सरकार के सरकारी स्कूलों व सम्बद्धता प्राप्त स्कूलों में 1995 से मध्याहन भोजन (मिड डे मील) योजना चल रही है जिसे अब पी एम पोषण योजना के नाम से भी जाना जाता है। देश स्तर पर लगभग 25 लाख कर्मचारी स्कूलों में खाना बनाने का काम करते हैं। सरकार के खुद अपने सरकारी स्कूलों में मिड-डे-मील कर्मचारियों का अथाह शोषण-उत्पीड़न हो रहा है। यह कर्मचारी स्कूल खुलने से बंद होने तक खाना बनाने के अलावा कई काम करते हैं जिसके एवज मे कई राज्यों में मात्र 1500 रु. मानेदय दिया जा रहा है। मिड-डे-मील कर्मचारियों की समस्याओं व उनके अथाह शोषण-उत्पीड़न के विरोध में संघर्ष हेतु राष्ट्रीय स्तर पर मोर्चा बनाने का प्रयास जारी हैं। जिसकी पहली बैठक 18 फरवरी को नई दिल्ली के जंतर-मंतर के निकट एक पार्क में सम्पन्न हुई।
मिड-डे-मील कर्मचारियों की वर्तमान स्थिति में बदलाव व संघर्ष हेतु मोर्चा गठित करने का प्रयास किया जा रहा है जिसका राष्ट्रीय संयुक्त असंगठित श्रमिक रसोईया मोर्चा नाम दिया जाना तय हुआ है। जिसमें चेन्नई, उ.प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है। इनसे व्यक्तिगत मुलाकात व फोन से चर्चा की गयी व मोर्चे में शामिल होने की सहमति ली गयी।
18 फरवरी को दिल्ली में इसकी पहली बैठक हुई जिसमें उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तराखण्ड से प्रतिनिधि शामिल हुए। अन्य राज्यों के प्रतिनिधि जो मोर्चे में शामिल हैं वह बैठक में अनुपस्थित रहे। बैठक में मिड-डे-मील कर्मचारियों की समस्याओं व मांगों पर चर्चा की गयी। राष्ट्रीय स्तर पर मोर्चा बनाने के लिए देश के सभी राज्यों के नेतृत्व से मुलाकात कर बैठक में बुलाये जाने पर चर्चा की गयी। अभी मोर्चा गठित नहीं हुआ है। देश स्तर पर मजबूत संगठित मोर्चा बनाया जाए, इसके प्रयास जारी हैं। मार्च मध्य में इसकी दूसरी बैठक करना तय किया गया है। छत्तीसगढ़ से आयी यशोदा साहू अपने साथ 200 लोगों को लेकर दिल्ली पहुंची हुई थीं। उन्होंने बैठक से पूर्व जंतर-मंतर में सभा की और एक ज्ञापन प्रधानमंत्री के लिए प्रेषित किया जिस वजह से मीटिंग 11 बजे के स्थान पर 2 बजे प्रारम्भ हुई। यशोदा ने बताया कि उनके राज्य में 5-6 माह से मिड-डे-मील कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया गया है। वहां मात्र 1500 रु. का मानदेय वह भी 10 माह का ही दिया जाता है। बोनस, ड्रेस, का कोई पैसा नहीं आता है। सरकार स्कूलों में लकड़ी के चूल्हें पर खाना बनवा रही है। चूल्हे में प्रयोग होने वाली लकड़ी का इंतजाम भी रसोइयों को ही करना होता है जिसका पूरा पैसा उन्हें नहीं मिलता है। मंत्री, विधायक आंदोलन होने पर मानदेय बढ़ाने का आश्वासन देते हैं लेकिन अभी तक कोई मानदेय नहीं बढ़ा है।
उत्तर प्रदेश से आये तैयब अंसारी कहते हैं कि छत्तीसगढ़ की तरह ही यहां भी सारी समस्याएं मौजूद हैं। बच्चे कम होते ही मिड-डे-मील कर्मचारियों को कभी भी विद्यालय से निकाल दिया जाता है। हमें देश स्तर पर बड़ा प्रदर्शन करना चाहिए।
उत्तर प्रदेश से आये मृदलेश ने कहा हमें मोर्चा जल्द से जल्द बना कर राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन करना चाहिए।
उत्तराखण्ड से प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, उत्तराखण्ड, नैनीताल से पहुंची रजनी ने कहा कि मिड-डे-मील कर्मचारियों से स्कूलों में चार कर्मचारियों (माली, सफाई कर्मचारी, चतुर्थ कर्मचारी, चौकीदार) का काम लिया जा रहा है। कहीं स्कूलों में मिड-डे-मील कर्मचारी शिक्षकों के अभाव में पढ़ाने तक का काम कर रही हैं। सरकार उनसे बंधुआ मजदूरी (बेगार) करवा रही है। देश के एक पद पर काम करने वाले मिड-डे-मील कर्मचारियों के वेतन में बड़ी असमानता है। पुडुचेरी में 21,000 रु. तो तमिलनाडु में 12,000 रु. और केरल में 9,000 रु. का वेतन तो छत्तीसगढ़, यू.पी., बिहार में 1500 का मानदेय दिया जा रहा है। हरियाणा में 3500 रु. तो उत्तराखण्ड में 3000 रु. मानदेय है। स्कूलों में शोषण-उत्पीड़न चरम पर है। जातीय उत्पीड़न का दंश अलग से झेलना होता है। हमें इन तमाम समस्याओं के हल की दिशा में बढ़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक मोर्चा बनाना होगा जिसकी कोर मजबूत व संगठित हो। देश स्तर पर सभी प्रगतिशील व क्रांतिकारी ताकतों को मिड-डे-मील कर्मचारियों के इस मोर्चा के गठन के लिए सहयोग देना चाहिए।
हमारे संयुक्त प्रयास से यह संघर्ष आगे बढ़ इंकलाब में अपनी भूमिका बनाने में मददगार होंगे।
बैठक के अंत में सबकी सहमति बनी कि वे देश स्तर पर मिड-डे-मील कर्मचारियों के नेतृत्व से मुलाकात कर राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत मोर्चो बनाने की ओर बढ़ेंगे। -दिल्ली संवाददाता