इजरायल भेजने को मजदूर भर्ती करती भारत सरकार

उ.प्र. सरकार ने इजरायल में निर्माण मजदूरों के बतौर काम करने के लिए आवेदन आमंत्रित किये हैं। उ.प्र. सरकार द्वारा जारी विज्ञापन में कहा गया है कि भारत सरकार निर्माण मजदूरों को नौकरी पाने का सुनहरा मौका दे रही है। आवेदन में राज मिस्त्री, टाइल मजदूर, शटरिंग आदि मजदूरों को राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन के तहत भर्ती कर इजरायल में सुरक्षित जगहों पर भवन निर्माण में काम देने की बात कही गयी है। मजदूरों को 1.25 लाख रु. प्रति माह वेतन के साथ 15 हजार रुपये प्रति माह बोनस का लालच दिया जा रहा है। यह राशि कम्पनी के खाते में जमा की जायेगी व काम का समय पूरा होने पर मजदूरों को दी जायेगी। 
    
मई माह में भारत सरकार ने इजरायल के साथ 34 हजार निर्माण मजदूरों सहित 42,000 भारतीय मजदूर इजरायल भेजने का समझौता किया था। हालांकि 7 अक्टूबर से शुरू इजरायल द्वारा गाजा नरसंहार के बाद इजरायल में मजदूरों की तेजी से कमी पड़ गयी क्योंकि इजरायल ने फिलिस्तीनी लोगों को काम से निकाल दिया। इसके बाद इजरायल की भारत से मजदूरों की मांग तेजी से बढ़ गई। इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने प्रधानमंत्री मोदी से बात कर जल्द से जल्द मजदूर भेजने को कहा। 
    
इससे पूर्व हरियाणा सरकार ने भी इसी तरह इजरायल भेजने के लिए मजदूर भर्ती का विज्ञापन 15 दिसम्बर को निकाला था जिसमें 10,000 टाइल सेट करने वाले, प्लास्तर करने वाले, शटरिंग, लोहा मोड़ने वाले मजदूरों की भर्ती की बात की गयी थी। 63 माह तक के कांट्रेक्ट के लिए उन्हें 1.55 लाख रु. प्रतिमाह वेतन देने की बात की गयी थी। 
    
उ.प्र. सरकार के विज्ञापन में मजदूर के पास पासपोर्ट होने, 1 से 5 वर्ष तक का करार करने, मजदूर का कोई रिश्तेदार इजरायल में काम किया न होने, मजदूरों की उम्र 21 से 45 वर्ष होने व अपने किराये पर इजरायल जाने संदर्भी शर्तें जोड़ी गई थीं। 
    
इस तरह भारत सरकार इजरायल द्वारा गाजा व वेस्ट बैंक में किये जा रहे नरसंहार में इजरायल का साथ दे रही है। फिलिस्तीनी मजदूरों की नौकरी वाली जगहों पर भारतीय मजदूरों की आपूर्ति कर सरकार प्रकारांतर से इजरायल द्वारा की जा रही हत्याओं की सहभागी बन रही है। मजदूरों को जबरन युद्ध में लगे देश भेज सरकार मजदूरों की जान से भी खिलवाड़ कर रही है। एक ओर युद्ध शुरू होने पर सरकार ने वहां रह रहे भारतीयों को वापस भारत लाने का अभियान छेड़ा वहीं दूसरी ओर भारतीय मजदूरों को युद्ध वाले देश में भेजा जा रहा है। जाहिर है भारत सरकार की नजर में भारतीय मजदूरों की जान का कोई मोल नहीं है। पहले भी तमाम मजदूर संगठन सरकार की इस मजदूर विरोधी मुहिम का विरोध कर रहे थे। अब जरूरत है कि सरकार की इस मुहिम को परवान चढ़ने से रोका जाए।   

आलेख

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इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं। 

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कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है। 

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।