जिन्दगी और मौत के बीच फासला बहुत कम रह जाता है। यह तब महसूस हुआ जब किसी को केवल मुसलमान होने पर मारा जा सकता है। 31 जुलाई को नूंह में हुई साम्प्रदायिक हिंसा को आधार बनाकर उससे सटते जिलों गुड़गांव, फरीदाबाद में बजरंग दल की टोली निकल पड़ी बदला लेने के लिए। एक तरफ नूंह में भारी पुलिस और अर्द्धसैनिक बल लगाकर मुसलमानों पर अत्याचार, गिरफ्तारियां की गयीं, निर्दोष मुस्लिमों को जेलों में ठूंसा जाने लगा और उनके मकान तोड़ दिये। यह सब किया गया इंटरनेट बंद करके और नूंह में इंटरनेट के साथ-साथ कर्फ्यू भी लगाकर, ताकि वहां क्या हो रहा है किसी को पता न चले। दूसरी ओर गुड़गांव, फरीदाबाद जैसे जिलों में धारा 144 लगा दी गयी। ऐसा इसलिए किया गया कि नूंह में सरकार प्रायोजित हिंसा-तोड़फोड़ के प्रतिरोध को रोका जा सके। जबकि बाकी हरियाणा में बजरंग दल और गौरक्षा संगठन खुद कानून को हाथ में लेकर मुसलमानों पर हमले कर रहे हैं और यहां तक कि उनको जला दे रहे हैं और फिर भी वह आराम से घूम रहे हैं। नूंह दंगे की पृष्ठभूमि में कई चीजें हैं।
एक तो राजस्थान के दो मेवातियों को मोनू और उसकी टीम ने गौरक्षा के नाम पर बर्बर तरीके से मारा और उन्हें उनकी गाड़ी के साथ जला दिया। उससे पहले भी मेवात के 21 वर्षीय वारिश की लिंचिंग में मौत हो गयी थी। इसमें भी मोनू मानेसर का नाम आया लेकिन कुछ नहीं हुआ। मोनू मानेसर खुद कहता है कि खाली भाषणों से काम नहीं चलेगा इन्हें तो मारना ही पड़ेगा। मोनू मानेसर के कई सारे फोटो हैं जिसमें राजस्थान की पुलिस, मेवात की पुलिस और यहां तक कि खट्टर और अमित शाह के साथ भी काफी करीबी फोटो हैं। उस पर पुलिस कोई कार्यवाही नहीं करती। मानेसर की खाप पंचायत भी मोनू मानेसर के समर्थन में पुलिस और सरकार को चेतावनी देती रहती है।
23 जुलाई 2023 को फरीदाबाद की साइबर क्राइम की टीम जिसमें इंस्पेक्टर बसंत कुमार और सब इंसपेक्टर सूबे सिंह शामिल थे, ने सैकुल खान व अन्य को पकड़ा और उन्हें इतना मारा कि सैकुल खान की मौत हो गयी। उसके परिवार वालों से पैसे भी मांगे गये और उन्होंने सत्तर हजार से ज्यादा रुपये किसी पुलिस वाले के कहे अनुसार ट्रांसफर भी कर दिये थे। लेकिन पुलिस तो ऐसा सोचती है कि जितना ज्यादा पीटेंगे उतनी ज्यादा रकम मिलेगी। लेकिन कब सीमा पार हो गयी उन्हें पता ही नहीं चला। वैसे इंस्पेक्टर की इसी पुलिस टीम पर पुलिस कस्टडी में मौत के चार मुकदमे और चल रहे हैं। वैसे तो इसे हृदय घात से मौत दिखाने की पुलिस ने बहुत कोशिश की लेकिन फरीदाबाद के अस्पताल में बड़ा प्रदर्शन होने से पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर इन दोनों पुलिस इंस्पेक्टरों को आराम करने के लिए पुलिस लाइन भेज दिया।
गुड़गांव के जैसे ही फरीदाबाद में एक नाम है बिट्टू बजरंगी। इनका असली नाम राजकुमार है। यह भी कई बार फरीदाबाद में हिन्दू-मुस्लिम दंगे करने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन मोनू मानेसर जैसी सफलता नहीं मिली। कभी मजार के पास हनुमान चालीसा पढ़ने के बहाने या कभी मजार को ही अवैध बताने के नाम पर। लेकिन यहां मुसलमान इतने डरे हुए हैं कि कोई पंगा नहीं करना चाहते। बिट्टू बजरंगी के नाम कई एफ आई आर दर्ज हैं लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं। कभी गिरफ्तारी की खबर छपी भी तो उससे पहले की लाइन में गिरफ्तारी के साथ जमानत भी हो जाती है बिना जेल जाये। मुकदमे दर्ज होते रहने से भी अब कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि जांच चलती रहती है।
एक तरीके से कानून अब धर्म देखकर कार्यवाही कर रहा है। मेवात के दंगों के बाद सारी कार्यवाही मुसलमानों पर हो रही है। उनके घर गिराये जा रहे हैं। मुसलमानों के खिलाफ ही भारी मात्रा में रिपार्ट दर्ज की गयीं और गिरफ्तारियां की गयीं। मुस्लिमों की बड़ी आबादी अपनी रोजमर्रा की रोजी-रोटी छोड़कर भाग खड़ी हुई। जो काम बजरंग दल गर्म दिमाग और नशे की हालत में करता है, दंगों के बाद वही काम पुलिस मशीनरी ठंडे दिमाग से करती है। इंटरनेट बंद कर दिया, कर्फ्यू लगाया और धारा 144 लगायी, इसके बाद जिसको चाहे पुलिस पीटे, लूटपाट करे, सैकड़ों लोगों को जेल में डाल दे।
बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद मेवात और उसके आस-पास के जिलों में पूरी तौर पर सक्रिय हो गये। सड़कों पर और हवाओं में आवाज गूंजने लगी कि मुसलमान जहां मिले वहीं मारो। एक ट्रेन में इस पर पहले ही अमल हो चुका था। पूरे एक हफ्ते तक मुसलमानों की दुकानें फरीदाबाद, गुड़गांव व रेवाड़ी में बंद रहीं और उन पर समय-समय पर हमले होते रहे। जुमे की नमाज जो सामान्यतया मस्जिदों में होती है लेकिन 4 अगस्त की शुक्रवार को मस्जिदों में नमाज नहीं हुई। इससे पहले भी नवरात्रि में पन्द्रह दिन सावन में दुकानें बंद रहीं। शहरों में गायों का मुद्दा उतना चल नहीं पाता है तो बजरंग दल/गोरक्षा दल गाय का मुद्दा उठाने के बजाय चिकन की दुकानें बंद करवाने लगते हैं। कहीं ये सरकार के आदेश से होता है और कहीं बिना आदेश के।
बजरंग दल और पुलिस की कार्यवाही मुसलमानों के खिलाफ तो होती ही है इसमें अखबारों और मीडिया का हमला भी कम खतरनाक नहीं होता। जब नूंह दंगे के बाद धारा 144 लगायी गयी और इंटरनेट बंद कर दिया गया तो एक हिन्दी अखबार की हैडिंग थी ‘अगले 144 घंटे दंगाइयों पर भारी पड़ेंगे’ ये किसको चेतावनी दी जा रही थी? मुसलमान तो वैसे भी समझ जाते हैं कि कार्यवाही किस पर होगी। मोहित यादव उर्फ मोनू यादव पर मुकदमे दर्ज हुए इतना लम्बा समय हो गया लेकिन उसके मकान पर आज तक बुल्डोजर नहीं चला और कुछ ऐसा ही हाल फरीदाबाद के राजकुमार उर्फ बिट्टू बजरंगी का है। वैसे तो ये 2024 के चुनाव के छोटे प्यादे हैं जो आज ढंग का रोजगार न मिल पाने के कारण गौरक्षा के नाम पर हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे में जहर घोल रहे हैं। जिन्दगी और मौत का फासला भाजपा और आर एस एस को भी नजर आ रहा है। हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद का मुद्दा अगर नहीं चला तो उन्हें अपनी मौत नजर आने लगती है। ऐसा नहीं है कि ये अगर चुनाव हार जाते हैं तो इनकी मौत हो जायेगी। पूरा मणिपुर भी जल जाये तो क्या है, दंगों में हजारों हिन्दू और मुसलमान मर भी जायें तो क्या है 2024 की जीत नहीं जानी चाहिए।
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को