भारतीय राज्य और बाबा राम रहीम

    पिछले कुछ समय से डेरा सच्चा सौदा के बाबा गुरमीत उर्फ राम रहीम का मामला सुर्खियों में है। कुछ समय पहले राम रहीम ने मैसेंजर ऑफ गॉड फिल्म भी बनाई थी जिसमें खुद को ईश्वरीय शक्ति के रूप में इसने प्रचारित किया था। फिलहाल यह सुर्खियां यौन शोषण के मसले पर चल रहे मुकदमे व इसके बाद हुई हिंसा के चलते हैं। आज से तकरीबन 15 वर्ष पहले दो साध्वियों ने यौन शोषण का आरोप राम रहीम पर लगाया था। इन लड़कियों ने अटल बिहारी वाजपेई की सरकार तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भेजे गुमनाम पत्र में यह आरोप लगाये थे जिसमें यह भी कहा गया था कि ऐसा कई लड़कियों के साथ राम रहीम ने किया है। <br />
    पत्र में यह भी लिखा गया था कि राम रहीम की ताकत व पहुंच के साथ ही घर वालों के अंधविश्वास के चलते कुछ न कर पाने को मजबूर हुए व चुपचाप सब कुछ सहते रहे। राम रहीम अपनी पहुंच, हथियारों व गुंडों का खौफ इन सभी विरोध करने वालों को दिखाता था। कुछ ऐसे भी थे जो घर वापस आ गये। इनके इस पत्र को तब अखबार में छापने वाले पत्रकार की हत्या राम रहीम ने करवा दी। यौन शोषण के इस आरोप के बाद ही हाईकोर्ट के इसे स्वतः संज्ञान में लेने से राम रहीम के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। जिस पर सी.बी.आई. जांच चल रही थी। सी.बी.आई. की कोर्ट में ही मामला चल रहा था। इन 15 सालों में राम रहीम ने अपनी दौलत, हैसियत एवं ताकत में कई गुना इजाफा कर लिया था। <br />
    धार्मिक गतिविधियों के जरिये लोगों में अंधविश्वास व धार्मिक पूर्वाग्रहों का इस्तेमाल करके व लोगों के बीच कुछ राहत के काम करते हुए इसने अपने नेटवर्क को मजबूत किया। एक साम्राज्य खड़ा कर लिया जिसके चलते लाखों की तादाद में लोग इसके अनुयायी बने थे। राजनीतिक पार्टियों से इसके गहरे सम्बन्ध रहे हैं। विशेषकर भाजपा से। 7 अक्टूबर 2014 को विधायक के लिए खड़े भाजपा के 44 उम्मीदवारों की बैठक राम रहीम के साथ सिरसा में होती है जिसमें कैलाश विजयवर्गीय भी शामिल थे। एक बैठक अमित शाह के साथ भी हुई थी तभी पिछले विधान सभा चुनाव में राम रहीम ने खुलकर भाजपा को समर्थन दिया था। <br />
    25 अगस्त पंचकुला की सी.बी.आई. कोर्ट में राम रहीम की पेशी थी। हरियाणा की खट्टर सरकार ने 700 एकड़ के भव्य क्षेत्र में रह रहे यौन शोषण के आरोपी राम रहीम से गुजारिश की कि वह पेशी पर जाएं। राम रहीम ने अपने हवाई जहाज से कोर्ट जाने की बात की। लेकिन फिर फासीवादी खट्टर सरकार ने जैसे तैसे गाड़ी से कोर्ट जाने के लिए बाबा को मनाया। अंततः 400-800 गाड़ियों का काफिला कोर्ट की ओर रवाना हुआ था भाजपा सरकार ने ऐसा करने की प्रशासनिक अनुमति भी दी। <br />
    इस बात की संभावना दिखने लगी थी कि कोर्ट में फैसला पक्ष में न आने पर बाबा के लम्पट समर्थक विरोध या हिंसा कर सकते हैं। लेकिन भाजपा सरकार ने इन लाखों समर्थकों को रोकने के लिए व उनको एकजुट न होने देने के कोई विशेष प्रयास नहीं किये। धारा 144 लागू की तो वह भी केवल नाम के लिए। अंततः कोर्ट के आदेश के बाद ही हरियाणा की भाजपा सरकार ने अर्धसैनिक बलों को बुलाया। लेकिन तब भी कोई सख्ती नहीं की गयी। परिणाम फिर वही हुआ जैसा होने की संभावना जताई गयी थी। जैसे ही हाईकोर्ट ने धूर्त, लम्पट व अपराधी राम रहीम को यौन शोषण के दोषी होने का फैसला सुनाया वैसे ही बाबा के लम्पट समर्थकों का तांडव शुरू हो गया। लगभग 32 लोगों की 26 अगस्त तक मौत हो गयी। जबकि 250 से ज्यादा लोग घायल हो गये। <br />
    इसके अलावा बसों, गाड़ियों व रेलों में आगजनी व तोड़ फोड़ की गयी। अब एक ओर 5 राज्यों में अलर्ट जारी किया गया है जबकि कई शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है इंटरनेट पर रोक लगा दी गयी है। <br />
    एक ओर हिंसा व इसमें मारे जाते लोग तो दूसरी ओर खट्टर सरकार से लेकर केन्द्र की मोदी सरकार का सुर अपराधी राम रहीम के प्रति बहुत नरम है। बाबा के भक्तों द्वारा ‘‘भारत का नक्शा मिटा देंगे’’ नारा लगाने पर आज फासीवादी संघी राष्ट्रवादियों की जुबान को लकवा मार गया है। मोदी ‘‘शांति’’ संदेश के लिए ट्वीट कर रहे हैं। साक्षी महाराज कोर्ट को डरा रहे हैं। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधाओं के हिसाब से जो कोई भी अपराधी राम रहीम व उसके लम्पट दस्ते की आलोचना कर रहे हैं वह भारतीय संस्कृति को बदनाम कर रहे हैं। कुल मिलाकर फासीवादियों ने खुद को बेनकाब करने के साथ-साथ अपनी पक्षधरता भी साफ कर दी है। वह यह कि वह महिलाओं के खिलाफ अपराध को अंजाम देने वाले लम्पट व धूर्त संतों के साथ है जैसे कि अतीत में वे बलात्कार के आरोपी स्वामी नित्यानंद के साथ खड़े थे। <br />
    दरअसल राम रहीम, आशाराम, नित्यानंद स्वामी, ओम रजनीश, निर्मल बाबा आदि आदि इसकी फेहरिस्त लम्बी है। इन सभी को राजनीतिक पार्टियों का भी संरक्षण प्राप्त रहता है। कांग्रेस के साथ चंद्रास्वामी का नाम भी चिपका हुआ था। प्रधानमंत्री से चंद्रास्वामी के सीधे सम्बन्ध थे। दूसरे रूप में कहा जाए तो यह कि भारतीय राज्य अपनी जहनियत में कभी भी धर्मनिरपेक्ष नहीं रहा है। शासकों ने शुरू से ही अपने फायदे में धर्म को अपनी गोद में पाला पोसा है इसे संरक्षण प्रदान किया है। <br />
    शासकों ने धर्म, धार्मिक संस्थाओं को नियंत्रित करने, सार्वजनिक जीवन में इसके दखल को खत्म करने तथा इसे निजी जीवन तक सीमित करने के कोई भी कदम कभी नहीं उठाये। धर्म को राज्य के मामलों में, राजनीति में लाने पर कभी रोक नहीं लगाई गयी। इसके उलट इन दोनों का साथ शुरू से ही बना रहा। पूंजीवादी राजनीतिज्ञ धर्म, धार्मिक त्यौहार-कार्यक्रमों व संस्थाओं में आते जाते रहे व इसका इस्तेमाल करते रहे। इसी का नतीजा आज एक ओर राम रहीम के रूप में दिखाई देता है जो अपने लम्पट दस्तों के जरिये राज्य के कानूनों को चुनौती देने लगता है व खुद को राज्य के ऊपर समझने का भ्रम पाल बैठता है। तो दूसरी तरफ फासीवादी संघ परिवार है, भाजपा है जिन्होंने साम्प्रदायिक धु्रवीकरण के जरिए अपना प्रसार किया है और मौजूदा वक्त में इन्हें शासक एकाधिकारी पूंजी ने सत्ता पर बैठाया है। इनकी ताकत राम रहीम जैसे बाबाओं के होने से जिनके लाखों अनुयायी हैं, काफी बढ़ जाती है। <br />
    राम रहीम सरीखे लम्पट बाबाओं और उनके सहयोग से फलते-फूलते संघ-भाजपा के फासीवादी मंसूबों को चुनौती भारतीय राज्य की छद्म धर्मनिरपेक्षता को निशाने पर लिए बगैर नहीं दी जा सकती। 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।