पिछले दिनों गांधीनगर गुजरात में ‘बाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट’ का आयोजन सरकारी धन को पानी की तरह बहाते हुए भव्य ढंग से हुआ। आये दिन होने वाले ‘मोदी रोड शो’ का भी इस दौरान आयोजन हुआ। इस आयोजन में संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति का भी ‘शो’ हुआ। प्रायोजित भीड़ ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगा रही थी और पुष्प वर्षा कर रही थी। आये दिन मुस्लिमों को पानी पी-पी कर कोसने वाली भाजपा-संघ की बदजुबान ब्रिगेड को स्पष्ट संदेश प्रधानमंत्री कार्यालय से था कि वे इस दौरान अपनी जुबान पर लगाम रखें। खैर! ये तो जो है सो है। सबसे दिलचस्प भारत के सबसे बड़े पूंजीवादी घरानों के द्वारा मोदी की प्रशंसा में इस समिट के दौरान किये गये भाषण थे। पुराने जमाने में राजा की प्रशंसा में गीत रचने वाले भाण्ड भी अम्बानी, अडाणी, मित्तल और टाटा के द्वारा मोदी की प्रशंसा में गाये गये गीतों से लजा जायें। बेचारे! भाण्ड क्या समझेंगे कि उनकी कला को भारत के सबसे ज्यादा अमीरों ने क्यों अपना लिया है।
मुकेश अम्बानी का धंधा तो वैसे हर प्रधानमंत्री के काल में फला-फूला है पर जब से मोदी आये हैं तब से तो उसकी दौलत बढ़ती गयी है। मोदी को इन्होंने क्या-क्या संज्ञा नहीं दी। महाशय बोले मोदी ‘‘महानतम वैश्विक नेता’’, ‘‘मोदी है तो मुमकिन है’’, ‘‘भारत के इतिहास के सबसे सफलतम प्रधानमंत्री’’ हैं। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ का जो नारा मोदी ने अपनी आत्मप्रशंसा में स्वयं लगाया था उसे मुकेश अम्बानी ने इस समिट में दोहराया और बोला इस नारे का मतलब होता है कि मोदी हर असम्भव चीज को सम्भव बनाते हैं।
मुकेश अम्बानी से ज्यादा जिस आदमी का धंधा मोदी काल में (गुजरात से लेकर दिल्ली तक) सबसे ज्यादा चमका है वह गौतम अडाणी है। पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय से क्लीन चिट मिलने के बाद गौतम अडाणी फिर से भारत का सबसे अमीर आदमी है। गौतम अडाणी जानता है कि मोदी होने का क्या मतलब खासकर उसके लिए है। उसने पहले बताया कि मोदी के पहले यह होता था कि भारत अपनी आवाज वैश्विक पटल पर उठाने का मौका ढूंढता था पर आज भारत मोदी काल में वैश्विक पटल का निर्माण करता है। जब मोदी गौतम अडाणी के लिए कुछ भी कर सकते हैं तो गौतम अडाणी भी मोदी के लिए कुछ भी कर सकता है। मोदी की प्रशंसा में वह आगे बोला, ‘‘आप सिर्फ भविष्य का अनुमान ही नहीं लगा सकते हैं बल्कि उसका निर्माण भी कर सकते हो।’’ जाहिर सी बात है इसका मतलब चुनावी सभा में क्या लग सकता है। अडाणी ढंग से जानता है मोदी है तो उसके लिए कुछ भी मुमकिन है।
टाटा समूह के चेयरमेन एन चन्द्रशेखर ने मोदी के नेतृत्व, दृष्टि, मानसिक बनावट आदि की प्रशंसा में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसी बातें मिश्र से लेकर ढेरों अन्य देशी-विदेशी पूंजीपतियों ने बोलीं।
चुनाव के ठीक पहले भारत के सबसे बड़े पूंजीपतियों ने सरेआम घोषणा कर दी कि वे किस ओर हैं। अब यह खाली वक्त की बात है कि चुनाव के बाद देश का प्रधानमंत्री देश के सबसे बड़े पूंजीपतियों के हिसाब से कौन होगा। अम्बानी, अडाणी और टाटा ने पिछले दो चुनाव में दिल खोलकर मोदी को चुनाव के लिए पैसा उपलब्ध कराया था। टाटा ने तो एक चैनल ही मोदी के प्रचार के लिए खोल दिया था। चुनाव के बाद ये चैनल बंद हो गया और दो-तीन साल के भीतर औने-पौने दाम में टाटा ने एयर इण्डिया को खरीद लिया।
गुजरात में हर बार ठीक चुनाव के पहले होने वाला ‘बाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट’ इशारा कर देता है कि देश की चुनाव के समय और उसके बाद क्या दशा और दिशा होगी। एकाधिकारी घराने और हिन्दू फासीवादी इस समिट का उपयोग एक-दूसरे के साथ अपने मजबूत रिश्ते को नयी गति और ऊर्जा देने के लिए करते रहे हैं। भारत के सबसे बड़े पूंजीपति आखिर में जो चाहते हैं वही होता है। बाकी तो चुनाव-वुनाव एक खेल तमाशा है जिसमें जनता के हिस्से ताली बजाना या फिर गाली देना ही आता है।
हां, कभी-कभी जनता पूंजीपतियों के पैसे व प्रचार से प्रायोजित चुनाव में इनके अनुरूप मत डालने से इंकार भी कर देती है। ऐसा तब होता है जब जनता का सत्ताधारी दल से मोहभंग हो गया हो या फिर वो उसे अपना गला रेतने वाले के बतौर पहचान जाती है। ऐसे में पूंजीपतियों द्वारा पाले-पोषे दूसरे दल या गठबंधन को जिता जनता बदलाव करना चाहती है पर अंत में पाती है कि उसके सर पर गुलामी का जुआ वैसे ही लदा है। पूंजीपति अपनी व्यवस्था कायम रखने में फिर सफल हो जाते हैं। गुलामी का जुआ चुनाव के जरिये नहीं हटाया जा सकता है बल्कि इंकलाब के जरिये ही हट सकता है, इस समझ पर पहुंच कर ही जनता अपना भाग्य पूंजीपतियों के हाथ से छीन अपने हाथ में ले सकती है। अब देखना यह है कि आगामी चुनाव में जनता किस दल के सिर पर जीत का सेहरा बांधती है। पूंजीपति वर्ग तो अगले प्रधानमंत्री को पहले ही तय कर चुका है। देखना यह है कि जनता इस पर मुहर लगाती है या संघ-पूंजीपति वर्ग के गठजोड़ को ठेंगा दिखाती है।