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सहजता वो मानवीय गुण है जो बरबस लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है। जिसके आगे इंसान की पढ़ाई-लिखाई, रूप-रंग, शहरी या ग्रामीण परिवेश कोई मायने नहीं रखता। औसत कद काठी, सांवला रंग, बिहार की पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाला रामू कभी स्कूल नहीं जा पाया। अपना गांव छोड़कर शहर में आकर मजदूरी करने वाले करोड़ों लोगों की तरह, रामू भी उसी भीड़ का हिस्सा बन गया। मजबूत कद काठी और मेहनत से काम करना, नशे की किसी भी लत से दूर रहना। बहुत सी मानवीय विकृतियों से दूर, कुछ तो है जो उसे बाकी लोगों से अलग करता है।
    
बंगाली से आजकल क्या सीख रहा है? व्यंग्य भरी कुटिल मुस्कुराहट के साथ शर्मा टर्नर ने पूछा। शर्मा को टर्नर का काम करते हुए लंबा समय हो गया था। उसके सांप्रदायिक और जातिवादी विचार, दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति और भी बहुत कुछ जिसके कारण शर्मा और बंगाली में 36 का आंकड़ा रहता था।, ‘‘बंगाली हमेशा कुछ न कुछ नया बताता है, जो तुम कभी नहीं बताते’’ सादगी और सत्य सदैव कुटिलता की थूथन रगड़ देता। खुद के ऊपर हुए किसी भी हमले का उत्तर देने के लिए रामू के पास वजनदार जवाब था।
    
आपने कितनी किताबें पढ़ीं, या आप कितने विद्वान हैं, इस बात की अगर परख करनी है तो तभी हो सकती है जब आप सामने वाले को समझने लगते हैं। रामू जो कभी स्कूल नहीं जा पाया अपनी ज्ञान की भूख को अक्सर ही बंगाली के साथ बांटता था। फैक्टरी में लंच ब्रेक के दौरान कोई भी दफ्ती का टुकड़ा या सफेद कट्टा ब्लैकबोर्ड भी हो सकता है। एक मामूली सी चाय की पेशकश आपके मानवीय संबंधों में मिठास घोल सकती है।
    
फैक्टरी के भीतर अक्सर ही, टी वी और यू ट्यूब पर चलने वाली खबरें ही आम चर्चा का विषय रहती हैं। सुबह-सुबह मजदूर आई पी एल, सीमा हैदर इन्ही सब बातों से फैक्टरी के दिन की शुरुआत करते हैं। आज दिन में धूप खिली है। दिन के खाने के बाद सभी मजदूर लकड़ी के बड़े तख्ते पर बैठे हैं। चर्चा का विषय बदलता है।

रमेश : महंगाई ने जान ले रखी है, दो साल होने वाले हैं। एग्रीमेंट का कुछ पता नहीं चल रहा है।

विनोद : यहां बोलने से क्या होगा। सब मिलकर बात करते हैं।

रमेश : तुरंत भगा देगा। फिर?

विनोद : यहां सब बोलेंगे, आगे कोई नहीं जायेगा।

रमेश : जो आगे बोलेगा उसे ही लात लगेगी। बाकी हंसेंगे पीठ पीछे।

हरिया : पिछली बार एक होकर बोले थे तो सुननी पड़ी थी मैनेजमेंट को। फिर से एक होकर बोले तो उन्हें मानना पड़ेगा।
    
सबकी बात सुन लेने के बाद रामू ने बोलना शुरू किया।

रामू : देखो भाई! जैसे पिछली बार जब किसानों ने आंदोलन किया तो सरकार को पीछे हटना पड़ा। लेकिन इस बार जब दुबारा किसानों ने लड़ाई लड़ी तो सरकार ने ज्यादा बड़ा हमला बोला है। और अगर किसानों को इस बार जीतना है तो उन्हें भी ज्यादा ताकत और मजबूती के साथ लड़ना होगा। ठीक वैसे ही हमें भी पिछली ताकत को जुटाकर और ज्यादा मजबूती और संगठित होकर लड़ना होगा। तभी कुछ बात बन पाएगी।
    
आंखों में प्रसन्नता लिए, लंच ब्रेक खत्म होने पर, बाकी मजदूरों के साथ बंगाली भी पुनः अपने काम पर लग गया। -आफताब

आलेख

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को