सीरिया पर प्रत्यक्ष हमले के बहाने का आविष्कार

    दो साल से सीरिया की असद सरकार के खिलाफ गृहयुद्ध को खूब हवा पानी देने के बाद भी जब असद की सत्ता को गिरा पाने में अमेरिकी साम्राज्यवादियों को सफलता नहीं मिल सकी है तो उन्होंने सीरिया पर प्रत्यक्ष हमला करने का एक नया बहाना ईजाद कर लिया है। अमेरिका के रक्षा सचिव चक हेगल ने अमेरिकी खुफिया सूत्रों का हवाला देकर दावा किया है कि उन्हें पूरा विश्वास है कि सीरिया की सरकार ने विद्रोहियों से निपटने के लिए सीमित पैमाने पर रासायनिक हथियारों खासकर कैमिकल एजेण्ट सैरीन का इस्तेमाल किया है।<br />
    अमेरिकी विदेश सचिव का यह बयान निश्चित तौर पर सीरिया पर प्रत्यक्ष हमले के एक बहाने के बतौर समझा और देखा जा रहा है क्योंकि अमेरिका बार-बार सीरिया द्वारा प्रत्यक्ष हमला आमंत्रित करने की लक्ष्मण रेखा के उल्लंघन की आशंका जताता रहा है। जाहिर है इस लक्ष्मण रेखा का निर्धारण अमेरिका को ही करना था। अमेरिकी विदेश सचिव के ताजा बयान के बाद सीरिया पर अमेरिका और नाटो शक्तियों द्वारा हवाई बमबारी की आशंकायें बढ़ गयी हैं।<br />
    अमेरिका द्वारा सीरिया के पास रासायनिक हथियारों की मौजूदगी के आविष्कार के साथ इन हथियारों के इस्लामिक आतंकवादियों खासकर अलकायदा के हाथ लग जाने के खतरे का भी प्रचार अमेरिका व साम्राज्यवादी मीडिया कर रहा है। अतः सीरिया पर हमला कर उसके रासायनिक हथियारों के ठिकानों को नष्ट करना या कब्जे में लेना अमेरिका व नाटो शक्तियों का पवित्र कर्तव्य बन जाता है ताकि इन रासायनिक हथियारों तक इस्लामिक उग्रवादियों की पहुंच को रोका जा सके।<br />
    अमेरिका द्वारा सीरिया पर हमले के लिए रासायनिक हथियारों का बहाना बनाना कोई नई बात नहीं है। इससे पूर्व इराक में सद्दाम हुसैन का तख्तापलट करने के लिए 2003 में उसने ईराक के पास व्यापक विध्वंस के हथियारों (वीपन्स आफ मास डेस्ट्रक्शन, डब्ल्यू.एम.डी.) की मौजूदगी तथा इनके आतंकवादियों के हाथ लग जाने का बहाना बनाया था तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस व चीन के वीटो के बावजूद इराक पर हमला कर दिया था। यह दीगर बात है कि इराक को तहस-नहस करने तथा खंडहरों में बदलने के दस साल बाद आज तक उन ‘व्यापक विध्वंस वाले हथियारों को अमेरिका बरामद नहीं कर सका है।<br />
    अमेरिका द्वारा सीरिया की असद सरकार को अपदस्थ करने की बैचेनी बढ़ती जा रही है। अरब जगत में इराक, ईरान व लीबिया के साथ सीरिया की असद सरकार एक ऐसी सरकार रही है जो अमेरिकी इशारों पर नाचने को तैयार नहीं रही है। इराक के सद्दाम हुसैन के प्रति भी सीरिया का रुख सहानुभूतिपूर्ण रहा है। ऐसे में अमेरिका के लिए अरब जगत में निष्कंटक आधिपत्य कायम करने के लिए असद सरकार का तख्तापलट आवश्यक है। इसके लिए सीरिया की असद सरकार के खिलाफ जन असंतोष को भड़काकर तथा विद्रोहियों को हर तरीके से मदद पहुंचाकर वह लगातार प्रयासरत है। अमेरिका व यूरोपीय साम्राज्यवादियों द्वारा समर्थित इस युद्ध में अब तक 70,000 ये अधिक जानें जा चुकी हैं। अमेरिका व यूरोपीय साम्राज्यवादियों द्वारा समर्थित विद्रोही सशस्त्र इस्लामी गुट हैं। इन इस्लामी सशस्त्र गुटों को अमेरिका, यूरोपीय साम्राज्यवादियों सहित खाड़ी देशों के अमेरिका परस्त शासकों का समर्थन प्राप्त है। दूसरी ओर असद सरकार को रूस व चीन का सहयोग व समर्थन प्राप्त है। दो साल के गृहयुद्ध के बाद भी इस्लामिक विद्रोही गुट सीरिया के महत्वपूर्ण आर्थिक राजनीतिक व सामरिक ठिकानों तक अपनी पहुंच बनाने में असफल रहे हैं तो दूसरी तरफ सीरिया के सैन्य बलों की असद के प्रति वफादारी में भी कोई कमी नहीं आयी है। ऐसे में अमेरिका व यूरोपीय साम्राज्यावादी शक्तियों के लिए स्पष्ट है कि सीरिया में तख्तापलट करवाने के लिए प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के बिना उनके सपने पूरे नहीं होंगे। अतः एक बार फिर सीरिया में विध्वंसक हथियारों की मौजदूगी और वैश्विक आतंकवाद के खतरे के तर्क के साथ उसे जोड़कर वे इराक का प्रयोग सीरिया में दोहराना चाहते हैं लेकिन साम्राज्यवादी अपने अनुभवों से नहीं सीखते। नहीं तो इराक व अफगानिस्तान में अपने हाथ जलाने व फजीहत झेलने के बाद वे सबक जरूर लेते।<br />
    जहां तक विध्वंशक हथियारों व कैमिकल एजेण्टों का मानवता के खिलाफ इस्तेमाल का सवाल है इसके इस्तेमाल का सबसे बड़ा गुनहगार संयुक्त राज्य अमेरिका रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति बेला में सिर्फ विश्व में अपनी चौधराहट कायम करने  की गरज से हिरोशिमा व नागासाकी में परमाणु बम गिराकर लाखों लोगों को मौत की नींद सुलाने का कारनामा हो या वियतनाम युद्ध के समय क्लस्टर बम, नेपाम बम तथा खतरनाक केमिकल एजेण्ट ओरेन्ज का इस्तेमाल हो ये सब कारनामे अमेरिका ने किये हैं। इराक युद्ध में भी नाभिकीय विकिरण से युक्त हथियारों के इस्तेमाल के आरोप अमेरिकी साम्राज्यवादियों के कबाड़ में विकिरण की मौजूदगी की बात सामने आ चुकी है। अतः सीरिया के खिलाफ हमला करने को उद्यत अमेरिका झूठे और मनगढंत तथ्य व तर्क गढ़कर अपनी कुत्सित इच्छाओं को आगे बढ़ाना चाहता है। विश्व की न्यायप्रिय जनता को अमेरिकी साम्राज्यवादियों द्वारा सीरिया पर कब्जे के इरादों का भण्ड़ाफोड़ तथा उसकी भत्र्सना करनी चाहिए।

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समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।    

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फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।

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यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।