हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और

जब डोनाल्ड ट्रम्प ने इज़राइल और हमास से युद्ध रोकने की बात कही थी तब उनके दिमाग़ में क्या चल रहा था यह स्पष्ट नहीं था लेकिन धीरे-धीरे उनके नापाक मंसूबे उजागर होते गये। 5 फ़रवरी को वाशिंगटन में इज़राइल के प्रधानमंत्री नैतन्याहु के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने ग़ज़ा और फिलिस्तिनियों के बारे में एक बार फिर अपनी काले इरादे दुहराये।

उन्होंने कहा कि फिलिस्तिनियों को ग़ज़ा के युद्ध क्षेत्र से अलग बसाया जायेगा और ग़ज़ा में पुनर्निर्माण किया जायेगा और इसे मध्य पूर्व का रिवेरा बनाया जायेगा। वे लाखों फिलिस्तिनियों को उनकी मातृभूमि से खदेडकर उसको मनोरंजन की जगह बनाना चाहते हैं।

ट्रम्प की क्लीन ग़ज़ा योजना के सम्बन्ध में नागरिक में छपे इस लेख को पढ़ें :-

ट्रंप की क्लीन गाजा योजना

धूर्त अमेरिकी साम्राज्यवादियों के नए प्रतिनिधि डोनाल्ड ट्रंप के सत्तासीन होते ही आक्रामक होने की ही ज्यादा संभावना थी। अब उन्होंने इस ओर कदम भी बढ़ा दिए हैं। अपनी फासीवादी प्रवृत्ति के अनुरूप उन्होंने गैरकानूनी तरीके से अमेरिका में रह रहे अप्रवासी श्रमिकों को बाहर निकालने का फरमान सुनाया है। अमेरिकी पुलिस इन अप्रवासी श्रमिकों की तलाश में इधर-उधर छापे मार रही है। तो दूसरी तरफ नरसंहार झेलती फिलिस्तीनी जनता के लिए क्लीन गाजा की योजना पेश कर डाली है।

यह क्लीन गाजा की योजना, ट्रंप के हिसाब से फिलिस्तीनी जनता की तबाही-बर्बादी का नायाब समाधान है। गाजा पट्टी में रह रही 23 लाख की आबादी जिसमें से 50 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, एक लाख से ज्यादा घायल हैं और 19 लाख की आबादी शरणार्थियों की स्थिति में रहने को बाध्य कर दी गई थी। इस पीड़ित और नरसंहार को झेलती, तबाह-बर्बाद जनता के लिए क्लीन गाजा योजना के हिसाब से गाजा पट्टी छोड़कर जार्डन और मिश्र के किसी इलाके में बसना होगा और वहां ये शांतिपूर्ण जीवन गुजार सकते हैं।

ट्रंप का यह रुख कोई नया नहीं है। शपथ ग्रहण होने से पहले ही, जब अभी इजरायल-हमास के बीच युद्धविराम समझौता नहीं हुआ था उससे पहले ही ट्रंप ने हमास को धमकी दी थी कि युद्धविराम कर लें अन्यथा गाजा नरक बन जाएगा। गाजा को इजरायली शासक पहले ही तबाह-बर्बाद कर चुके हैं। इमारतें ध्वस्त हो चुकी हैं, पूरी अवरचना ध्वस्त हो चुकी हैं, यह लाखों टन मलबे में बदल चुकी हैं। बमों, रासायनिक चीजों के चलते पानी और वातावरण काफी खराब स्थिति में है। मलबे में 10 हजार शवों के दबे होने के चलते भी बीमारी फैलने का खतरा है।

ट्रंप की क्लीन गाजा योजना इस तबाही-बर्बादी की आड़ लेकर पेश की गई है। ट्रंप ने कहा गाजा अब नरक बन चुका है, वहां रहने लायक स्थिति नहीं है। अनुमान लगाए जा रहे हैं कि गाजा में इजरायली शासकों ने लगभग 19 अरब डालर की अवरचना और इमारतों को ध्वस्त कर दिया है। गाजा के पुनर्निर्माण के लिए न्यूनतम 21 साल लगने और लगभग 37 अरब डालर से ज्यादा लागत अनुमानित है। जाहिर है इस पुनर्निर्माण की आड़ में भी बड़े खेल होंगे।

ट्रंप का यह बयान और क्लीन गाजा इजरायली शासकों की ही नीति और पसंदगी के हिसाब से हैं। यह अमेरिकी साम्राज्यवादियों की पश्चिमी एशिया को किसी भी तरह अपने प्रभाव में बनाए रखने की नीति से पैदा होती है।

क्लीन गाजा योजना फिलिस्तीनी जनता के लिए कहीं से भी सुकूनदायक नहीं है। यह फिलिस्तीनी जनता को उसी की जमीन से उजाड़कर दूसरे देशों में शरणार्थियों की स्थिति में धकेल देने की योजना है। यह योजना इजरायली शासकों के बृहत्तर इजरायल की योजना को आगे बढ़ाती है। इजरायली शासक यही चाहते हैं कि वेस्ट बैंक और गाजा से फिलिस्तीनी जनता को खदेड़कर मिश्र के सिनाई या अन्य जगह घेट्टो के रूप में रहने को विवश कर दिया जाये। समग्र फिलिस्तीन फिर समग्र इजरायल बन जाएगा। इजरायली शासकों का जियनवादी एजेंडा इस रूप में एक हद तक पूरा हो जाएगा।

फिलहाल ट्रंप की क्लीन गाजा योजना का दो जगहों से विरोध है। पहला विरोध फिलिस्तीनी जनता का और इसकी आकांक्षा को स्वर देते संगठनों का है जो अलग फिलिस्तीनी राष्ट्र की आकांक्षा लिए हुए इसके लिए कई दशकों से संघर्षरत हैं। इस जायज और न्यायपूर्ण संघर्ष में अकूत कुर्बानियां जनता ने दी हैं और बेपनाह दुख-दर्द झेला है जो अभी भी जारी है।

दूसरा विरोध मिश्र और जार्डन के शासकों का है और अरब लीग का है। जार्डन के शासक ने कहा है जार्डन जार्डनवासियों के लिए है। फिलिस्तीन फिलिस्तीनियों के लिए। अरब लीग, मिश्र और जार्डन के शासकों का विरोध दरअसल अपनी सौदेबाजी के लिए ही है। वास्तव में इन्हें फिलिस्तीनी जनता से कोई सरोकार नहीं है। अरब लीग में शामिल देशों के शासकों की रब्त-जब्त जहां इजरायली शासकों से हैं वहीं ये अमेरिकी शासकों से भी संबंध बनाए हुए हैं।

अरब लीग के देशों और मिश्र तथा जार्डन एक तरफ इजरायल से तो दूसरी तरफ अमेरिकी शासकों से आर्थिक, सैन्य, व्यापारिक संबंध में हैं। ऐसे में क्लीन गाजा की योजना में इनके सहमत होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि ये सौदेबाजी ही कर सकते हैं। भले ही अभी ये विरोध कर रहे हों।

आज भले ही दुनिया में आम तौर पर ही अमेरिकी, रूसी या अन्य साम्राज्यवादी शासक वर्ग और अन्य देशों के शासक पूंजीपति हर जगह जनवादी आंदोलनों को कुचलने में सफल रहे हों मगर फिर से देर सबेर जनता अपने क्रांतिकारी संघर्षों से इन्हें पीछे हटने के लिए बाध्य कर देगी। फिलिस्तीनी जनता का प्रतिरोध और मुक्ति संघर्ष फिर से उठ खड़ा होगा।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो। 

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ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है। 

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आज भी सं.रा.अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत है। दुनिया भर में उसके सैनिक अड्डे हैं। दुनिया के वित्तीय तंत्र और इंटरनेट पर उसका नियंत्रण है। आधुनिक तकनीक के नये क्षेत्र (संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ए आई, बायो-तकनीक, इत्यादि) में उसी का वर्चस्व है। पर इस सबके बावजूद सापेक्षिक तौर पर उसकी हैसियत 1970 वाली नहीं है या वह नहीं है जो उसने क्षणिक तौर पर 1990-95 में हासिल कर ली थी। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी बेचैन हैं। खासकर वे इसलिए बेचैन हैं कि यदि चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह इस सदी के मध्य तक अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। 

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ट्रम्प ने घोषणा की है कि कनाडा को अमरीका का 51वां राज्य बन जाना चाहिए। अपने निवास मार-ए-लागो में मजाकिया अंदाज में उन्होंने कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को गवर्नर कह कर संबोधित किया। ट्रम्प के अनुसार, कनाडा अमरीका के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसे अमरीका के साथ मिल जाना चाहिए। इससे कनाडा की जनता को फायदा होगा और यह अमरीका के राष्ट्रीय हित में है। इसका पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने विरोध किया। इसे उन्होंने अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता के खिलाफ कदम घोषित किया है। इस पर ट्रम्प ने अपना तटकर बढ़ाने का हथियार इस्तेमाल करने की धमकी दी है। 

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आज भारत एक जनतांत्रिक गणतंत्र है। पर यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को पांच किलो मुफ्त राशन, हजार-दो हजार रुपये की माहवार सहायता इत्यादि से लुभाया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को एक-दूसरे से डरा कर वोट हासिल किया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें जातियों, उप-जातियों की गोलबंदी जनतांत्रिक राज-काज का अहं हिस्सा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें गुण्डों और प्रशासन में या संघी-लम्पटों और राज्य-सत्ता में फर्क करना मुश्किल हो गया है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिक प्रजा में रूपान्तरित हो रहे हैं?