गाजा पट्टी में जारी नरसंहार का जवाब

इजरायल का गाजापट्टी में नरसंहार और विनाश जारी है। इसका जवाब यमन के हौथी विद्रोहियों ने दिया है। हौथी ने घोषणा की है कि जब तक इजरायल अपना नरसंहार गाजापट्टी में बंद नहीं करता है तब तक इजरायल से आने और वहां जाने वाले जहाजों को वे अपने हमले का निशाना बनाते रहेंगे। यमन के पास बाव अल मंडेब जल डमरूमध्य है। बाब अल मंडेब अदन की खाड़ी को लाल सागर से जोड़ता है। यह जहां पर सबसे कम चौड़ा है, वहां यह 32 किमी. है। स्वेज नहर तक पहुंचने के लिए बाब अल मंडेब से जाना अपरिहार्य हो जाता है। स्वेज नहर के माध्यम से मालवाहक जहाज यूरोप को जाते हैं। 
    
नवम्बर के मध्य से ही हौथी विद्रोही इस क्षेत्र से गुजरने वाले कुछ जहाजों पर हमले कर रहे हैं। 19 नवम्बर को इसने एक अरबपति इजरायली व्यवसायी के स्वामित्व वाले मालवाहक जहाज गैलेक्सी लीडर को अपने कब्जे में कर लिया। तब से हौथी विद्रोही कई मालवाहक जहाजों पर हमला कर चुके हैं। 
    
इन हमलों में वृद्धि के बाद, दुनिया की सबसे बड़ी शिपिंग कम्पनियां लाल सागर और स्वेज नहर के रास्ते को छोड़कर दूसरा बड़ा रास्ता अपना रही हैं। वे जिस रास्ते से मालवाहक जहाजों को ले जा रही हैं वह केप ऑफ गुड होप से होकर समूचे अफ्रीकी महाद्वीप का चक्कर लगा कर यूरोप की ओर जाता है। इस रास्ते को अपनाने से लगभग 3500 समुद्री मील की दूरी बढ़ जायेगी और सात दिन ज्यादा समय लगेगा। इससे मालों की ढुलाई की कीमत और बीमा राशि बढ़ जायेगी तथा देरी से मालों की आपूर्ति होने के चलते आपूर्ति की श्रंखला में बाधा खड़ी हो जा रही है। 
    
दुनिया की अर्थव्यवस्था वैश्विक समुद्री आपूर्ति श्रंखला पर टिकी हुई है। मात्रा के हिसाब से लगभग 80 प्रतिशत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समुद्रों के जरिए होता है। मोबाइल फोन से लेकर कपड़े, काफी, चीनी और लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली निर्मित वस्तुएं, भोजन भी आंशिक रूप से समुद्रों के रास्ते लाया जाता है। 
    
इस प्रकार, समुद्री रास्तों द्वारा मालों के परिवहन के महत्व को समझा जा सकता है। 
    
दुनिया की बड़ी कण्टेनर कम्पनियां मालवाहक जहाज कम्पनियां, तेल टैंकरों वाले मालवाहक जहाजों की कम्पनियां बड़ी एकाधिकार कम्पनियां होती हैं। दुनिया के बड़े एकाधिकारी पूंजीपति इनके मालिक होते हैं। बंदरगाहों के ये कुछ देशों में मालिक होते हैं। ये सिर्फ निजी उपभोक्ता सामानों की नहीं बल्कि बड़े पैमाने पर उद्योगों के लिए जरूरी सामानों/मालों की आपूर्ति करती हैं। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादी इस वैश्विक आपूर्ति श्रंखला से बाधित हो जाने से परेशान हो गये हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी इसलिए भी परेशान हैं क्योंकि मालवाहक जहाजों पर बढ़ते हमले इजरायल द्वारा गाजा में किये जा रहे नरसंहारों के विरोध में हैं और अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा इस इजरायली नरसंहार का खुला समर्थन ही नहीं बल्कि वह इस नरसंहार के लिए इजरायल को अत्याधुनिक हथियार और बड़े पैमाने पर गोला-बारूद मुहैय्या कराकर इस नरसंहार का सहअपराधी बना हुआ है। 
    
हौथी लड़ाकुओं द्वारा मालवाहक जहाजों पर इस इलाके में किये जा रहे हमलों से निपटने के लिए अमरीकी साम्राज्यवादियों ने ‘‘आपरेशन प्रास्पेरिटी गार्जियन’’ नामक अभियान चलाने की शुरूवात की है इसमें दुनिया भर के अपने सहयोगियों और हिस्सेदारों को शामिल करने की उसने घोषणा की। लेकिन अमरीकी साम्राज्यवादियों की इस घोषणा के तुरंत बाद पश्चिम एशिया क्षेत्र की तीन बड़ी ताकतों- संयुक्त अरब अमीरात, साऊदी अरब और मिश्र- ने अपनी नौसेनाओं के इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया। यूरोप के देशों- स्पेन, फ्रांस और इटली ने अमरीकी कमान के तहत इसमें भागीदारी करने से इंकार कर दिया। इसी प्रकार, शुरूवाती बयान में आस्ट्रेलिया शामिल होने की बात करने के बावजूद, बाद में पीछे हट गया। अंततः यह अमरीकी साम्राज्यवादियों का हौथियों के विरुद्ध मुख्यतः अकेला अभियान बन कर रह गया है। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादियों की पश्चिम एशिया के इस क्षेत्र में भारी नौसेना, वायुसेना और जमीनी सेना की उपस्थिति होने के बावजूद वह यमन में हौथी विद्रोहियों पर हमला करने की हिम्मत इसलिए भी नहीं कर रहा है क्योंकि इसके बाद तुरंत ही इस क्षेत्र के अरब शासक अमरीकी साम्राज्यवादियों के खुले विरोध में आ सकते हैं। अभी तक वे फिलिस्तीनियों के पक्ष में जुबानी जमा खर्च करने के सिवाय और कुछ भी नहीं कर रहे हैं। और वह भी अपनी जनता के भीतर फिलिस्तीनियों के पक्ष में व्यापक समर्थन के दबाव में मजबूर होकर ऐसा कर रहे हैं। 
    
लेकिन जैसे ही अमरीकी साम्राज्यवादी यमन के हौथियों पर खुला हमला बोल देंगे, वैसे ही युद्ध का विस्तार क्षेत्रीय स्तर पर हो जाने की पूरी संभावना है। वैसे ही, सीरिया में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड के एक बड़े कमाण्डर मौसावी की इजरायल द्वारा की गयी हत्या के बाद इस युद्ध के क्षेत्रीय युद्ध में बदलने की संभावनायें बढ़ गयी हैं। 
    
ईरान ने हाल ही में जिब्राल्टर (स्पेन के पास) के रास्ते को मालवाहक जहाजों के पारगमन के लिए बंद करने की धमकी दी है। हालांकि यह अभी दूर की कौड़ी लगती है। लेकिन होरमुज जलडमरूमध्य को तो ईरान आसानी से बंद कर सकता है। 
    
जैसा कि ऊपर कहा गया है कि मात्रा में दुनिया का 80 प्रतिशत माल समुद्री रास्ते के जरिए जाता है। जहां तक लाल सागर-स्वेज नहर के रास्ते मालों के पारगमन का प्रश्न है, तो वैश्विक माल परिवहन का 12 प्रतिशत यहां से जाता है। आज वैश्विक आपूर्ति श्रंखला में समुद्री रास्ते का महत्व बहुत बढ़ गया है। इसके पहले इस आपूर्ति श्रंखला में बाधा पहुंचाने वाले मुख्यतः समुद्री लुटेरे होते थे। उनसे निपटना विभिन्न सरकारों के लिए तुलनात्मक तौर पर आसान था। 
    
लेकिन हौथी लड़ाकुओं जैसे संगठनों से साम्राज्यवादियों और दुनिया की प्रतिक्रियावादी सत्ताओं द्वारा निपटना तुलनात्मक तौर पर ज्यादा कठिन है। इनसे मुख्यतया राजनीतिक तौर पर ही निपटा जा सकता है। 
    
जो शक्तियां खुद अन्याय, अत्याचार और नरसंहार का सहयोग कर रही हों, वे हौथी जैसे लड़ाकुओं का तात्कालिक तौर पर नुकसान तो कर सकती हैं लेकिन वे उनका खात्मा नहीं कर सकतीं। 
    
मौजूदा समय में गाजापट्टी में इजरायली नरसंहार व विनाश का जवाब हौथी विद्रोहियों ने जहाजों पर ड्रोन और मिसाइल हमलों से दिया है। इस जवाब से निपटने में फिलहाल अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा बनाये गये गठबंधन में दरारें पड़ गयी हैं। यह अमरीकी साम्राज्यवादियों और यहूदी नस्लवादी इजरायल की एक और हार है। 

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को