अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति और आगामी चुनाव में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प के दामाद जेरेड कुशनर हैं। रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प अपने दामाद को उप राष्ट्रपति बनाना चाहते हैं। कुशनर का परिवार कुशनर फाउण्डेशन संचालित करता है। यह फाउण्डेशन फिलिस्तीन में अवैध इजरायली यहूदी बस्तियों को बसाने में वित्तीय सहायता देता रहा है।
यहूदी नस्लवादी इजरायली हुकूमत वेस्ट बैंक और गाजा से फिलिस्तीनियों को जबरन उजाड़कर उनकी अपनी जमीन से, अपनी मातृभूमि से बेदखल करने की मुहिम चला रही है। इसमें कुशनर जैसे अमरीकी पूंजीपतियों को बड़े लाभ की उम्मीदें दिखती हैं और इनकी मूल प्रेरणा इसी लाभ से प्रेरित है।
कुशनर ने अपने नजरिये का इजहार इस तरह किया है। गाजा के निवासियों को उनके घरों से हटा दिया जाना चाहिए। मिश्र के सिनाई और अन्य देशों में भेजे गये लोगों को दक्षिणी इजरायल के अंदर नेगेव के रेगिस्तान में एक उपयुक्त शरणार्थी शिविर शैली में रहने की इजाजत दी जा सकती है। फिलिस्तीनी नागरिकों को राफा से बाहर निकालना और संभावित रूप से मिश्र में ले जाना ‘सही कूटनीति के साथ’ सम्भव हो सकता है। कुशनर कहते हैं, कि वे ‘नेगेव में कुछ बुलडोजर चलायेंगे, फिर फिलिस्तीनियों को वहां ले जाने की कोशिश करेंगे।
जेरेड कुशनर की ऐसी सोच कई इजरायलियों और विदेशी यहूदियों के इरादों से मेल खाती है। इस बात के अतिरिक्त प्रमाण मौजूद हैं कि कब्जाई गयी फिलिस्तीनी भूमि और घर जल्द ही यहूदियों द्वारा खरीदने के लिए नीलामी के लिए पेश किये जायेंगे। इजरायल में रियल एस्टेट डीलर पहले से ही गाजा भूमि के अधिक वांछित हिस्सों, विशेषकर भूमध्यसागर के साथ को विभाजित करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर रहे हैं। बिक्री केवल यहूदियों के लिए होगी, क्योंकि इससे इजरायल को सर्व यहूदी राज्य में बदलने में मदद मिलेगी।
मार्च की शुरूवात में कनाडा, न्यूयार्क राज्य और न्यू जर्सी जैसे अमरीकी राज्यों में ‘इजरायली रियल एस्टेट इवेंट’ आयोजित की गयी थी। इसमें इजरायली दलाल वेस्ट बैंक को इजरायल में शामिल करने के मकसद से घर बेच रहे थे और बहुत सारे निर्माण कर रहे थे। इनमें से अधिकांश जगहें ताकत के जरिये मूल अरब मालिकों से जबरन कब्जा किये गयी थीं। ये घटनायें अमरीका और कनाडा में आयोजित की जा रही थीं, जहां किसी विशेष धर्म या नस्लीय समूह के लिए घर या जमीन की बिक्री करना गैर कानूनी है।
दरअसल, अमरीकी साम्राज्यवादियों और यहूदी नस्लवादी इजरायली शासकों के लिए फिलिस्तीनी आबादी की आशाओं और आकांक्षाओं से, उनकी आजादी की जद्दोजहद की तीव्र भावना से कोई सरोकार नहीं है। कुशनर जैसे लोगों के लिए फिलिस्तीन देश कभी अस्तित्व में नहीं था। उनके लिए फिलिस्तीन की धारणा काल्पनिक है। अब वह फिलिस्तीन को ‘एक चीज’ समझते हैं।
यही अमरीकी साम्राज्यवादियों और इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों के स्वार्थों में एकता है। गाजापट्टी के तटीय भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार पाया गया है। इस भण्डार के दोहन में इनकी दिलचस्पी है। इस दोहन के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा गाजापट्टी में हमास का शासन और फिलिस्तीनी आबादी है। यह साम्राज्यवादियों की आंख की किरकिरी बनी हुयी है।
यहूदी नस्लवादी इजरायली हुकूमत काफी समय से स्वेज नहर के समानान्तर इजरायल द्वारा नियंत्रित बेन गुरियन नहर परियोजना का निर्माण कर रही है। इस नहर के माध्यम से वह भूमध्यसागर से लाल सागर को जोड़कर अपने समुद्री रास्ते को सुगम बनाने की योजना लागू करना चाहती है। इसमें भी गाजापट्टी और फिलिस्तीनी आबादी बाधास्वरूप खड़़ी हुई है। इसलिए वह गाजापट्टी से फिलिस्तीनी आबादी और हमास के प्रतिरोध को खत्म करना चाहती है।
कुशनर योजना और इजरायली शासकों की चाहतें मेल खाती हैं। इन सबके पीछे तेल और गैस भण्डार पर नियंत्रण और मुनाफा लूटने की अतृप्त भूख है। इसीलिए इनके लिए फिलिस्तीन एक जीते-जागते, अपनी मातृभूमि से प्यार करने वाले और उसके लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले लोगों का देश नहीं है बल्कि एक वस्तु है।
लेकिन फिलिस्तीन के प्रतिरोध आंदोलन ने यह साबित कर दिया है कि फिलिस्तीन कोई वस्तु नहीं है बल्कि अन्याय, उत्पीड़न और जबरन बेदखली के विरुद्ध खड़ा होने वाला एक राष्ट्र है। वह 32,000 से अधिक शहादत और 80,000 लोगों के घायल होने के बावजूद इस नारे के साथ लड़ रहा है कि या तो आजादी या शहादत। उनके इस जज्बे ने समूची दुनिया में उनके समर्थन में मजदूर-मेहनतकश आबादी के साथ ही न्यायपसंद लोगों को खड़ा कर दिया है। इसी का नतीजा है कि इजरायल द्वारा नरसंहार और विनाश को रोकने के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को अभी तक अमरीकी साम्राज्यवादी वीटो करते थे। लेकिन हालिया प्रस्ताव में अमरीकी साम्राज्यवादियों ने सुरक्षा परिषद से अपनी अनुपस्थिति दर्ज की। इस बार उसने वीटो का इस्तेमाल नहीं किया। इस तरह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बिना किसी विरोध के रमजान तक युद्ध विराम करने सम्बन्धी प्रस्ताव पारित हो गया। इसमें हमास द्वारा बनाये गये बंधकों की रिहाई की भी बात की गयी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के इस प्रस्ताव का हमास ने समर्थन करते हुए यह कहा कि इस प्रस्ताव में इजरायल की जेलों में बंद फिलिस्तीनियों को भी बंधक के बतौर मानकर रिहाई की जानी चाहिए। इसके साथ ही यह अस्थाई युद्ध विराम के साथ-साथ स्थायी युद्ध विराम और इजरायली कब्जाकारी सेनाओं की गाजापट्टी से वापसी का भी इस प्रस्ताव में प्रावधान होना चाहिए। हमास ने यह भी कहा है कि गाजापट्टी में भयंकर मानवीय आपदा से निपटने की व्यवस्था का भी प्रावधान होना चाहिए।
अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के युद्ध विराम सम्बन्धी प्रस्ताव पर वीटो न लगाना एक अर्थ में विश्व जनमत और फिलिस्तीनी प्रतिरोध आंदोलन की जीत है। अमरीकी राष्ट्रपति बाइडेन को आगामी राष्ट्रपति पद के चुनाव में हार का भय सता रहा है। इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों के नरसंहार का अमरीकी जनता द्वारा विरोध भी अमरीकी शासकों द्वारा वीटो न लगाने का एक कारण है।
इजरायली शासकों द्वारा राफा इलाके में जमीनी आक्रमण करने की घोषणा करने के बावजूद अभी तक जमीनी हमला न करना भी इजरायल के अपने घोषित उद्देश्यों से पीछे हटने को दिखाता है। राफा पर जमीनी हमले के मामले में इजरायल के अमरीकी व कई अन्य सहयोगी विरोध व्यक्त कर चुके हैं। इजरायल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दुनिया में अलग-थलग पड़ चुका है। उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के जंगबंदी के प्रस्ताव पर अमरीका द्वारा वीटो न लगाने पर विरोध व्यक्त किया है।
इन सब बातों के चलते कुशनर योजना पर पानी फिरता नजर आ रहा है। फिलिस्तीनी प्रतिरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। इजरायल फिलहाल फिलिस्तीन को नक्शे से मिटा देने की योजना में असफल हो रहा है।
चाहे कुशनर योजना हो या चाहे इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों की फिलिस्तीन को नक्शे से हटाने की योजना हो, इसका असफल होना अपरिहार्य है। इसका कारण भी स्पष्ट है। इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी इलाकों पर कब्जा अन्यायपूर्ण है। फिलिस्तीनी मुक्ति योद्धा एक न्यायपूर्ण प्रतिरोध संघर्ष चला रहे हैं। इसे फिलिस्तीनी अवाम और दुनिया की न्यायप्रिय अवाम का समर्थन और एकजुटता हासिल है।
कोई भी अवाम जब विजय या शहादत का इरादा लेकर खड़ी होती है तब दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत उसके इरादों को नहीं तोड़ सकती।
और न ही कुशनर जैसे जीवंत देश को वस्तु समझने वालों को सफलता मिल सकती है।
फिलिस्तीन से फिलिस्तीनियों को निकाल बाहर करने की कुशनर योजना
राष्ट्रीय
आलेख
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।