‘‘दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी’’ का हाल : कठपुतली की तलाश

भारतीय जनता पार्टी दावा करती है कि वह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है। उसका दावा है कि उसकी पार्टी सदस्यता 18 करोड़ की है। हो सकता है कि वह जल्द ही दावा करे कि उनकी पार्टी में 23.6 करोड़ सदस्य हैं। असल में 2024 के आम चुनाव में भाजपा को करीब 23.6 करोड़ मत मिले थे। 
    
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी की हालत यह है कि उसके पास अपना चुना हुआ अध्यक्ष नहीं है। जय प्रकाश नड्डा 2019 में अमित शाह के मंत्रिमण्डल में चुने जाने के बाद पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष बनाये गये थे। और फिर 2020 में उन्हें सर्वसम्मति से पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया गया था। भाजपा में जब आज तक अध्यक्ष पद के लिए चुनाव नहीं हुए तो नड्डा के लिए कौन से चुनाव आयोजित किये जाते। सर्व सम्मति का मूल अर्थ यह था कि मोदी-शाह ने नड्डा को अध्यक्ष नियुक्त किया और बाकी सबने उसे स्वीकार लिया। अंतरिम अध्यक्ष से इस तरह वे पूर्णकालिक अध्यक्ष बने। 
    
नड्डा का कार्यकाल भाजपा के संविधान के अनुसार तीन साल का था जो कि 2023 में समाप्त हो गया। 2023 से नड्डा को आगामी चुनाव के मद्देनजर फिर से अंतरिम अध्यक्ष बना दिया गया। और जब वे केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में बतौर स्वास्थ्य मंत्री शामिल हो गये तो उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया जाना चाहिए। ऐसा नहीं हुआ और उल्टे नड्डा अध्यक्ष बने हुए हैं 
    
परिवारवाद, आतंरिक लोकतंत्र का अभाव, भाई-भतीजावाद और न जाने क्या-क्या आरोप भाजपा अपनी विपक्षी पार्टियों पर लगाती है। स्वयं इस पार्टी का हाल ये है कि इसके यहां अध्यक्ष पद के चुनाव आज तक नहीं हुए हैं। और अब तो यह हद भी हो चुकी है कि संविधान में बदलाव कर दिया गया है ताकि अध्यक्ष के चुनाव का झंझट ही न रहे। करीब पांच महीने पहले भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में यह तय हुआ कि भाजपा का पार्लियामेन्ट्री बोर्ड अध्यक्ष का पद खाली होने की स्थिति में अध्यक्ष पद की नियुक्ति करेगा। आज की स्थिति में इसका इतना ही मतलब है कि नरेन्द्र मोदी जो कि भाजपा के पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष हैं वे जिसे चाहेंगे उसे अध्यक्ष बनायेंगे। आंतरिक लोकतंत्र जाये भाड़ में। मोदी जिसे चाहेंगे वह अध्यक्ष बनेगा। 
    
मोदी जी की दिक्कत यह है कि 18 करोड़ की पार्टी में उन्हें अध्यक्ष के लायक कोई नहीं मिल रहा है। इसलिए नड्डा केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में होने के बावजूद अध्यक्ष का पद संभाले हुए हैं। मोदी जी को व उनके सबसे विश्वस्त शाह को नड्डा की तरह अध्यक्ष पद पर एक कठपुतली चाहिए जिसे वे अपने इशारे पर नचा सकें। ऐसी कठपुतली नहीं चाहिए जो कि कल को नचाने वाले को ही नचाने लगे। इस धोखे से भरी दुनिया में मोदी-शाह को नया अध्यक्ष ढूंढे से नहीं मिल रहा है। तब तक नड्डा ही अध्यक्ष बने रहेंगे।  

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को