संघ-भाजपा के तरकश के बिष बुझे तीर

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संघ-भाजपा ने अपने तरकश में ढेर सारे बिष बुझे तीर जमा कर रखे हैं जो समय-समय पर भारतीय समाज के शरीर में जहरीले घाव करते रहते हैं। इनमें राजनेता से लेकर साधु-संत तक सब शामिल हैं। हिमंत विश्वा सरमा से लेकर यति नरसिम्हानंद तक। ताज़ा मामला यति नरसिम्हानंद से जुड़ा हुआ है।

यति नरसिम्हानंद ने हाल में ही पैगम्बर मोहम्मद को लेकर एक बयान दिया और उसके बाद गाज़ियाबाद से लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में मुस्लिम समुदाय ने इस पर प्रतिक्रिया दी। फिर इस प्रतिक्रिया को लेकर संघ-भाजपा के संगठन हिंदू समुदाय को मुस्लिम समुदाय से डराकर वोटों की फसल काटने की तैयारी करने लगे। ज्ञात हो कि अभी उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। हाल में ही आम चुनाव में जिस तरह से भाजपा को उत्तर प्रदेश में मुंह की खानी पड़ी थी उससे भाजपा डरी हुई और वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए साम्प्रदायिकता की जहरीली हवा बहा रही है ताकि उपचुनावों में उसकी हवा बहे।

यति नरसिम्हानंद गाज़ियाबाद के डासना मंदिर के महंत हैं। यह मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है। यति नरसिम्हानंद और संघ-भाजपा यह बात अच्छी तरह समझते हैं कि अगर पैगम्बर मोहम्मद के बारे में वे कुछ उल्टा-सीधा बोलते हैं तो उसकी डासना मंदिर के आस-पास के क्षेत्र में प्रतिक्रिया होगी और मुस्लिम समुदाय की इसी प्रतिक्रिया का वे फायदा उठा लेंगे।

भारत में 2014 के बाद जबसे संघ भाजपा सत्ता में बैठे हैं वे बहुसंख्यक धर्म यानी हिंदू धर्म को आक्रामक रूप देने और धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न करने में लगे है। इससे धार्मिक अल्पसंख्यकों में एक डर बैठने लगा है। और इसी डर की वजह से जैसे ही यति नरसिम्हानंद जैसे लोग उनके धार्मिक प्रतीकों और धार्मिक विश्वास पर हमला बोलते हैं तो मुस्लिम समुदाय में इसकी तीखी प्रतिक्रिया होती है। और इसी प्रतिक्रिया को पूंजीवादी प्रचार तंत्र जो आज संघ-भाजपा के साथ खड़ा है तुरंत ही मुस्लिम समुदाय को एक ऐसी बुरी शक्ति के रूप में पेश करता है जो हिंदू धर्म के मानने वालों का नाश कर देगी। उसके बाद शासन सत्ता अपना दमन का डंडा मुस्लिम समुदाय पर चलाता है और मोदी और योगी जैसे लोग अपने आपको हिंदू धर्म का रहनुमा घोषित कर देते हैं। और यह जनमानस में स्थापित करने की कोशिश करते हैं (और आज इसमें वह सफल भी है) कि अगर योगी या मोदी जैसे लोग न हों तो मुस्लिम समुदाय उनका (हिंदू धर्म के लोगों का) जीना मुश्किल कर देगा। इसलिए अपनी तमाम तकलीफों और परेशानियों के बावजूद वे संघ भाजपा के समर्थक बनने के लिए मज़बूर हो जाते हैं। संघ और उसके अनुशंगी संगठनों द्वारा पिछले 100 सालों से मुस्लिमों के प्रति फैलाये जा रहे पूर्वाग्रह भी इसमें उनकी मदद करते हैं।

आलेख

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भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

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युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

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हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

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अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।