राजा बिस्कुट के मजदूरों का सम्मानजनक समझौता

हरिद्वार/ हरिद्वार सिडकुल स्थित राजा बिस्कुट के मजदूरों का लम्बा संघर्ष सम्मानजनक समझौते के साथ समाप्त हो गया है। प्रबंधन मजदूरों की ग्रेच्युटी, बोनस सहित फुल एण्ड फाइनल हिसाब करने को सहमत हो गया है। 2 वर्ष से ऊपर समय से मजदूर संघर्षरत थे व 11 माह से लगातार धरनारत थे। इस धरने का संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा हरिद्वार व इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने पूर्ण सहयोग-समर्थन किया।
    
हरिद्वार सिडकुल में अगस्त 2006 से राजा उद्योग ने जीरा बिस्किट, नमकीन बिस्किट, मीठा बिस्किट व चाकलेट तथा बेकरी के बिस्किट बनाना शुरू किया था। इसका कलकत्ता में मुख्य कार्यालय है। जय गुप्ता और ओम गुप्ता इसके मालिक हैं। राजा उद्योग में 2017 तक स्थाई मजदूर 600 से 700 के करीब व 500 से 600 ठेका मजदूर कार्य करते थे। कोरोना काल में 36-36 घंटे राजा उद्योग के मजदूरों द्वारा कार्य किया गया। अब तक राजा उद्योग का मालिक कोलकाता, नोएडा, बनारस तथा दिल्ली में छोटे-छोटे 5-6 प्लांट खोल चुका था। 2021 के बाद राजा उद्योग के प्रबंधन ने हरिद्वार में कर्मचारियों को परेशान करके सीधे-सीधे निकालना शुरू कर दिया। इस वजह से 2022 के शुरू में 300 मजदूर स्थाई रह गए थे जिसमें से 118 मजदूरों द्वारा 28 फरवरी 2022 को एक मांग पत्र श्रम विभाग हरिद्वार में लगाया गया। 100 से अधिक मजदूर त्यागपत्र दे चुके थे। 2022 के अंत तक मात्र 60 स्थाई मजदूरों द्वारा संघर्ष को आगे बढ़ाया गया। राजा बिस्किट कंपनी में काम करने के बाद मजदूरों से त्यागपत्र ले लिए जाते थे परंतु उनका हिसाब-किताब नहीं किया जाता था। उनसे कहा जाता था कि जब पैसा आएगा तब दे दिया जाएगा। परंतु आंदोलन चलने के बाद बहुत से मजदूर जो दो-तीन साल पहले काम छोड़ चुके थे उनको कम्पनी में बुलाकर त्यागपत्र पर हस्ताक्षर करवा कर हिसाब दिया गया। यह मजदूरों के संघर्ष के बल पर ही हुआ।
    
सर्वप्रथम मजदूरों द्वारा श्रम विभाग हरिद्वार में एक मांग पत्र लगाया गया। जिसमें स्थाई मजदूरों को नियुक्ति पत्र, पे स्लिप, कम्पनी एक्ट के तहत सारी सुविधाएं, ओटी का दुगुना भुगतान व समय पर भुगतान आदि मांगें की गयीं। इसका परिणाम यह हुआ कि जो वेतन 12 घंटे काम करने के बाद मिल रहा था वह वेतन 8 घंटे काम करने पर मिलने लगा। यहां से मजदूरों का मनोबल बढ़ने लगा। मजदूरों की बैठकों का सिलसिला शुरू होने लगा। एक 7 सदस्यीय कमेटी को श्रम विभाग में पंजीकृत किया गया। इसके नीचे एक 9 सदस्यीय सेकेंड लीडरशिप भी चुनी गई। कम्पनी में उत्पादन ना के बराबर हो रहा था। 
    
कानूनी कार्यवाही एवं आन्दोलनात्मक कार्यवाही को संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा की ओर से आगे बढ़ाया गया। संघर्ष करके मजदूरों का रुका हुआ दो माह का वेतन श्रम विभाग ने राजस्व विभाग से रिकवरी करवाया। उसके बाद कम्पनी ने कुछ माह का वेतन समय पर डाल दिया। उत्पादन बंद होने के कारण कम्पनी ने ले आफ लगा दिया, केवल हस्ताक्षर करने पर आधी सैलरी मजदूरों ने प्राप्त की। यह सिलसिला छः महीने चला। 2 फरवरी 2023 को कंपनी प्रबंधन द्वारा कम्पनी गेट पर क्लोजर का नोटिस चस्पा कर दिया गया। इससे पूर्व प्रबंधन वर्ग मजदूरों से कहता रहा कि जल्द ही कम्पनी खुलेगी। मजदूर भी यही मान रहे थे। 6 फरवरी 2023 को कम्पनी ने सभी मजदूरों का 31 मार्च 2022 तक का फुल एण्ड फाइनल का हिसाब मजदूरों के खातों में डाल दिया। इससे मजदूरों में काफी असंतोष हुआ कि कम्पनी बंदी का नोटिस 2 फरवरी 2023 को लगाया गया और ग्रेच्युटी और बोनस तथा अन्य हिसाब 31 मार्च 2022 तक का आया। 
    
यह हिसाब का अंतर धरने को लगातार जारी रखने के लिए महत्वपूर्ण बिंदु बना। मजदूरों का कहना था कि यदि कंपनी में उत्पादन नहीं हुआ तो इसके लिए मजदूर जिम्मेदार नहीं हैं। 31 मार्च 2022 के बाद का शेष बकाया व बोनस और ग्रेच्युटी के लिए श्रम विभाग में आई.आर. वार्ताएं हुईं। बाद में मामला श्रम न्यायालय में पहुंच गया। आंदोलन की रणनीति भी बनाई गई और कानूनी कार्रवाई की भी तैयारी की गई। आंदोलन की रणनीति के अनुसार चार मजदूर लगातार धरने के लिए नियुक्त किये गये बाकी सभी मजदूरों से कोई काम करके चंदा देकर आंदोलन को आगे बढ़ाने व कानूनी लड़ाई को भी जारी रखने के लिए कहा गया।

फरवरी 2023 से 4 मई 2023 तक मजदूर फैक्टरी गेट पर प्रदर्शन करते रहे। राजा बिस्किट के मैनेजमेंट और मालिकों के पुतले दहन किये गये। 10-12 दिन तक मैनेजमेंट गायब रहा। उसी दौरान मैनेजमेंट के व्यक्तियों की पूरे सिडकुल हरिद्वार में फोटो लेकर गुमशुदा रैली निकाली गई। 5 मई को श्रम विभाग से केस श्रम न्यायालय में जाने के बाद राजा बिस्किट गेट पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू हो गया। आंदोलन स्थल पर सारे क्रांतिकारी दिवस मनाए गए। और दुनिया में घटे महत्वपूर्ण घटनाक्रमों पर प्रतिक्रिया व परिचर्चाएं की गयीं तथा प्रदर्शन भी किए गए। 19 फरवरी को राजा बिस्किट के मजदूरों के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए एक मजदूर महापंचायत संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा द्वारा आयोजित की गई। इसमें प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन व प्रगतिशील भोजनमाता संगठन एवं परिवर्तनकामी छात्र संगठन के पदाधिकारियों एवं मजदूरों के परिवारों ने भी भागीदारी की। एवरेस्ट इंडस्ट्रीज मजदूर यूनियन लंकेश्वरी भगवानपुर द्वारा राजा बिस्किट के मजदूरों के संघर्षों को आगे बढ़ाने के लिए 10,000 रुपए का सहयोग किया गया। सीमेंस वर्कर यूनियन मुंबई द्वारा भी 3100 रुपए का सहयोग किया गया। फूड्स श्रमिक यूनियन (आईटीसी), देवभूमि श्रमिक यूनियन (एचयूएल), एवरेडी मजदूर यूनियन द्वारा भी मजदूर वर्ग के भाईचारे के तहत आर्थिक सहयोग किया गया। मजदूर बस्तियों में मजदूरों-मेहनतकशों के मध्य जाकर भी सामूहिक चंदा अभियान किया गया। यह आंदोलन पूरे सिडकुल में एवं मजदूर बस्तियों में चर्चित हो गया। डी एम कार्यालय तक रैली व मैनेजमेंट की मोस्ट वांटेड रैली, प्रबंधन वर्ग तथा मालिकों के पुतले दहन तथा धरने के 100 दिन व 200 दिन पूरे होने पर प्रतिरोध सभाएं कर प्रबंधक वर्ग एवं शासन-प्रशासन तथा श्रम विभाग का मजदूर विरोधी चरित्र उजागर किया गया। 
    
3 अक्टूबर को पूरे सिडकुल में राजा बिस्किट, एवरेडी और सत्यम तथा विप्रो के मजदूरों के साथ मिलकर एक व्यापक रैली का आयोजन किया गया जिसमें राजा बिस्किट समेत तीन कंपनियों के मामलों को लेकर डीएम स्तर पर हल करने का दबाव बनाया गया। 150 पेज से अधिक अभी तक के सभी ज्ञापनों का एक बंच मुख्यमंत्री उत्तराखंड तथा एक बंच जिलाधिकारी के लिए दिया गया। कोर्ट से बाहर इन समस्याओं को वार्ता के जरिए हल करने के लिए जिलाधिकारी हरिद्वार ने एडीएम की अध्यक्षता में सहायक श्रमायुक्त से वार्ताओं का क्रम शुरू करवाया। इन वार्ताओं में संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा के पदाधिकारी भी शामिल रहे। सबसे पहले राजा बिस्किट का मामला ही मीटिंग में उठाया गया। उसके बाद ही वार्ता में एवरेडी और सत्यम का मामला क्रम से चलाया गया।
    
राजा बिस्किट के आंदोलन में शुरू में वेतन रिकवरी के लिए टाईमली पेमेंट वेजेज एक्ट के तहत दो माह का वेतन आर.सी. कटवा कर दिलवाया गया। आंदोलनकारी मजदूरों पर कोई कार्यवाही न होने व गेट पर से धरने को न उठाने के लिए जिला लोअर और हायर कोर्ट में कैवियेट लगायी गयी जिससे धरना कम्पनी गेट पर 11 माह तक चला। प्रबंधन वर्ग को गेट से 500 मीटर दूर धरने को हटाने का स्टे नहीं मिला। यह मजदूरों की आंशिक जीत हुई। मशीनों को कंपनी से बाहर ना ले जाने के लिए हाईकोर्ट में स्टे के लिए कार्रवाई की गई। सिंगल बेंच द्वारा स्टे खारिज करने के बाद डबल बेंच में प्रयास किया गया। यहां से दो हफ्ते के अंदर राजा बिस्किट के मजदूरों की समस्या का निदान करने हेतु सहायक श्रम आयुक्त हरिद्वार को एक पत्र आया। इस पर श्रम विभाग ने समझौता का प्रयास किया जिसे मैनेजमेंट ने नहीं माना। श्रम विभाग ने भी प्रबंधन वर्ग का ही साथ दिया। इसके बाद हाईकोर्ट नैनीताल में पुनः स्टे के लिए याचिका लगाई गई। मजदूरों का पूरा हिसाब होने तक यथास्थिति बनाए रखने के लिए हाईकोर्ट ने श्रम सचिव को हस्तक्षेप के लिए आदेशित किया। इसके बाद श्रम सचिव ने श्रम आयुक्त हल्द्वानी डीएलसी एवं सहायक श्रमायुक्त हरिद्वार, राजा बिस्किट का प्रबंधन एवं श्रमिक प्रतिनिधियों को देहरादून सचिवालय में बुलाकर एक बैठक की गयी। इस बैठक में बातें मजदूरों के पक्ष में की गयीं परंतु आदेश मालिक के पक्ष में किया गया। समय-समय पर मजदूरों द्वारा विभिन्न मुद्दों को लेकर श्रम विभाग, श्रम न्यायालय सिविल कोर्ट एवं हाईकोर्ट तक ले जाया गया। यह अलग बात है कि इन सभी का रुख मालिकों के (पूंजी के) पक्ष में था, मजदूरों के सामने स्थिति स्पष्ट होती जा रही थी।
    
पुलिस प्रशासन के साथ भी राजा बिस्कुट के मजदूरों को कई दफे दो-चार होना पड़ा। जब भी प्रबंधक ने मशीन ले जाने का प्रयास किया तो उन्हें सुरक्षा देने के लिए ‘‘मित्र’’ पुलिस ने पूरी मित्रता दिखाई। इस पर आंदोलनकारी मजदूर एवं संयुक्त मोर्चा के पदाधिकारीयों से भी काफी नोक-झोंक हुई। एक बार पुलिस ने मजदूरों के साथ आंख-मिचौली करके रात में दो-चार मशीनें निकलवा दीं। इसके बाद डीएम हरिद्वार से हस्तक्षेप के लिए कहा गया। जिलाधिकारी द्वारा सहायक श्रमायुक्त हरिद्वार को एक पत्र जारी करना पड़ा कि मजदूरों का हिसाब ना होने तक यथास्थिति बनाकर रखी जाए। इस पत्र के बाद मशीनों को ले जाने का क्रम रुक गया।
    
21 नवंबर को पुनः प्रबंधन वर्ग ने कंपनी का सारा सामान धीरे-धीरे कंपनी परिसर में निकालना शुरू कर दिया। अब मजदूरों ने अपनी आपातकालीन बैठक कर धरने को रात-दिन का दोनों मुख्य द्वार पर शुरू कर दिया। जो भी पार्टी सामान खरीदने कम्पनी आ रही थी उन्हें मजबूर होना पड़ा कि वे पहले संघर्षरत मज़दूरों के बारे में प्रबंधन वर्ग से बातें करें। मजदूरों ने घोषणा कर दी थी कि फैक्टरी का कोई भी सामान नहीं जाएगा। जबरदस्ती करने पर मजदूर गाड़ी के सामने लेट गये। 
    
इसके बाद वार्ताओं का दौर शुरू हुआ। एडीएम की अध्यक्षता में सहायक श्रमायुक्त व प्रबंधक वर्ग और मजदूर प्रतिनिधियों के मध्य वार्ता चल रही थी। प्रबंधक वर्ग के ऊपर इसका दबाव भी था तथा दोनों गेटों पर कड़ाके की ठंड में रात-दिन के धरने का दबाव भी था। संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा भी आंदोलन को गति दे रहा था।
    
आंदोलन के दबाव में प्रबंधक वर्ग ने जहां 17 सालों से काम करने वाले मजदूरों का फुल एण्ड फाइनल हिसाब 61 लाख रुपए देकर किया था। वहीं ग्रेच्युटी और बोनस का हिसाब तथा ओवरटाइम के केस को वापस लेने की स्थिति में 55 लाख रुपए की राशि देकर समझौता करने को प्रबंधक बाध्य हुआ।
    
सिडकुल हरिद्वार में 330 दिन का यह धरना महत्वपूर्ण रहा। 60 मजदूरों का केस और 20 मजदूरों की सक्रिय भूमिका ने प्रबंधक वर्ग को झुकने को विवश कर दिया। मजदूरों ने श्रम विभाग, शासन-प्रशासन, पुलिस प्रशासन व न्याय व्यवस्था के मजदूर विरोधी चरित्र को अपने इस आन्दोलन से समय-समय पर स्पष्ट रूप से देखा। मजदूरों ने अपनी एकजुटता व संगठन तथा संयुक्त मोर्चा के साथ मिलकर आंदोलन में जीत हासिल की। 
          -हरिद्वार संवाददाता

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