बसाया तो नहीं लेकिन उजाड़ डाला

5 साल में 30,000 से अधिक निर्माण ढहाये

राज्य सभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में आवास एवं शहरी मामलों के राज्यमंत्री तोखन साहू ने बताया कि पिछले पांच सालों में दिल्ली में विभिन्न भूमि स्वामित्व रखने वाली संस्थाओं द्वारा 30,853 निर्माणों को तोड़ा गया है। 2019 में 4804; 2020 में 2967; 2021 में 2927; 2022 में 4014; 2023 में सबसे अधिक 16,138 निर्माणों को धवस्त किया गया।

गौरतलब है कि जी-20 बैठक की तैयारी के दौरान दिल्ली में बडे पैमाने पर गरीबी के चिन्ह मिटाये गये थे। साल 2023 में इस कारण ही ध्वस्तीकरण बडे पैमाने पर किये गये।

यह तो सिर्फ आंकड़े हैं जो संसद में पेश किये गये। इन आंकड़ों में हजारों मजदूरों, मेहनतकश लोगों की कहानियां लिपटी हुई हैं। उनका दर्द, बेबसी छिपी हुई है।

बेरहमी से घर, दुकान तोड़ देना शासकों का आम जनता के प्रति विध्वंसक चरित्र को ही दिखाता है।

आलेख

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को