लुकास टीवीएस के मजदूरों का धरना जारी

प्रबंधन ने कार्यकारी अध्यक्ष समेत तीन मजदूरों को किया कम्पनी से बाहर 

रुद्रपुर/ लुकास टी वी एस के मजदूरों का धरना 4 निलंबित मजदूरों की कार्यबहाली व मांगपत्र पर समझौते को लेकर 26 अक्टूबर से श्रम विभाग में जारी है। इसी कड़ी में 7 दिसम्बर को निलंबित मजदूरों में से एक मजदूर पंकज कुमार को प्रबंधन ने निष्कासित कर दिया। 18 नवम्बर को सहायक श्रमायुक्त के साथ त्रिपक्षीय वार्ता थी जिसमें मजदूरों के साथ बी एम एस के नेता भी बैठे थे। इसमें प्रबंधन ने मजदूरों को आश्वासन दिया कि मामला निपटा लिया जाएगा। साथ ही वार्ता उपश्रमायुक्त के पास रेफर कर दी गयी है। उपश्रमायुक्त का पद रुद्रपुर में सृजित किया गया है परन्तु वे स्थाई तौर पर यहां पर नहीं बैठते हैं। अब देखना है कि वार्ता कब तक हो पाती है और उसका परिणाम क्या आता है।
    
22 दिसम्बर को यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष को सोशल मीडिया में पोस्ट करने के आरोप में निलंबित कर दिया गया। इसके साथ 4 मजदूरों को 10 नवम्बर को आरोप पत्र देकर घरेलू जांच शुरू कर दी गयी जिसमें मुख्य आरोप कम्पनी प्रबन्धन द्वारा छुट्टी के समय बुलाई मीटिंग (टाउन हॉल मीटिंग) में शामिल नहीं होने का है। 4 जनवरी 2024 को एक अन्य मजदूर ललित कुमार को टाउन हॉल मीटिंग में शामिल न होने व मजदूरों को भड़काने का आरोप लगाकर गेट पर रोक दिया गया और चार-छः स्टाफ के लोग उन पर आफिस में चलने का दबाव डालने लगे।
    
इस बीच यूनियन द्वारा सिडकुल की विभिन्न यूनियनों को अपने समर्थन में आने हेतु एक पत्र दिया गया। जिसके बाद विभिन्न यूनियनों ने धरना स्थल पर आकर समर्थन दिया। अभी भी अन्य यूनियनों के द्वारा समर्थन दिया जा रहा है। धरनारत मज़दूरों के समर्थन में एक दिन बी एम एस से सम्बद्ध यूनियनों द्वारा वार्ता वाले दिन सांकेतिक धरना दिया गया। यूनियन के 6 मजदूरों का खबर लिखे जाने तक धरना जारी है।
    
यहीं पर मजदूरों की यूनियनों के समक्ष एक महत्वपूर्ण चुनौती है। उन्हें अपनी एकता की ताकत से ज्यादा भरोसा पूंजीवादी पार्टियों के नेताओं व सत्ताधारी दल से जुड़े ट्रेड यूनियन सेंटर पर रहता रहा है। वे उससे जुड़ कर आसान रास्ता बिना संघर्ष का चुनते हैं जो कि एक मृग मरीचिका ही साबित होता है।
    
यूनियन की सदस्य संख्या कम है व मजदूर कोई और उत्प्रेरक कार्रवाई नहीं कर पा (जुलूस प्रदर्शन या कोई बड़ी कार्रवाई) रहे हैं जिससे कि शासन-प्रशासन पर कोई दबाव बनाया जा सके। संघर्षरत मजदूरों को कंपनी में कार्यरत अन्य मजदूरों से एकता कर उन्हें अपने पक्ष में करने के प्रयास कर उत्पादन को प्रभावित करने के लिए कोशिश करनी होगी। जिससे कि प्रबंधन समझौते के लिए तैयार हो।
    
आज के ऐसे दौर में जहां यूनियनों की ताकत कमजोर पड़ रही है। ऐसे में एक कम संख्या वाली यूनियन का उसमें भी आधा दर्जन धरनारत मजदूरों के आंदोलन के दम पर मजदूरों को ज्यादा कुछ हासिल होने की संभावना काफी कम है। मजदूर अपनी ताकत बढ़ाकर ही जीत हासिल कर सकते हैं।            -रुद्रपुर संवाददाता
 

आलेख

/syria-par-atanki-hamalaa-aur-takhtaapalat

फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।

/bharatiy-arthvyawastha-ki-gati-aur-niyati

यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं। 

/izrail-lebanaan-yudha-viraam-samjhauta-sthaayi-samadhan-nahin-hai

इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं। 

/ek-baar-phir-sabhyata-aur-barbarataa

कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।