यह कहावत अमित शाह के बेहद ‘लायक’ पुत्र जय शाह पर एकदम सटीक बैठती है। इस कहावत में आपको ‘किस्मत’ की जगह पर ‘‘बाप’’ पढ़ना पड़ेगा। और बाप भी ऐसा-वैसा नहीं बल्कि अमित शाह जैसा बाप।
जय शाह ‘किस्मत’ की वजह से पहले बीसीसीआई के सचिव बने। सचिव बनते ही जय शाह की दौलत को पांव लग गए। अब उन पर ‘किस्मत’ की और मेहरबानी हुई, और वे इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) के अध्यक्ष बन गए। ‘किस्मत’ का ऐसा दबदबा रहा कि अध्यक्ष पद के लिए उनके सामने कोई खड़ा तक नहीं हो पाया। अध्यक्ष बनते ही जय शाह ने कहा ‘‘मैं बहुत खुश हूं’’। ‘किस्मत मेहरबान रहेगी (रही) तो महाशय आप ऐसे ही खुश रहेंगे।
जय शाह की खुशी से आप समझ सकते हैं कि परिवारवाद को रात-दिन गाली देने वालों को भी असली खुशी परिवार की मेहरबानी से ही मिलती है। वैसे सबको पता है कि ‘किस्मत’ की वजह से जय शाह पहले बीसीसीआई के सचिव और अब आईसीसी के अध्यक्ष बने हैं अन्यथा उनका क्रिकेट से उतना ही लेना-देना है जितना आजादी की लड़ाई से हिंदुत्ववादियों का था। क्रिकेट के खेल में यदि इतना पैसा ना होता तो बाप कभी अपने बेटे को उस तरफ मुंह भी न करने देता।
‘किस्मत मेहरबान गदा पहलवान’
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को