अरे! तुमने तो वामपंथ की लाज बचा ली

क्या कमाल हो गया है। विचित्र है किन्तु  सत्य है। इलेक्टोरल बाण्ड में हमारे सरकारी वामपंथी एकदम पाकसाफ होकर निकले हैं। एक भी रुपये का बाण्ड हमारे सरकारी वामपंथियों के नाम नहीं निकला। सीपीआई (एम) ने तो उलटे इलेक्टोरल बाण्ड के काले धंधे के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में शिकायत ही दर्ज करवाई थी। उसके ही प्रयासों का प्रताप है कि इलेक्टोरल बाण्ड के धंधे का पर्दाफाश हो गया। हम्माम में सब नंगे निकले एक हमारे सरकारी वामपंथी ही थे जो हम्माम में कपड़े पहने हुए थे। कपड़ा पहना हुआ आदमी ही हम्माम में सारे नंगों की हकीकत बतला सकता था। शाबाश! सरकारी वामपंथियों! आपने अपना जीवन सार्थक कर दिया। आपके नाम के साथ जो वामपंथ जुड़ा है उसकी तुमने लाज रख ली। बधाई हो! 
    
अपनी लाज बचाने के इस मुबारक मौके पर बस यही बात याद दिलाने का मन करता है कि काश तुमने क्रांति की, विचारधारा की लाज बचाने के लिए भी कुछ किया होता। मजदूरों-मेहनतकशों के प्रति वही निष्ठा दिखाई होती जो तुमने पूंजीवादी लोकतंत्र की परवाह करते हुए दिखायी है। 
    
इलेक्टोरल बाण्ड के नाम पर तुम भले ही पाकदामन निकले हो पर अन्य मामलों में तो तुम्हारा दामन दागों से भरा हुआ है। बंगाल से लेकर केरल तक कई इस बात की गवाही दे देंगे कि इस वामपंथ का दामन कितने-कितने दागों से भरा पड़ा है। 
    
खैर! एक बात बतायेंगे कि आप हम्माम में गये क्यों थे। 

आलेख

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को