उत्तरी दिल्ली के जहांगीरपुरी में 2 अगस्त को एक भीषण हादसा हुआ। फैक्टरी के दो मंजिला बिल्डिंग का एक हिस्सा भरभरा कर गिर गया। इसमें 3 मजदूर दब कर मर गये व 5 मजदूर बुरी तरह से घायल हो गए।
बताया जा रहा है कि फैक्टरी की छत व दीवारें जर्जर हालत में थीं। जैसे ही भारी बरसात हुई छत टपकने लगी। छत की मरम्मत के लिए मजदूर लगा दिये लेकिन फैक्ट्री में तीनों तलों पर काम चल रहा था। अचानक 12:30 बजे के करीब छत भरभरा कर गिर गयी।
मरने वालों की पहचान मुकेश कुमार (45 वर्ष),फूलमति (50 वर्ष) व विनोद (43 वर्ष) और घायलों की पहचान ठाकुर दास, निर्मला, हरिशंकर व जेसन आदि के रूप में हुई है।
राजधानी दिल्ली में इस वर्ष अगस्त के पहले हफ्ते तक फैक्टरी हादसे में जान गंवाने वालों मज़दूरों का लगभग 70 का आंकड़ा पहुच चुका है।
फैक्टरी मालिकों व सरकार की लापरवाहियों तथा मुनाफे की भेंट चढ़ते मजदूरों की जानें जा रही हैं लेकिन इसे लेकर न तो मीडिया में बहस होती है न ही सरकार में बैठे नेता-मंत्री इनके बारे में कोई बात करते हैं। जब भी कोई बड़ी घटना घटती है तब दिखावे के नाम पर खानापूर्ति हो जाती है। बस। छोटी-छोटी घटनायें तो संज्ञान में भी नहीं आ पातीं।
भारत की राजधानी दिल्ली में छोटी-छोटी फैक्ट्रियां घनी आबादी में लगी हुई हैं जहां पर सुरक्षा मानकों का रत्ती भर भी पालन नहीं होता। फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को वहां तक पहुंचने का रास्ता तक नहीं होता है। यह मालूम होने के बावजूद कि रिहायशी इलाकों में फैक्टरियां चल रही हैं, इन बिल्डिंगों की हालात भी बहुत जर्जर हो चुकी है, उनको बंद नहीं किया जा रहा है।
ऊपर से मोदी सरकार द्वारा सुरक्षा के मानकों का पालन करने का काम भी फैक्ट्री मालिकों के भरोसे छोड़ दिया है। यही वजह है जो आज इस तरह के हादसों में मजदूरों की मौते लगातार रुकने के नाम नहीं ले रही है।