वाक्कला नहीं महज लफ्फाजी

मोदी की लफ्फाजी

प्रधानमंत्री मोदी के पहले रूस, फिर पोलैंड और आखिर में यूक्रेन की यात्रा में दिए गए बयान मजेदार थे। यह आपको तब बेहद मजेदार लगने लगेंगे जब आप मोदी जी के बयान को भारत-पाकिस्तान, भारत-चीन आदि के साथ भारत के भीतर की समस्याओं खासकर मणिपुर के संदर्भ में लागू कर दें। 
    
मोदी जी ने रूस में फरमाया कि ‘यह युग, युद्ध का नहीं शांति का है’। पोलैंड में फरमाया कि ‘यह युग, युद्ध का नहीं संवाद का है’। और फिर उन्होंने यूक्रेन में कहा कि ‘यूक्रेन और रूस साथ बैठकर युद्ध से बाहर निकलने का रास्ता तलाशें’। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने संसार को युद्ध नहीं बुद्ध दिए हैं। यूक्रेन में कहा कि ‘हम तटस्थ नहीं शांति के पक्ष में हैं’। 
    
मोदी जी की इन महान बातों को आप जैसे ही पाकिस्तान के संदर्भ से जोड़ दें या फिर पाकिस्तान के संबंध में दिए गए बयानों से तुलना करेंगे तो इनकी पोल अपने आप ही खुलने लगेगी। ‘यह नया भारत है जो घुसकर मारता है’। यहां शांति गई भाड़ में। रूस और यूक्रेन भी अपने हितों की खातिर एक-दूसरे के देश में घुसकर ही मार रहे हैं। भारत और पाकिस्तान अपनी आजादी के समय से कई युद्ध लड़ चुके हैं और यही बात चीन के संदर्भ में भी लागू होती है। सीमा पर झड़पों की संख्या अनगिनत है। आज भारत के संबंध अपने पड़ोसी देशों से तनावपूर्ण बने हुए हैं। भारत के शासकों खासकर हिंदू फासीवादियों की शांति की बातें कितनी फर्जी हैं इसे बाजपेई के समय किए गए परमाणु बम के परीक्षण से समझा जा सकता है। ‘‘बुद्ध मुस्कुराए’’ कहकर परमाणु बम का परीक्षण किया गया। 
    
भारत के भीतर हिंदू फासीवादी खासकर मोदी-योगी-हिमंत सरमा मुसलमानों के लिए जिस भाषा का प्रयोग करते हैं उसमें शांति, संवाद, अहिंसा का एक अंश भी नहीं होता है। मणिपुर 1 साल से अधिक समय से जल रहा है परंतु मोदी 1 घंटे के लिए भी वहां नहीं गए। रूस और यूक्रेन को शांति का पाठ पढ़ाकर मोदी अपने उन काले कारनामों पर एक पर्दा डालना चाहते हैं जो उन्होंने अपने शासनकाल में गुजरात से लेकर अब तक किए हैं। देश के भीतर वे हमेशा हिंसा-घृणा की भाषा बोलते हैं और विदेश में शांति का जाप करने लगते हैं।

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

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