8 फरवरी : मजदूर प्रतिरोध दिवस

दिल्ली/ देश भर के 17 संघर्षरत श्रमिक संगठनों/यूनियनों के समन्वय मंच, मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने 23 दिसम्बर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर आयोजित प्रेस कान्फ्रेंस से ‘‘मजदूर प्रतिरोध दिवस’’ मनाने और देशी-विदेशी पूंजी और फासीवादी ताकतों के हमलों के खिलाफ अखिल भारतीय विरोध प्रदर्शन आयोजित करने की घोषणा की।
    
मजदूर-विरोधी नीतियों के खिलाफ और देश में मेहनतकश जनता की जायज मांगों के लिए आगामी 8 फरवरी 2024 को दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, पटना, जयपुर, लखनऊ आदि विभिन्न राज्यों की राजधानियों, गुड़गांव-मानेसर, रुद्रपुर-हरिद्वार, धनबाद-आसनसोल, गोदावरी बेसिन कोयला बेल्ट जैसे विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में और विभिन्न जिला मुख्यालयों में एक साथ विरोध-प्रदर्शन किया जायेगा। शहरी, औद्योगिक और ग्रामीण मेहनतकश जनता देशी-विदेशी पूंजीपतियों और फासीवादी ताकतों द्वारा मेहनतकश जनता पर किए जा रहे हमलों के खिलाफ और मेहनतकश जनता के लिए सम्मानजनक जीवन और वास्तविक जनवाद के लिए 8 फरवरी को सड़कों पर उतरेगी।

इन प्रदर्शनों में मांग की जायेगी कि-
* चार नई श्रम संहिताओं को वापस लिया जाए। मजदूर हित में श्रम कानूनों में सुधार किया जाए, सभी मजदूरों के लिए श्रम कानून की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाए!

* निजीकरण पर रोक लगाई जाए! बुनियादी क्षेत्रों और सेवाओं का राष्ट्रीयकरण किया जाए!

* सभी के लिए रोजगार की, सुरक्षित व स्थाई आय की व्यवस्था की जाए! स्कीम वर्करों (आशा, आंगनबाड़ी, भोजनमाता आदि), घरेलू कामगार, आई टी श्रमिक, गिग वर्कर को ‘मजदूर’ का दर्जा देकर सभी श्रम कानूनों की सुरक्षा और सम्मानजनक वेतन दिया जाये!  ग्रामीण मजदूरों के लिए साल भर काम, सामाजिक सुरक्षा और सम्मानजनक वेतन हो!

* यूनियन बनाने और संगठित होने का अधिकार, हड़ताल-प्रदर्शन का अधिकार सुनिश्चित किया जाये!

* महीने में 26 हजार रुपये न्यूनतम मजदूरी लागू की जाए! सभी के लिए सम्मानजनक निर्वाह मजदूरी सुनिश्चित की जाये! 

* धार्मिक-जातिगत-लैंगिक भेद-भाव व धार्मिक नफरत की राजनीति बंद की जाए! धर्म को निजी मामला मानते हुए उसका राजनैतिक प्रदर्शन बंद किया जाए!
    
प्रेस वार्ता में जन संघर्ष मंच हरियाणा, इंकलाबी मजदूर केंद्र, मजदूर सहयोग केंद्र, मजदूर सहायता समिति, ग्रामीण मजदूर यूनियन, आईएफटीयू-सर्वहारा, टीयूसीआई के प्रतिनिधियों ने कार्यक्रम की घोषणा में भाग लिया और अपने विचार रखे।     -दिल्ली संवाददाता

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को