हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सत्ता को सीधे चुनौती देते हुये 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के नजदीक काकोरी के पास रेलगाड़ी रोककर सरकारी खजाना लूट लिया था, क्योंकि क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिये उन्हें धन की आवशयकता थी। इतिहास में यह घटना काकोरी कांड के नाम से प्रसिद्ध है। ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने 1927 में इसके मुख्य आरोपियों- राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को 17 दिसम्बर को गोंडा की जेल में एवं रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और रोशन सिंह को 19 दिसम्बर गोरखपुर, फ़ैजाबाद और इलाहाबाद की जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था। इतिहास में ये महान क्रांतिकारी काकोरी के शहीदों के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनके अधूरे सपनों को साकार करने में जुटे क्रांतिकारी संगठन प्रतिवर्ष 17 व 19 दिसम्बर को इनके शहीदी दिवस मनाते हैं।
दिल्ली की शाहबाद डेरी बस्ती में काकोरी के शहीदों की याद में 17 दिसम्बर को एक सभा का आयोजन किया गया और उसके पश्चात जुलूस निकाला गया। सभा एवं जुलूस में इंकलाबी मज़दूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र एवं परिवर्तनकामी छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
सभा में वक्ताओं ने काकोरी के शहीदों के विचारों पर विस्तार से बातचीत करते हुये कहा कि ये नौजवान क्रांतिकारी गोरे अंग्रेजों की ब्रिटिश हुकूमत को हटाकर उसकी जगह काले अंग्रेजों- देशी पूंजीपतियों और जमींदारों का शासन नहीं कायम करना चाहते थे। 1917 की रूसी क्रांति से बेहद प्रभावित ये क्रांतिकारी असल में देश में मजदूरों-मेहनतकशों का समाजवादी राज कायम करना चाहते थे।
गुड़गांव में मानेसर के औद्योगिक क्षेत्र में ‘काकोरी के शहीदों को लाल सलाम’ सरीखे नारों के साथ एक प्रभात फेरी निकाली गई। इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा निकाली गई इस प्रभात फेरी के अंत में हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति काले अंग्रेजों को विरासत में मिली और आज देश की सत्ता पर काबिज हिंदू फासीवादी इस विघटनकारी नीति पर सबसे अधिक बढ़-चढ़ कर अमल कर रहे हैं। इसका मुकाबला अशफाक और बिस्मिल की ‘‘साझी शहादत साझी विरासत’’ के बल पर करना होगा।
फरीदाबाद में सेक्टर- 55 में एक सभा का आयोजन कर काकोरी के शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई; तदुपरान्त जुलूस निकाला गया। इंकलाबी मजदूर केंद्र और परिवर्तनकामी छात्र संगठन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये वक्ताओं ने कहा कि आज देश की सत्ता पर ऐसी ताकतें काबिज हैं जिनका आजादी के आंदोलन में कोई योगदान नहीं रहा। उन दिनों ये सांप्रदायिक-फासीवादी ताकतें धर्म के नाम पर लोगों को विभाजित कर असल में ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की ही सेवा करती रहीं और आज भी ये नफरत की राजनीति पर सवार होकर देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हितों को एकदम नग्न तरीके से आगे बढ़ा रही हैं।
हरिद्वार में काकोरी के शहीदों को याद करते हुये भेल मजदूर ट्रेड यूनियन कार्यालय में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया; तदुपरान्त खेल भवन तक जुलूस निकाला गया। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि आज काकोरी के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक ही मतलब है कि हिंदू फासीवाद के बढ़ते खतरे के विरुद्ध मजदूरों-मेहनतकशों के क्रांतिकारी संघर्ष को आगे बढ़ाया जाये।
विचार गोष्ठी और जुलूस में इंकलाबी मजदूर केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील भोजन माता संगठन, विप्रो मजदूर कमेटी, राजा बिस्कुट मजदूर संगठन, फ़ूड्स श्रमिक यूनियन (आई टी सी), भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, सीमेंस वर्कर्स यूनियन इत्यादि के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
जसपुर में शहीद यादगार कमेटी की ओर से काकोरी के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये एक सभा आयोजित की गई। शहीद गेट पर आयोजित इस सभा में इंकलाबी मज़दूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, प्रगतिशील भोजन माता संगठन और किसान यूनियन के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
सभा में वक्ताओं ने आज समाज में बढ़ रही महंगाई, कम होते रोजगार और किसानों की समस्याओं पर बात की; साथ ही आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और भोजनमाताओं के अमानवीय शोषण की कड़ी निंदा की।
काशीपुर के पंत पार्क में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया जिसमें इंकलाबी मजदूर केंद्र, भारतीय किसान यूनियन एकता (उग्राहां), क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन और प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के कार्यकर्ताओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
सभा में वक्ताओं ने मजदूरों-किसानों के आज के हालातों पर विस्तार से बात की और मौजूदा सरकार को घोर कारपोरेट परस्त सरकार बताया। उन्होंने कहा कि यह सरकार समाज में हिंदू-मुसलमान का जहर घोलकर असल में जनता के जनवादी अधिकारों को छीन रही है।
रामनगर में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कर काकोरी के शहीदों को याद किया गया। सभा में इंकलाबी मजदूर केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन एवं उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि रामप्रसाद बिस्मिल एक धार्मिक हिंदू पंडित थे जबकि अशफाक उल्ला खां पांच वक्त के नमाजी मुसलमान; आजादी के आंदोलन के दौरान इनकी महान दोस्ती हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक थी।
श्रद्धांजलि सभा के अंत में इसराइल द्वारा गाजा में जारी क़त्लेआम के विरोध में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसमें भारत सरकार से नेतन्याहु और बाइडेन को युद्ध अपराधी घोषित करने की मांग की गई।
हल्द्वानी में काकोरी के शहीदों को याद करते हुये साइकिल-मोटर साइकिल रैली निकाली गई। क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, परिवर्तनकामी छात्र संगठन और प्रगतिशील महिला एकता केंद्र द्वारा आयोजित इस रैली के दौरान क्रांतिकारी गीतों और नारों के साथ जगह-जगह नुक्कड़ सभायें की गईं।
इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि आज शिक्षा लगातार महंगी होती जा रही है जबकि 2 करोड़ नौकरी हर साल देने का वायदा करने वाली मोदी सरकार के राज में बेरोजगारी अपने चरम पर है; महंगाई ने जनता की कमर तोड़ रखी है और महिलाओं के साथ यौन हिंसा व उत्पीड़न की घटनायें लगातार बढ़ रही हैं; मजदूरों-किसानों के हालात लगातार खराब हो रहे हैं और मोदी सरकार इन भयावह होते हालातों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिये देश को सांप्रदायिक नफरत की राजनीति में झोंक रही है।
रुद्रपुर में काकोरी शहीद यादगार कमेटी के नेतृत्व में 17 दिसम्बर को शहीद हुये राजेंद्र लाहिड़ी की तस्वीर के साथ शहीद अशफाक उल्ला खां पार्क से नगर में एक जुलूस निकाला गया। जुलूस में इंकलाबी मजदूर केंद्र, मजदूर सहयोग केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन एवं विभिन्न फैक्टरी यूनियनों से जुड़े लोगों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी भागीदारी की।
19 दिसम्बर को रुद्रपुर में ही खेड़ा कालोनी स्थित अशफाक उल्ला पार्क में काकोरी शहीद यादगार कमेटी द्वारा श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। सभा में वक्ताओं ने काकोरी के शहीदों के विचारों और सपनों पर बात करते हुए कहा कि ये शहीद एक ऐसा समाज चाहते थे जिसमें अमीरों-गरीबों, धर्म-मजहब आदि के नाम पर किसी प्रकार की गैर बराबरी न हो। सभा में अशफाक-बिस्मिल की मित्रता से सीख लेते हुए आज मोदी सरकार की साम्प्रदायिक राजनीति से संघर्ष का संकल्प लिया गया। सभा में तमाम जनसंगठनों व ट्रेड यूनियनों ने हिस्सा लिया।
पंतनगर में इंकलाबी मजदूर केंद्र और ठेका मजदूर कल्याण समिति ने काकोरी के शहीदों की याद में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया। सभा में वक्ताओं ने कहा कि मोदी राज में घोर मजदूर विरोधी लेबर कोड्स बनाकर मजदूरों को अंग्रेजी राज जैसी गुलामी में धकेला जा रहा है; पत्रकारों का दमन हो रहा है और सामाजिक कार्यकर्ताओं को देशद्रोही घोषित किया जा रहा है। ऐसे में काकोरी के शहीदों की विरासत से प्रेरणा लेकर क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाने की जरूरत है।
लालकुंआ में 17 दिसम्बर को काकोरी के शहीदों की याद में श्रद्धांजलि सभा की गयी व 19 दिसम्बर को कार रोड बिन्दुखत्ता में प्रभातफेरी निकाली गयी। सभा व प्रभातफेरी कार्यक्रम में प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र व इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ता मौजूद रहे।
बरेली (उ.प्र.) में पछास, इमके, क्रालोस, प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच द्वारा एक सभा 17 दिसम्बर को की गयी। 19 दिसम्बर को प्रभातफेरी निकाली गयी व इसी दिन अब्दुल्लापुर में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गयी।
बदायूं में 17 दिसम्बर को जन सत्याग्रह मोर्चा द्वारा काकोरी के शहीदों की याद में एक श्रद्धांजलि सभा की गयी। सभा में काकोरी के शहीदों की अधूरी लड़ाई को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया।
बलिया (उ.प्र.) में 19 दिसम्बर को काकोरी के शहीदों की याद में सभा की गयी। सभा में क्रालोस व इमके के कार्यकर्ताओं व स्थानीय जनता ने भागीदारी की।
मऊ में काकोरी के शहीदों की याद में विशाल जुलूस निकाला गया जिसे रोकने की पुलिस की कोशिशों को लोगों ने असफल कर दिया; जुलूस के उपरांत सभा कर पूंजीवाद, साम्राज्यवाद और फासीवाद के विरुद्ध संघर्ष को तेज करने का संकल्प लिया गया।
-विशेष संवाददाता
काकोरी के शहीदों की याद में विभिन्न कार्यक्रम
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को