उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में एक कस्बा है सहसवान। यहां के दो नजदीकी परिवारों के मामूली विवाद में पुलिस की अनैतिक भूमिका के कारण एक बड़ी और हृदय विदारक घटना घट गई। एक युवक ने कोतवाली में खुद पर पेट्रोल छिड़क कर आग लगा कर जान दे दी। हालांकि घर वालों ने पुलिस पर ही युवक को जलाकर मारने का आरोप लगाया है। इस मामले में अगर सहसवान की कोतवाली पुलिस चाहती तो वह मामला समझौते से सुलझा सकती थी। इस अप्रिय घटना को होने से बचाया जा सकता था। इस घटना के बारे में जानने के लिए क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन और यू पी डेमोक्रेटिक फोरम की चार सदस्यीय टीम पीड़ित परिवार के गांव और श्रीपाल के अंतिम संस्कार में शामिल होने गई।
सहसवान कोतवाली के अंतर्गत लगभग 8-10 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है। गांव का नाम है केशो की मढैया। बताया ये भी गया कि ये पूरा गांव एक ही खानदान का है। इस गांव में श्री श्योराज सिंह यादव अपने पूरे परिवार के साथ रहते हैं। उनके पांच लड़के हैं। इनके नाम श्रीपाल, वीरपाल, कुंवरपाल, अनेगपाल और कल्लू हैं। इसी गांव में श्योराज सिंह के साढू यानी श्योराज की पत्नी श्रीमती ईश्वरवती की सगी बहन और बहन के पति भी परिवार सहित रहते हैं। इनके परिवार में महेश, जुगेंद्र, दुर्वेश, राजवीर आदि लोग रहते हैं। श्योराज सिंह का अपने इन रिश्तेदारों से ही खेत की मेंढ़ को लेकर विवाद था। यह विवाद पहले ट्यूबवेल के पानी को लेकर भी रहा था। लेकिन श्योराज के लड़कों ने अपना ट्यूबवेल लगवा लिया। उसके बाद एक खेत की मेंढ़ को लेकर विवाद चलता रहा। इन्ही विवादों के चलते इन परिवारों में अक्सर ही झगड़े होते रहते थे। इन मामलों में पीड़ित पक्ष ने कोतवाली में एक मुकदमा लिखाया। यह मुकदमा धारा 452 में लिखा गया। इसमें पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी। इसके बाद पीड़ित पक्ष के खिलाफ ही 325 का फर्जी मुकदमा लगा दिया। फिर पीड़ित पक्ष को परेशान करने का सिलसिला चलने लगा। इसी क्रम में आरोपी महेश आदि ने श्योराज सिंह के घर में घुसकर कुंवर पाल की पत्नी ममता और उनकी मां ईश्वरवती को मारा-पीटा। परिवार ने बताया कि इस घटना के वीडियो भी उनके पास हैं। इस घटना की तहरीर लेकर जब अनेगपाल कोतवाली गए तो उनकी तहरीर फाड़ कर फेंक दी गई। उल्टे अनेगपाल को ही थाने में बंद कर दिया गया और अनके साथ मारपीट की गई। इन्हें अगले दिन ही पुलिस ने पैसे लेकर कोतवाली से छोड़ा।
इसी मामले में 26 जनवरी को पुलिस ने वीरपाल को कोतवाली में बुलाया और उन्हें बंद कर दिया। तीन दिन तक लॉकअप में बंद करके वीरपाल के साथ मारपीट की गई। उसके बाद 151 में जमानत लेने के बाद छोड़ा गया। ये लोग परेशान थे कि आरोपियों पर कोई कार्यवाही होने के बजाए पुलिस इन्हीं लोगों को थाने में बुला-बुलाकर पीट रही है। इन लोगों को विभिन्न तरीके से धमकाकर, फर्जी मुकदमे लगाने की धमकी आदि तरीकों से कई बार मोटी रकम भी पुलिस ने ऐंठ ली। इन मामलों में परिजनों ने क्राइम इंस्पेक्टर दिगंबर सिंह और एक दरोगा गीतम सिंह की मुख्य भूमिका को बताया। इसी से ये लोग दहशत में आ गए। 6 फरवरी को पुलिस ने श्रीपाल को कोतवाली बुलाया। स्थानीय मीडिया खबरों के अनुसार श्रीपाल जब कोतवाली गया तो उसने कोतवाली के गेट पर खुद पर पेट्रोल डालकर आग लगा ली। क्योंकि वह डरा हुआ था कि पुलिस ने उसके भाइयों को बुलाकर थाने में पीटा था। इस घटना के बाद श्रीपाल को इलाज के लिए ले जाया गया। इस दौरान श्रीपाल का इलाज बदायूं, सैफई, बरेली और दिल्ली के बड़े-बड़े चिकित्सा संस्थानों में हुआ लेकिन श्रीपाल को बचाया नहीं जा सका। अंततः उसने 19 जनवरी को दिल्ली में अंतिम सांस ली। श्रीपाल का इलाज इनके परिवार ने ही कराया। इलाज के लिए पूरा परिवार कर्ज में डूब गया। श्रीपाल जिस गाड़ी (छोटा हाथी) को चलाते थे, उससे लेकर जमीन तक गिरवी रख दी गयी। उनके परिवार का कहना था कि सब कुछ तबाह कर देने के बाद भी हम उसे बचा नहीं पाए। इस मामले में प्रशासन की ओर से कोई मदद नहीं मिली। परिवार के मुताबिक लगभग 20 लाख रुपए खर्च हो गए।
टीम जब उनके परिजनों से मिली तो घटना के बारे में अलग ही जानकारी मिली। परिजनों का कहना था कि श्रीपाल जब कोतवाली गया तो पुलिस ने उसे बहुत मारा-पीटा। श्रीपाल की मां ने बताया कि कोतवाली पुलिस ने पेट्रोल छिड़ककर पटे से पिटाई की, उसके बाद पुलिस ने ही कोतवाली के अंदर आग लगा दी। एक चीज और है, परिजनों ने बताया कि जिस तरह से श्रीपाल का शरीर जला था उससे लग रहा था कि पुलिस ने उसे बुझाने की भी कोशिश नहीं की। उनका कहना था कि वो जलता हुआ बाहर आया, जमीन पर लोट रहा था तो किसी बाहरी व्यक्ति ने ही उस पर पानी और मिट्टी डाली। इसके बाद उसे इलाज को ले जाया गया। परिजनों को सारा कुछ होने के बाद सूचना मिली। उसके बाद वे सीधे अस्पताल ही पहुंचे।
श्रीपाल की मौत के बाद जब उनका शव गांव आया तो उनके परिवार ने इस घटना का विरोध किया। शव काफी समय गांव में रखा रहा। इसके बाद पुलिस प्रशासन सक्रिय हुआ। पूरा गांव छावनी में तब्दील कर दिया गया। परिवार पर अंत्येष्टि के लिए दबाव बनाया जाने लगा। लेकिन परिवार मुआवजे की मांग कर रहा था। अंततः प्रशासन और परिजनों के बीच एक लिखित समझौता हुआ। मीडिया खबरों के अनुसार एक सरकारी आवास, विधवा पेंशन तथा कुछ अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ, इसके अलावा इलाज का 10 लाख रुपए देने की बात है। लेकिन पहली बात तो यह कि परिजनों के मुताबिक इलाज में 20 लाख खर्च हुआ। दूसरे यह समझौता कब तक लागू होता है यह देखने की बात है। तीसरी बात यह कि ये कोई मुआवजा नहीं है। ये तो उन योजनाओं का लाभ दिलाने की बात है जिनका ढिंढोरा सरकार पीटती रहती है। उत्तर प्रदेश की पुलिस की वजह से जो घटना हुई वह अत्यंत शर्मनाक है। इससे परिवार की अपूरणीय क्षति हुई है। अभी श्रीपाल की उम्र भी लगभग 35 वर्ष के आस-पास थी। उनकी पत्नी के अलावा उनके चार बेटियां हैं। श्रीपाल की मां ने बताया कि उसकी पत्नी इस समय गर्भवती भी है। इलाज में हुए कर्ज और सारा कुछ गिरवी रखने के कारण स्थिति खराब है। ऐसे में इस परिवार के पास जीविकोपार्जन का संकट है। इसलिए इनके लिए ठीक-ठाक मुआवजे की जरूरत है। हाल फिलहाल पुलिस प्रशासन ने दबाव डालकर मामले को निपटाने की कोशिश की है।
इस घटना के बाद आरोपी के परिवार के 5 लोगों को जेल भेज दिया गया है। लेकिन पीड़ित परिवार ने जिन पुलिस वालों पर उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं उन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
हम सभी जानते हैं कि गांव में नाली, खेत, मेंढ़ आदि को लेकर परिवारों और पड़ोसियों में लड़ाई-झगड़े होना आम बात है। कई बार ऐसे झगड़े गांव में ही निपटा लिए जाते हैं तो कई बार झगड़े में शामिल पार्टियां पुलिस के पास जाती हैं। वहां पर कई बार पुलिस आपस में समझौता करा देती थी या दोनां पार्टियों का चालान कर देती थी तब लोग जमानत करा लेते थे। लेकिन अब मामलों को अलग तरीके से हैंडल किया जाता है। अब पुलिस के पास मामला पहुंचने पर पुलिस उचित कार्यवाही करने की जगह ऐसे मामलों को अवैध उगाही का जरिया बना लेती है और अगर एक पार्टी रसूखदार है तो दूसरी पार्टी का जमकर उत्पीड़न किया जाता है। पैसे वाले लोग अपनी विरोधी पार्टी के लोगों को पिटवाने के लिए भी पुलिस को पैसे देते हैं। और पुलिस लोगों को थाने बुला-बुला कर पीटती है और उन्हें फर्जी मामलों में फंसा देने की धमकी देकर पैसों की उगाही भी करती है। इस तरह ऐसे छोटे-छोटे जनता के आपसी झगड़े पुलिस प्रशासन की लूट का जरिया बन जाते हैं। कई सारे स्थानीय स्तर के छुटभैये नेता भी इन मामलों में अपनी भूमिका निभाते हैं और उगाही में बंदरबांट करते हैं।
ऐसा ही मामला श्रीपाल और उनके परिवार के साथ हुआ है। पुलिस ने मामले को समय रहते निपटाने के बजाए, समझौता कराने के बजाए पीड़ितों को डराने-धमकाने का काम किया। उनसे उगाही की और अंततः एक पीड़ित की जान ले ली। पिछले समयों में पुलिस कस्टडी में उत्पीड़न बड़ा है। हिरासत में मौतें भी बढ़ी हैं। श्रीपाल की इस मौत के लिए आपसी विवाद की जगह पुलिस का रवैया ही जिम्मेदार है। इस तरह की घटनाओं के लिए आज की दमनकारी, उत्पीड़नकारी पूंजीवादी व्यवस्था जिम्मेदार है। इस व्यवस्था के खिलाफ एकजुट संघर्ष की जरूरत है।