इंपीरियल आटो इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड प्लाट नंबर 21/1 कंपनी फरीदाबाद के सेक्टर 5 में स्थित है। यह कंपनी गाड़ी इंजन के लिए पार्ट्स बनाती है। फरीदाबाद के स्तर पर इंपीरियल आटो के कई प्लांट हैं और कई नए प्लांट अभी तैयार हो रहे हैं। इंपीरियल आटो के इस प्लांट में लगभग 250 मजदूर कार्य करते हैं जिसमें आधे से भी ज्यादा महिला मजदूर हैं। (पूरे फरीदाबाद के स्तर पर लगभग 6 से 7 हजार तक इंपीरियल आटो के मजदूर हैं) जिसमें सभी ठेके के मजदूर हैं, नाम मात्र के लिए भी कंपनी ने स्थाई मजदूर नहीं रखे हैं।
महिला मजदूरों की बड़ी संख्या होने के बावजूद भी कंपनी के अंदर स्वास्थ्य और सुरक्षा की नाम मात्र की भी व्यवस्थाएं नहीं हैं। साथ ही कंपनी प्रबंधन द्वारा श्रम कानूनों का भी धड़ल्ले से उल्लंघन किया जाता रहा है। कंपनी में ठेका मजदूरों द्वारा ही मशीनों को आपरेट किया जाता है और मशीन आपरेटर को हेल्पर की श्रेणी में रखा जाता है। जबकि श्रम कानून के हिसाब से मशीन आपरेटर स्थाई मजदूर होने चाहिए।
कंपनी में ड्रेस कोड लागू है लेकिन यह ड्रेस मजदूरों को अपने पैसे से खरीद कर बनानी पड़ती है। कंपनी द्वारा मजदूरों को न तो ड्रेस दी जाती है, न सेफ्टी शूज दिए जाते हैं और न ही कोई अन्य सुरक्षा उपकरण मुहैया कराए जाते हैं, लेकिन मजदूरों पर दबाव बनाया जाता है कि वह ड्रेस और सेफ्टी शूज पहनकर ही कंपनी में आयें। इंपीरियल आटो में मजदूरों को दुर्घटनाओं के प्रति जागरुक करने के लिए या दुर्घटनाओं से बचने के लिए सेफ्टी कमेटी तक कंपनी प्रबंधन ने नहीं बनाई है। दुर्घटनाएं होने पर उनको रफा-दफा करने का मामला या उनसे पल्ला झाड़ने का मामला ज्यादा रहता है।
इसके साथ ही कंपनी में ढाई सौ मजदूरों के हिसाब से टॉयलेट और पीने के पानी का भी पुख्ता इंतजाम नहीं है। बड़ी संख्या में मजदूर होने पर भी सिर्फ चार टॉयलेट ही कंपनी के अंदर हैं। दो महिलाओं के और दो पुरुषों के जिसमें भी महिलाओं के एक टॉयलेट को समय-समय पर बंद कर दिया जाता है। गंदी टॉयलेट की वजह से कई महिला मजदूरों को यूरिन संबन्धी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यही नहीं कंपनी में इतनी बड़ी संख्या में महिला मजदूरों के होने के बावजूद न तो कोई रेस्ट रूम की सुविधा है, न ही मेडिकल रूम। प्राथमिक उपचार की, यहां तक कि मामूली बुखार और दर्द की दवाइयां तक मजदूरों को जरूरत होने पर नहीं मिलतीं। जब भी कंपनी में काम के दौरान कोई मजदूर घायल होते हैं या स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत उनको होती है तो कंपनी प्रबंधन द्वारा पूरा दबाव यह बनाया जाता है कि वह मजदूर अपनी जिम्मेदारी पर घर चले जाएं। कंपनी द्वारा अस्पताल भेजने तक की सुविधा मजदूरों को नहीं प्रदान की जाती। हालांकि जब कोई बड़ी दुर्घटनाएं कंपनी के अंदर होती हैं तो किसी दूसरे प्लांट से एंबुलेंस बुलाकर कंपनी मजदूर को अस्पताल भेजती है। इसकी खुद के प्लांट में एंबुलेंस तक नहीं रहती।
कंपनी अधिकतर 12 घंटे चलती है जिसमें मजदूरों को ओवरटाइम का सिंगल ही दिया जाता है। इसके अलावा कंपनी में हेल्पर, स्किल वर्कर, अन स्किल्ड वर्कर, आपरेटर आदि सभी को हेल्पर का वेतनमान दिया जाता है।
महिला मजदूरों की बड़ी संख्या होने के बावजूद भी विशाखा गाइडलाइन के तहत कंपनी के अंदर जो आंतरिक कमेटी का गठन किया है, उसकी जानकारियां महिला मजदूरों को नहीं है। हालत यह है कि इस कमेटी में जिन लोगों को चुना गया है वे सभी कंपनी के ही हैं। और साथ ही इससे संबंधित जो जानकारियां कंपनी के अंदर लगाई गयी हैं वह अंग्रेजी में है जबकि कानूनन मजदूरों को समझ में आने वाली भाषा में ऐसी कमेटियों की जानकारियां कंपनी की सार्वजनिक जगह पर लगी होनी चाहिए। सिर्फ इतना ही नहीं बेशर्मी की हद तो तब पार हो जाती है कि जब खुद कंपनी के मैनेजमेंट के लोग कंपनी के अंदर शराब पीकर घूमते हैं और महिला मजदूरों को गंदी गालियां देते हैं। लेकिन न तो टाप मैनेजमेंट और न ही कंपनी की आंतरिक कमेटी इन पर कोई कार्यवाही करती है और महिला मजदूर भी नौकरी गंवाने के डर से कुछ नहीं बोलतीं।
इसके अलावा इंपीरियल आटो में कार्यरत ठेका मजदूर जिनको 4 साल से ऊपर हो गए हैं, कंपनी उनको स्थाई मजदूर के बतौर नहीं रखती बल्कि सालों-साल उनसे ठेके पर ही कार्य कराती है। साथ ही तनख्वाह में भी मनमर्जी से कटौतियां ठेकेदारों द्वारा की जाती हैं जिस पर मैनेजमेंट चुप्पी साध लेता है।
पिछले लंबे समय से कंपनी ने मजदूरों के छंटनी करने के लिए एक नया तरीका तैयार किया हुआ है जिसमें एक से तीन दिन की छुट्टी होने पर कंपनी मैनेजमेंट द्वारा मजदूरों का पंच बंद कर दिया जाता है और उनको कंपनी से निकाल दिया जाता है। इसमें न तो मजदूरों को कोई नोटिस न ही कोई पूर्व सूचना दी जाती है और फिर मजदूरों से माफी मंगवा कर उनका हिसाब कर दिया जाता है। साथ ही अगली बार उनको एक फ्रेशर के बतौर रखा जाता है। असल में यह सब बड़े शातिराना ढंग से मैनेजमेंट द्वारा किया जाता रहा है ताकि मजदूरों को अन्य सुविधाएं देने से बचा जा सके। इसलिए वह उन मजदूरों को जिनके 5 साल पूरे होने वाले हों, बड़ी चालाकी के साथ कंपनी से निकाल देती है। ताकि मजदूरों को ग्रेच्युटी देने से बचा जा सके। साथ ही निकालने के बाद नई भर्ती के बतौर उनको दिखाया जाता है। ऐसा करके मैनेजमेंट अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहती है और मजदूरों को भी उन सारी सुविधाओं से वंचित रखना चाहती है जो वह हासिल कर सकते हैं।
असल में आज पूरे देश के पैमाने पर पूंजीपति वर्ग मजदूरों पर हमलावर है जिसके चलते एक के बाद दूसरा हमला वह मजदूरों पर बोल रहा है और यही इंपीरियल आटो कंपनी भी कर रही है। इस क्रम में पिछले साल भी कंपनी द्वारा महिला मजदूरों से रात की पाली में काम करने की बात की गई और बिना कोई आने-जाने की सुविधा दिए हुए ही महिला मजदूरों को काम पर रोका गया। लेकिन बाद में इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा पर्चा बांट के विरोध करने पर कंपनी को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। हालांकि अभी भी कंपनी मैनेजमेंट मनमर्जी से कंपनी को संचालित करता है। वह कभी भी कंपनी का समय मन मुताबिक बढ़ा देता है। और ऐसा करने के लिए वह मजदूरों की सहमति नहीं लेता। यही हाल ओवरटाइम के मामले में भी है। कानून के अनुसार मजदूरों की इच्छा से ओवरटाइम पर रुकवाया जाता है लेकिन इंपीरियल आटो में मजदूरों को जबरदस्ती ओवरटाइम करवाया जाता है। जो मजदूर इसका विरोध करते हैं उनको काम से निकालने की धमकी दी जाती है।
अभी पिछले साल मार्च में इंपीरियल आटो में काम करने वाले एक महिला मजदूर जो इसी साल कंपनी जाते हुए घायल हो जाती हैं और उनके दोनों पैर टूट जाते हैं, वह जब कंपनी जाती हैं तो मैनेजमेंट पहले रखने के लिए आनाकानी करता है फिर नये-नये बहाने से उनको परेशान करता है ताकि वह कम्पनी छोड़ दें। और इसी बीच कंपनी जाते वक्त जब उनके उसी पैर पर चोट लग जाती है जिसके कारण वह कंपनी नहीं जा पाती तो बिना किसी नोटिस-चेतावनी के उनका गेट बंद कर दिया जाता है, नाम पंच कार्ड से हटा दिया जाता है। जब वह कंपनी जाती हैं तो उनको बता दिया जाता है कि कंपनी ने आपको काम से निकाल दिया। असल में कंपनी ऐसा करके उनसे अपना पल्ला झाड़ देना चाहती है और इसके साथ ही मामूली सी तनख्वाह डालकर कंपनी सोचती है कि उसने मजदूर का हिसाब कर दिया। जब वह महिला मजदूर अपने को कंपनी में वापस लेने की गुजारिश करती हैं तो उसको कंपनी प्रबंधन द्वारा हिसाब पर साइन करने का दबाव बनाया जाता है। जब वह इंकार करती हैं तो डराया-धमकाया जाता है कि उनको इंपीरियल आटो के साथ-साथ पूरे फरीदाबाद के स्तर पर ब्लैक लिस्ट कर दिया जाएगा और उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिलेगी। जब वह महिला मजदूर यह कहती हैं कि यदि हिसाब पर साइन करने के लिए कह रहे हैं तो सही से मेरा हिसाब बनाया जाए जिसमें ग्रेच्युटी, बोनस, कंपेनसेशन, छुट्टियों का पैसा, तीन नोटिस पे सभी शामिल हों तब वह साइन करेंगी तो ठेकेदार और कंपनी एच.आर. द्वारा इस बात का मजाक यह कह कर उड़ाया जाता है कि आज तक इंपीरियल आटो ने तनख्वाह और बोनस के अलावा किसी भी मजदूर को यह सब नहीं दिया है तो तुम कौन होते हो।
यह अकेला मामला नहीं है बल्कि ऐसे अनेकों मामले इंपीरियल आटो के रहे हैं कि जब इसमें काम करने वाली महिला मजदूरों को कंपनी आते-जाते भयंकर दुर्घटना का सामना करना पड़ा है जिसमें वह चोटिल हुईं, लेकिन कंपनी द्वारा किसी भी तरह की सहायता उनको मुहैय्या नहीं कराई गई। बल्कि उस पूरे मामले से ही पल्ला झाड़ कर उन्हें परिजनों के हवाले कर दिया गया। जबकि उन दुर्घटनाओं के वक्त महिला मजदूर कंपनी की ड्रेस में रही हैं।
मजदूरों के शोषण और लूट पर खड़ी इंपीरियल आटो एक ओर प्लांट पर प्लांट खड़े किए जा रही है जबकि दूसरी ओर जिन मजदूरों का खून चूस कर उसने यह प्लांट के प्लांट खड़े किए हैं उनको वह उनके हक का पैसा भी अदा नहीं करना चाहती बल्कि उनके मुंह से उस निवाले को भी छीन लेना चाहती है जिससे वह जिंदा रह रहा हो।
इस सारे घटनाक्रम के बाद इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा उस महिला मजदूर को लेकर 4 जनवरी को पांच लोगों के साथ इंपीरियल आटो के गेट पर जाकर नारेबाजी की गई और प्रबंधन को मजबूर किया गया कि वह श्रम कानून का उल्लंघन करना बंद करे और उस महिला मजदूर को काम पर वापस ले। लेकिन प्रबंधन द्वारा अपना अड़ियल रुख दिखाया गया। न तो कोई उचित समझौता किया गया और न ही उस महिला मजदूर को काम पर लिया गया। इसके अलावा इस बीच में इंपीरियल आटो के अलग-अलग प्लांट में अन्य मजदूरों को भी काम से निकाले जाने, उनके काम के घंटे बढ़ाए जाने, टारगेट का दबाव, वेतन में कटौती आदि सारे काम किए जा रहे हैं।
इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा इंपीरियल आटो प्राइवेट लिमिटेड में मजदूरों के साथ अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने और साथ ही मजदूरों को भी इसमें शामिल करने का आह्वान किया जा रहा है। और श्रम विभाग से भी इंपीरियल आटो की मनमर्जियों को रोकने की अपील की जा रही है। आज पूरी ही दुनिया में मजदूर वर्ग पर शासक वर्ग के हमले बढ़े हैं। आज पूरी दुनिया का शासक वर्ग मजदूर वर्ग को निचोड़ देना चाहता है। और इसी क्रम में फरीदाबाद में भी पूंजीपति वर्ग की श्रम की निर्मम लूट जारी है। जहां पूंजीपति वर्ग मजदूरों को कुछ दिए बगैर उनका सब कुछ छीन लेना चाहता है।
यह सब तब तक जारी रहेगा जब तक मजदूर-मेहनतकश वर्ग मालिकों के स्वर्ग पर हमला नहीं बोल देता। इन मालिकों के खिलाफ उठ खड़ा नहीं होता। और ऐसा तभी संभव है जब मजदूर वर्ग खुद को वर्ग के बतौर संगठित करेगा। प्लांट के स्तर पर यूनियन में संगठित करेगा और देश के स्तर पर संगठित होकर मजदूर वर्ग की पार्टी का निर्माण करेगा। बगैर मजदूर वर्ग की पार्टी और समाजवाद कायम किए पूंजी की गुलामी से मुक्त होना असंभव है।
शोषण की चक्की में पिसते इंपीरियल आटो के मजदूर
राष्ट्रीय
आलेख
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7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक
अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।
इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी।