दिल्ली : बस्ती बचाने के संघर्ष में शामिल होने पर इंकलाबी मजदूर केन्द्र के प्रभारी को मिली पुलिस हिरासत और उत्पीड़न

दिल्ली/ देश की राजधानी दिल्ली में स्थित खैबरपास बस्ती पर 13 जुलाई से बुल्डोजर चल रहा है। दिल्ली विधानसभा के पास स्थित इस बस्ती में मजदूर मेहनतकश आबादी पिछले 70-80 साल से रहती आ रही है। अवैध कब्जा बताकर कर इसे बुल्डोजर से जमींदोज किया जा रहा है। लोग अपने आशियाने को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

संघर्ष की खबर मिलने पर इंकलाबी मजदूर केंद्र कार्यकर्ता मुन्ना प्रसाद 2 अगस्त को सुबह खैबरपास बस्ती के निवासियों के संघर्ष में शामिल होने के लिए गए। जहां उन्होंने बस्ती तोड़े जाने की निंदा की और एकजुट होकर संघर्ष करने की बात कही।

इसके बाद सिविल लाइंस थाना की पुलिस ने उन्हें डिटेन कर लिया था। उनका फोन उनसे ले लिया। पुलिस ने आरोप लगाया कि वे बस्ती के निवासियों को दंगा-फसाद करने के लिए भड़का रहे हैं।

मज़दूरों की बस्ती उजाड़ने के विरोध में किसी व्यक्ति का मज़दूरों का साथ देना दिल्ली पुलिस को कतई मंजूर नहीं था। बस्ती में आने को लेकर मुन्ना प्रसाद से तरह-तरह के सवाल पूछे गए। मुन्ना प्रसाद ने निडरता से पुलिस के सवालों के जवाब दिये। मजदूरों के साथ अपनी एकजुटता दिखाना पुलिस को रास नहींं आया और मुन्ना प्रसाद को हवालात में डाल दिया गया।

बार-बार कहने के बाद भी उन्हें उनका मोबाइल नहींं दिया गया। ना ही उनकी डिटेन की सूचना उनके परिजनों, मित्रों को दी गयी। जब पुलिस को यह समझ में आया कि मामला आगे बढ़ सकता है तब आखिर में पुलिस द्वारा रात को 9.35 बजे मुन्ना प्रसाद को छोड़ दिया गया।

पुलिस का यह व्यवहार यूं ही नहीं है। आज सत्ता पर बैठे लोग आम आदमी की बस्तियों को उजाड़कर उन्हें बेघर कर रहे हैं और जो भी व्यक्ति या संगठन उनकी मदद कर रहे हैं उनका भी उत्पीड़न कर रहे हैं।

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को