। और मजदूरों को जो सुरक्षा पूंजी से मिली थी वह छीन ली गयी। पदों की संख्या खाली रहने लगी और जो मजदूर बच गये उन पर कामों का बोझ बढ़ता गया। यह सब न केवल निजी क्षेत्र में हुआ बल्कि सार्वजानिक क्षेत्र में भी ठेके पर भर्तियां होने लगीं। और जब से केंद्र में मोदी सरकार आयी है तो इसने श्रम कानूनों को बदलने का ही काम किया है। जब से 4 लेबर कोड़ को मोदी सरकार ने बनाया है तबसे मजदूरों की स्थिति और खराब हुई है। चाहे राज्य में किसी की भी सरकार हो। संस्थान निजी हों या सरकारी सभी जगह मजदूरों की सुरक्षा से खिलवाड़ कर उन्हें मौत के मुंह में धकेला जा रहा है।