बनभूलपुरा (हल्द्वानी) में हिंसा और कर्फ्यू

उत्तराखण्ड सरकार की अल्पसंख्यक विरोधी राजनीति और प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा

लगभग साल भर बाद बनभूलपुरा एक बाद फिर अतिक्रमण के नाम पर निशाना बना है। इस बार नगर निगम ने नजूल भूमि से अतिक्रमण हटा कर जमीन पर कब्जा लेने का अभियान चलाया। जिसमें उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और स्थानीय जनता को भी भरोसे में नहीं लिया गया। मस्जिद-मदरसा तोड़ने जा रहे पुलिस-अर्द्धसैनिक बलों ने उचित इंतजाम और जानकारी के बिना जल्दबाजी में कार्यवाही की। इससे खराब हुए हालातों के बाद लगे कर्फ्यू से बनभूलपुरा अभी तक आजाद नहीं हुआ है। स्थानीय जनता की स्थिति और अन्य मामलों में सही खबर तो कर्फ्यू खुलने के बाद ही मिल पायेगी। अभी तक ज्ञात तथ्यों के आधार पर बनभूलपुरा की घटना पर रिपोर्ट प्रस्तुत है।

विवाद क्या है?
    
बनभूलपुरा क्षेत्र में ‘मलिक के बगीचे’ के नाम से एक मोहल्ला है। यह जमीन अब्दुल मलिक (जो वर्तमान में इस जमीन के संरक्षक हैं) के पिता मोहम्मद यासीन को 1937 में ब्रिटिश सरकार से लीज में प्राप्त हुयी थी। इस जमीन पर लीज (पट्टा) खत्म हो गयी है। जमीन को फ्री होल्ड करवाने के लिए 2006 से मलिक और उनका परिवार जिला प्रशासन से लेकर उच्च न्यायालय तक प्रयास कर चुका था लेकिन फ्री होल्ड अधिकार प्राप्त नहीं हुआ। उस जमीन पर एक मस्जिद-मदरसे का भी निर्माण हो चुका था। 27 जनवरी 2024 को नगर निगम जमीन पर कब्जा लेने पहुंचा तो बात पुनः उच्च न्यायालय तक पहुंची। नगर निगम ने जमीन के नजूल होने और मस्जिद-मदरसे के अवैध होने का आरोप लगाते हुए अपनी कार्यवाही जारी रखी। 4 फरवरी को भारी विरोध के बीच प्रशासन ने मस्जिद-मदरसे को सील कर दिया। इस बीच 8 फरवरी को उच्च न्यायालय ने अगली सुनवाई 14 फरवरी को करने का आदेश दिया। पर, यथास्थिति बनाये रखने का आदेश नहीं दिया। प्रशासन ने 8 फरवरी को उच्च न्यायालय की सुनवाई के बाद आनन-फानन में शाम को 3 बजे ही कार्यवाही करनी शुरू कर दी।

प्रशासन अतिक्रमण हटाने कैसे गया?
    
हल्द्वानी-काठगोदाम नगर निगम प्रशासन ने जिला प्रशासन के साथ मिलकर बस्ती की ओर कूच किया। इसमें नगर निगम के कर्मचारी, पीएसी, रेगुलर पुलिस, होमगार्ड, पीआरडी के सिपाही सहित महिला सिपाही भी मौजूद थीं। इन सिपाहियों को स्पष्ट तरीके से क्या कार्यवाही करने जा रहे हैं? कार्यवाही कैसे करेंगे? किन बातों का ख्याल रखना है?, इस प्रकार के कोई निर्देश नहीं दिये गये। सभी सिपाहियों को बचाव के लिए उचित जैकेट, हेलमेट, शील्ड, आदि उपलब्ध नहीं कराये गये। इन अधूरी तैयारियों के साथ शाम लगभग 4ः30 बजे फोर्स और जेसीबी मशीनें लेकर प्रशासन ‘मलिक के बगीचे’ में पहुंचा।
    
कार्यवाही शुरू करने के दौरान लोग पास में खड़े होकर विरोध जताते रहे। प्रशासन द्वारा तोड़फोड़ की कार्यवाही जारी रही। स्थानीय लोगों ने विरोध किया तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। लोगों ने प्रशासन के रुख के विरोध में पत्थरबाजी की तो प्रशासन ने भी पत्थरबाजी की। हवाई फायरिंग शुरू कर दी। आंसू गैस के गोले छोड़े गये। घरों में जबरन घुसकर पत्थर मारने वालों को पकड़ा। इस बीच कुछ उपद्रवियों ने निगम के ट्रैक्टर में आग लगा दी। जब बढ़ता विरोध देख प्रशासन पीछे हटा तब तक कई सिपाही घायल हो चुके थे और अब पत्थरबाजी से घायल होते ही जा रहे थे। घनी आबादी क्षेत्र में संकरी गलियों के बीच तुरंत निकल भागना संभव नहीं रहा, जिससे कई सिपाही अधिक घायल हुए। अब उग्र भीड़ हावी हो गयी। प्रशासन की पूरी कार्यवाही कोई सोची-विचारी तथाकथित अतिक्रमण हटाने की योजना के बजाय दो गुटों की झड़प जैसी अधिक है। यहां प्रशासन ने न तो स्थानीय जनता की कोई परवाह की और न ही अपने सिपाहियों की ही। यहां तक कि सरकारी खुफिया तंत्र की हिदायतों को भी नजरअंदाज किया गया। 
    
उपरोक्त के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रशासन ने उच्च न्यायालय में सुनवाई की कोई परवाह नहीं की, स्थानीय लोगों को उचित कानूनी कार्यवाही का भरोसा नहीं दिलाया। यहां तक कि अपने साथ गये सिपाहियों की भी कोई परवाह नहीं की। किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना को न होने देने के लिए प्रशासन सचेत नहीं था। हिंसा और आगजनी प्रशासन की जिद, लापरवाही की देन है।
    
घटना के बाद हिंसा और आगजनी के बाद सिपाही और स्थानीय घायल इलाज के लिए अस्पतालों में पहुंचे। जिला प्रशासन ने रात्रि 8 बजे कर्फ्यू लगा दिया। राज्य की भाजपा सरकार का दावा था कि वह मामले में नजर बनाये हुए है। कर्फ्यू और गोली चलाने के आदेश जारी कर दिये गये। ऐसे में सभी घायलों, मारे गये लोगों और अन्य किस्म के नुकसान की पक्की जानकारी नहीं मिल सकी है। प्रशासन 6 लोगों के मारे जाने की बात बताता है। हां, कर्फ्यू में आतंक राज कायम किया है। 19 लोगों पर नामजद और 5000 अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया है। कर्फ्यू में पुलिस ने कई घरों में घुसकर तोड़फोड़ भी की है। 25-30 लोगों को गिरफ्तार किया है। मुख्यमंत्री धामी कहते हैं ‘उपद्रवियों को नहीं छोड़ा जायेगा’। वहीं गली में गश्त कर रहे सिपाही ‘कल का दिन तुम्हारा था, आज हमारा है, अब देखेंगे तुम्हें’ कह रहे हैं। घटना के 2-3 दिन गुजरने के बाद प्रशासन ने कर्फ्यू में ढील देनी शुरू की। किसी प्रकार से बाहरी मदद नहीं दी जा सकती पर प्रशासन का दावा है कि उसने लोगों को राशन, सब्जी, दूध, अंडे, गैस आदि मदद पहुंचायी है। यह मदद पर्याप्त है या नहीं, पता नहीं। प्रशासन ने इसका ख्याल भी रखा या नहीं, इसकी भी कोई जानकारी नहीं है। कर्फ्यू हटाकर जनजीवन को सामान्य कर ही लोगों को राहत दी जा सकती है। 
    
इस दौरान मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री ने शहर का दौरा किया। घायल सिपाहियों और पत्रकारों से मिले, उनके प्रति संवेदना व्यक्त की। पर, किसी ने घायल बस्तीवासियों के हालचाल पूछना भी जरूरी नहीं समझा। सरकार का यह व्यवहार पक्षपातपूर्ण है।
हालात यहां तक कैसे पहुंचे?
    
हल्द्वानी में इससे पहले कभी प्रशासन के साथ स्थानीय लोगों का इस तरह का कोई बवाल नहीं हुआ था। बनभूलपुरा में अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी अधिक रहती है। केन्द्र की भाजपा सरकार से लेकर राज्य की धामी सरकार तक किसी का भी साम्प्रदायिक व्यवहार किसी से छिपा नहीं है। इनके बयानों से लेकर व्यवहार तक में मुस्लिम विरोध झलक जाता है। मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ‘लैंड जिहाद’ शब्द को प्रचारित-प्रसारित करते रहे हैं। 
    
उत्तराखण्ड में पिछले समय में अतिक्रमण हटाने के नाम पर वनभूमि से मजारें तोड़ी गयीं। इस दौरान वनभूमि में मौजूद मन्दिरों, गुरूद्वारों या अन्य धार्मिक स्थलों को नहीं तोड़ा गया। बनभूलपुरा बस्ती और रेलवे भूमि विवाद में सरकार ने अपनी जमीन न होने की बात कही पर बाद में हुए सर्वे के दौरान सरकार ने जमीन पर अपना दावा पेश किया।
    
हल्द्वानी-काठगोदाम नगर निगम 39,66,125 वर्गमीटर जमीन नजूल में होने का दावा करता है। नगर निगम के आयुक्त ने पिछले दिनों शहर के राजपुरा क्षेत्र में जमीन पर कब्जा ले वहां गौशाला खोलने की बातें कहीं। स्थानीय लोगों में मुस्लिम अल्पसंख्यक अधिक थे। उन्होंने नगर आयुक्त के गौशाला खोलने के प्रस्ताव का विरोध किया। गौवंश के नाम पर पिछले साल ही शहर के कमलुवागांजा क्षेत्र में एक मुस्लिम मजदूर को पीटा और अपमानित किया गया। पता चला कि मामला झूठा था और पैसे के लेन-देन के कारण स्थानीय भाजपा नेता ने इस मामले को बढ़ाया और शहर का माहौल खराब किया। उत्तरकाशी जिले के पुरोला में मुस्लिम अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते हुए ‘लव जिहाद’ की झूठी कहानी ही गढ़ दी गयी। 
    
देश में मुस्लिम अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की इन गतिविधियों के पीछे फासीवादी ‘हिन्दू राष्ट्र’ की एक पूरी अवधारणा है। यह फासीवादी ‘हिन्दू राष्ट्र’ सभी मजदूरों-मेहनतकशों के खिलाफ है। हर संभव तरीके से ऐसे कदमों को आगे बढ़ने से रोकना होगा। 
    
आगे क्या?
    
जरूरत है कि जल्द से जल्द कर्फ्यू को खोला जाए। स्थानीय लोगों को राहत पहुंचायी जाये। जनजीवन को सामान्य किया जाए। इस मामले की निष्पक्ष न्यायिक जांच हो जो जिला प्रशासन से स्वतंत्र हो। 
 

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