वेतन भुगतान के लिए ठेका मजदूरों का सफल संघर्ष

पंतनगर/ पंतनगर विश्व विद्यालय के गार्डन सेक्सन में कार्यरत ठेका मजदूरों को पिछले माह जनवरी 2023 का वेतन भुगतान होने में देरी से मजदूर काफी आक्रोशित थे। अंततः उनके सब्र का बांध 22 फरवरी 2023 को टूट गया। करीब 60-70 ठेका मजदूरों ने सुबह काम बंद कर दिया। उन्होंने माह में 26-27 कार्य दिवस, मासिक वेतन भुगतान कराने और समय से वेतन भुगतान कराने की मांग की। वेतन भुगतान को लेकर एक दिन पहले 21 फरवरी को भी एक घंटे काम बंद किया गया था। मजदूरों ने वेतन न मिलने पर दूसरे दिन पुनः काम बंद करने की चेतावनी दी थी। अंततः प्रशासन द्वारा वेतन भुगतान करने पर ही मजदूर काम पर लौटे। मालूम हो कि विश्वविद्यालय में पिछले 18-20 सालों से लगातार कार्यरत करीब 2700 ठेका मजदूर श्रम कानूनों द्वारा देय बोनस, बीमा, ग्रेच्युटी, चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। इन्हें कभी समय से वेतन भुगतान नहीं किया जा रहा है। गार्डन विभाग के अलावा कुछ रिसर्च सेंटरों और विभिन्न परियोजनाओं में कार्यरत सैकड़ों ठेका मजदूरों को भी अभी तक पिछले माह जनवरी 2023 का वेतन भुगतान नहीं किया गया है। जबकि नियमानुसार ठेका मजदूरों को हर महीने की 7 तारीख तक वेतन भुगतान किया जाना चाहिए। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा हर महीने की 7 तारीख एवं विलम्वित 10 तारीख तक वेतन भुगतान करने के आदेश दिए गये हैं। इतना ही नहीं स्वयं कुलपति द्वारा आदेश जारी कर ठेका मजदूरों को हर माह के प्रथम सप्ताह में वेतन भुगतान किए जाने का निर्देश दिया गया है और हर माह 26 कार्य दिवसों का भुगतान किए जाने का निर्देश दिया गया है परंतु आज तक इन आदेशों का पालन नहीं किया गया है। महीने में 15-20 दिन ही काम दिया जाता है। गार्डन सेक्सन में ठेका मजदूरों को विभागीय आवास तक नहीं दिया जा रहा है। जहां अफसरों को कई-कई कमरों के आवास आवंटित किए गए हैं। वहीं अति अल्प वेतन भोगी ठेका मजदूर किराए के मकानों में तो कुछ ठेका मजदूर खुले मैदान में पन्नी टांगकर ठंड, गर्मी, बरसात में नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त हैं। तमाम निवेदन के बावजूद अमानवीय गार्डन अधिकारियों द्वारा कोई सुनवाई नहीं हो रही है। ठेका मजदूरों ने बताया कि ठेकेदार हम लोगों का फोन तक नहीं उठाता है। ठेका मजदूर कल्याण समिति द्वारा समय से वेतन भुगतान करने को लेकर लगातार शासन-प्रशासन से लिखित, मौखिक अनुरोध किया जा रहा है। और हर महीने की 7 तारीख तक वेतन भुगतान कराने की मांग की जा रही है। बावजूद अभी तक मजदूरों को समय से वेतन भुगतान नहीं किया जा रहा है। समय से वेतन भुगतान नहीं करने के कारण ठेका मजदूरों के परिवारों के भरण-पोषण, बच्चों की स्कूल फीस, आवास किराया, राशन, सब्जियों को लेने में आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। प्रशासन द्वारा अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। -पंतनगर संवाददाता

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।