फ्रांस की राजधानी पेरिस में 18 मार्च, 1871 के दिन कायम हुआ पेरिस कम्यून मानव इतिहास की एक कालजयी घटना थी। पेरिस, जो कि उस समय पूरी पूंजीवादी दुनिया की चकाचौंध का केंद्र था, के नेशनल गार्ड में संगठित हथियार बंद मजदूरों ने सत्ता पर कब्जा कर पेरिस कम्यून अर्थात दुनिया के पहले मजदूर राज को कायम किया था। पेरिस कम्यून एक युग परिवर्तनकारी घटना थी, क्योंकि इतिहास में अभी तक होने वाली क्रांतियों ने जहां आबादी के एक अल्पसंख्यक शोषक वर्ग को सत्ता से हटाकर दूसरे अल्पसंख्यक शोषक वर्ग की सत्ता को कायम किया था, वहीं पेरिस कम्यून ने अल्पसंख्यक पूंजीपति वर्ग को सत्ता से बेदखल कर बहुसंख्यक मजदूर वर्ग का शासन कायम किया था। दुनिया के क्रांतिकारी संगठन एवं वर्ग सचेत मजदूर प्रतिवर्ष 18 मार्च को महज 72 दिनों तक चले मजदूरों के इस पहले राज को याद करते हैं; शहीद कम्युनार्डों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प लेते हैं।
इस वर्ष पेरिस कम्यून की याद में हरिद्वार में 17 मार्च के दिन एक परिचर्चा आयोजित की गई जिसमें इंकलाबी मजदूर केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, फ़ूड्स श्रमिक यूनियन (आई टी सी), देवभूमि श्रमिक संगठन (एच यू एल), सीमेंस वर्कर्स यूनियन (सी एंड एस इलेक्ट्रिक लिमिटेड) इत्यादि के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि मजदूरों का यह पहला राज- पेरिस कम्यून सिर्फ 72 दिनों तक ही चला, लेकिन इतने थोड़े से समय में ही अपने क्रांतिकारी कदमों से इसने साबित कर दिया कि मजदूर वर्ग मानव इतिहास का सबसे क्रांतिकारी वर्ग है। गौरतलब है कि पेरिस कम्यून ने ‘‘दुनिया के मजदूरो, एक हो!’’ के नारे को चरितार्थ करते हुये एक जर्मन मजदूर को अपना श्रम मंत्री चुना था।
हरिद्वार में ही 18 मार्च को पेरिस कम्यून की याद में सिडकुल क्षेत्र और मजदूरों की बस्ती में प्रभात फेरी निकाली गई। इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि पेरिस कम्यून ने सैन्यवाद, युद्ध और अंधराष्ट्रवाद के प्रतीक वांदोम स्मारक को ढहा दिया था और इस तरह पूरी दुनिया में युद्ध नहीं शांति और अंधराष्ट्रवाद के बजाय मजदूर वर्ग के अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे का संदेश दिया था।
काशीपुर में इंकलाबी मजदूर केंद्र ने एक परिचर्चा का आयोजन किया जिसमें क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन और प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के कार्यकर्ताओं ने भी भागीदारी की।
परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि पेरिस कम्यून ने फैसला किया था कि कम्यून के किसी भी अधिकारी और मंत्री का वेतन 6 हजार फ्रैंक से ज्यादा नहीं होगा, जो कि एक कुशल मजदूर के वेतन के बराबर था। इस तरह इस क्रांतिकारी सरकार ने एक झटके में समाज से गैर बराबरी का अंत कर दिया था। इसके अलावा पेरिस कम्यून ने शिक्षा पर चर्च के विशेषाधिकारों का अंत कर सभी के लिये निःशुल्क और वैज्ञानिक शिक्षा व्यवस्था की घोषणा की थी।
रामनगर में भी पेरिस कम्यून दिवस पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा आयोजित इस परिचर्चा में परिवर्तनकामी छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने भी भागीदारी की।
इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि पेरिस कम्यून ने राजनीति और धर्म को एक दूसरे से जुदा कर चर्च के सभी विशेषाधिकारों का अंत कर दिया था और इस तरह वास्तविक अर्थों में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की थी। साथ ही स्थायी सेना को भंग कर और एक जन सेना के रूप में नेशनल गार्ड को मान्यता देकर स्थायी सेना के बोझ से भी समाज को मुक्त कर दिया था।
पेरिस कम्यून दिवस पर फरीदाबाद में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा आयोजित इस परिचर्चा की शुरुआत सांस्कृतिक टीम द्वारा प्रस्तुत क्रांतिकारी गीत से हुई।
इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि कम्यून कायम करने, उसके संचालन और उसकी रक्षा में महिलाओं की भूमिका बेहद बहादुराना और गौरवमयी थी। कम्यून ने मजदूरों के स्वास्थ्य के मद्देनजर बेकरियों में रात की पाली का अंत कर दिया था।
इस मौके पर 18 मार्च के दिन दिल्ली के बवाना औद्योगिक क्षेत्र में एक सभा का आयोजन किया गया। इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा आयोजित इस सभा में सी पी आई- एम एल (मास लाइन), डेमोक्रेटिक पीपुल्स फ्रंट एवं प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के कार्यकर्ताओं एवं औद्योगिक क्षेत्र के मजदूरों ने भागीदारी की।
सभा में वक्ताओं ने कहा कि 1871 में जब फ्रांस की सरकार ने जर्मनी के शासकों के समक्ष शर्मनाक आत्मसमर्पण कर दिया तब पेरिस के मजदूरों ने फ्रांसीसी पूंजीपतियों की सरकार के विरुद्ध बगावत कर सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ले ली। पेरिस कम्यून ने पहली बार सभी मजदूरों-मेहनतकशों के लिये सच्चे अर्थों में जनवाद कायम किया।
बलिया (उ.प्र.) में कई गांवों- बहादुरपुर कारी, कमसड़ी, इनामीपुर और सिसवार में चौपाल के माध्यम से पेरिस कम्यून को याद किया गया।
पंतनगर में इस मौके पर ठेका मजदूर कल्याण समिति द्वारा 18 मार्च के दिन एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। विचार गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि भले ही फ्रांस और जर्मनी के पूंजीपतियों की सेना ने इस नवजात मजदूर राज को अंततः खून में डुबो दिया लेकिन ये पेरिस कम्यून की ही शिक्षायें थीं जिन्होंने रूस में महान अक्टूबर क्रांति को सफल बनाया था; पेरिस कम्यून की उपलब्धियां बीसवीं सदी की सभी मजदूर क्रांतियों और तदुपरान्त कायम समाजवादी समाजों के लिये कसौटी बनी रही और निश्चित ही भावी समाजवादी क्रांतियों को भी इस कसौटी पर कसा जायेगा।
-विशेष संवाददाता