
बीते एक माह से जर्मनी की सड़कों पर फासीवाद विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं। ये प्रदर्शन जर्मनी की फासीवादी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (ए एफ डी) के खिलाफ केन्द्रित हैं। इन प्रदर्शनों में लाखों की तादाद में जर्मन जनता हिस्सा ले रही है। प्रदर्शन का केन्द्र संघीय संसद है। उसके सामने हर सप्ताहांत लाखों की तादाद में लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके अलावा ऑग्सबर्ग, फ्रीबर्ग, ड्रेसडेन, ब्रेमेन, क्रेफेल्ड, हनोवर, कैसल आदि विभिन्न शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं। बीते 4 सप्ताह से ये प्रदर्शन लगातार हो रहे हैं।
इन प्रदर्शनों का आह्वान युवा संगठन, ट्रेड यूनियनें, चर्च, विश्वविद्यालय प्रतिनिधियों के अलावा सरकार समर्थित संगठन कर रहे हैं। गौरतलब है कि जर्मनी में सामाजिक जनवादियों (एसपीडी), उदार डेमोक्रेट्स (एफ डी पी) व ग्रीन्स के गठबंधन की सरकार है।
18 जनवरी को जर्मनी में प्रत्यावर्तन सुधार अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के तहत पुलिस प्रशासन को यह अधिकार मिल गया है कि वे जर्मनी में वर्षों से रह रहे अप्रवासी लोगों को बगैर किसी चेतावनी रात को उनके बिस्तर से उठा लें, उन्हें हिरासत में ले लें और उन्हें जबरन निर्वासित कर दें। इस सुधार अधिनियम को फासीवादी पार्टी की नेता मरील ली पेन ने अपनी वैचारिक जीत के तौर पर घोषित किया।
बाद में यह तथ्य सामने आया कि अप्रवासी लोगों के बड़े पैमाने पर निष्कासन की योजना बनाने के लिए व्यापार प्रतिनिधियों और फासीवादी पार्टी ए एफ डी के बीच गुप्त रूप से बैठक हुई थी। इस तथ्य के उजागर होने के बाद से ही जर्मनी के विभिन्न शहरों में फासीवाद विरोधी प्रदर्शनों की लहर आयी हुई है।
फासीवाद विरोधी प्रदर्शनों में बड़ी तादाद में शामिल लोग इस आस में सड़कों पर हैं कि उनकी पहलकदमी जर्मनी में 1933 की तरह हिटलर की वापसी को रोक देगी। वे युद्ध का विरोध कर रहे हैं। वे फिलिस्तीन का समर्थन कर रहे हैं।
पर सत्ताधारी दलों के नेता इन प्रदर्शनों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से शिरकत कर जनता की चेतना को पूंजीवादी दायरे में बांधे हुए हैं। ये नेता लोकतंत्र की वकालत करते हुए केवल ए एफ डी के विरोध की दिशा में जनता को ले जा रहे हैं। वे जर्मनी में बढ़ती असमानता, जर्मन सरकार के इजरायली नरसंहार को समर्थन, जर्मनी के मजदूरों-किसानों की दुर्दशा सरीखे मुद्दों को केन्द्र में नहीं आने दे रहे हैं क्योंकि सत्ताधारी दल की नीतियों से ही ये सारे मुद्दे ज्वलंत हो रहे हैं।
वास्तविकता यह है कि जर्मनी में यद्यपि ए एफ डी प्रमुख फासीवादी दल है पर उसकी नीतियों को खुद जर्मनी का शासक पूंजीपति वर्ग आगे बढ़ा रहा है और उसे सत्ताधारी दल लागू कर रहे हैं। समस्त राजनीति ही दक्षिणपंथ की ओर ढुलक रही है। ऐसा केवल जर्मनी ही नहीं समूचे यूरोप व बाकी दुनिया के स्तर पर हो रहा है। ऐसे में अपने पूंजीपति वर्ग और सरकार को निशाने पर न लेकर केवल ए एफ डी को निशाने पर लेने से फासीवाद के बढ़ते कदमों को जनता नहीं रोक सकती।
मौजूदा प्रत्यावर्तन सुधार अधिनियम को लागू कराने में भी जर्मनी के पूंजीपति-व्यापारी व सभी प्रमुख दल लगे हुए हैं। ये सत्ताधारी दल इजरायली नरसंहार का समर्थन कर रहे हैं। ये मजदूरों की वेतन वृद्धि में रुकावट खड़ी कर रहे हैं पर सेना-पुलिस पर खर्च बढ़ा रहे हैं। ऐसे में फासीवादी पार्टी की दक्षिणपंथी नीतियों को जर्मन शासक वर्ग अधिकाधिक अपनाता जा रहा है। उसकी चाकर पार्टियां भले ही वह सामाजिक जनवादी पार्टी हो, इन्हें लागू कर रही है।
इसीलिए आज फासीवादी पार्टी की बढ़त को रोकने के लिए ये सामाजिक जनवादी पार्टी आगे नहीं आने वाली। आज जर्मनी के मजदूर वर्ग को यह पार्टी विभ्रम में डाल फासीवाद की राह ही सुगम करेगी।
जर्मनी की जनता में हिटलर के प्रति किस कदर गुस्सा व आक्रोश है वह इन प्रदर्शनों में उसकी भागीदारी से पता चलता है। पर फासीवादियों के कार्यक्रम को अपनाने वाले सत्ताधारियों को प्रदर्शन में स्थान देकर जनता अभी सही समझ पर नहीं खड़ी है।
फासीवाद को रोकने के लिए जरूरी है कि फासीवाद के खिलाफ वास्तव में लड़ने वाली सभी शक्तियां जर्मनी के मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी नेतृत्व के तले लामबंद हों। ये शक्तियां जर्मन पूंजीपति वर्ग को अपने निशाने पर लें तभी जर्मन जनता हिटलर की वापसी को रोक सकती है।
फिर भी इस व्यापक पैमाने पर जनता की पहलकदमी ने फासीवादी पार्टी ए एफ डी और उसके नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें जरूर पैदा कर दी हैं।