हाईकोर्ट ने 12 मजदूरों की बर्खास्तगी पर लगाई रोक
पंतनगर/ पंतनगर स्थित इंटरार्क कंपनी के मजदूरों के लम्बे संघर्ष के बाद जिला प्रशासन की मध्यस्थता में त्रिपक्षीय समझौता दिनांक 15 दिसंबर 2022 को हुआ था जिसे राष्ट्रीय लोक अदालत की पीठ संख्या-09 और श्रम न्यायालय काशीपुर ने भी अपने आदेशों का भाग बनाया था। किंतु कंपनी प्रबंधन द्वारा उक्त समझौते के तहत उत्तराखंड राज्य से बाहर कंपनी की विभिन्न निर्माण साइडों पर 3 माह की व्क् से वापस लौटे 32 श्रमिकों को उनकी मूल नियोजक कंपनी में बहाल करने के स्थान पर उनका उत्तराखंड राज्य से बाहर गैरकानूनी रूप से स्थानांतरण कर दिया गया। जबकि कंपनी के प्रमाणित स्थाई आदेशों में और उत्तराखंड राज्य के माडल स्टैंडिंग आर्डर में स्पष्ट लिखा है कि श्रमिकों की पूर्व सहमति के बिना उनका राज्य से स्थानांतरण नहीं किया जा सकता है। जब 32 मजदूरों ने उक्त गैरकानूनी स्थानांतरण को स्वीकार करने से इंकार कर दिया तो उनकी अविधिक रूप से गेट बंदी कर दी गई। इसके खिलाफ मजदूरों की यूनियन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और हाईकोर्ट ने मजदूरों के उत्तराखंड राज्य से बाहर किए गए उक्त स्थानान्तरण पर पूरी तरह से रोक लगाते हुए आदेश 25 मई 2023 पारित किया। इसके पश्चात कंपनी मालिक ने उक्त सभी 32 मजदूरों के उक्त स्थानांतरण पर रोक लगाकर उनकी वर्क फ्राम होम के तहत पूर्ण वेतन भुगतान करते हुए कार्यबहाली कर दी। उन्हें घर बिठाकर पूरा वेतन तो दिया गया लेकिन कंपनी में कार्य पर बहाल नहीं किया गया।
इसके पश्चात भी कंपनी मालिक की साजिशें जारी रहीं और उक्त 32 मजदूरों की घरेलू जांच कार्यवाही के नाम पर उन्हें नौकरी से बर्खास्त करने की साजिश रची गई जबकि उक्त त्रिपक्षीय समझौते में साफ-साफ लिखा है कि घरेलू जांच के दौरान और पश्चात किसी भी श्रमिक को नौकरी से बर्खास्त नहीं किया जायेगा।
किंतु इंटरार्क कंपनी मालिक द्वारा शासन-प्रशासन के साथ मिलीभगत कर राष्ट्रीय लोक अदालत, हाईकोर्ट उत्तराखंड और श्रम न्यायालय के उक्त आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए उक्त 12 मजदूरों को घरेलू जांच कार्यवाही के बहाने नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। जबकि लोक अदालतों द्वारा पारित आदेशों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है और ऐसे आदेश दोनों पक्षों पर बाध्यकारी होंगे। किंतु शासन-प्रशासन से पूरी तरह से संरक्षण प्राप्त कंपनी मालिक इतना बेखौफ हो चुका है कि उसे सुप्रीम कोर्ट और भारतीय कानूनों की तनिक भी चिंता नहीं है। कहावत है कि जब सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का। इसकी झलक तब देखने को मिली जब डी.एम. कोर्ट और कुमाऊं कमिश्नरी पर महिलाओं, बच्चों और सामाजिक संगठनों द्वारा तमाम प्रदर्शन करने के बावजूद भी प्रशासन द्वारा उक्त समझौते को लागू कराने के स्थान पर इंटरार्क मजदूर संगठन उधमसिंह नगर के महामंत्री सौरभ कुमार को ही पंतनगर थाना पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेजने की नीयत से जिला कोर्ट में पेश किया गया तो कोर्ट ने पुलिस को ही कड़ी फटकार लगाई गई और सौरभ कुमार को तत्काल जमानत पर रिहा कर दिया।
आंदोलन के दबाव में सहायक श्रमायुक्त उधमसिंह नगर द्वारा कंपनी प्रबंधन को 13 अक्टूबर 2023 को नोटिस जारी किया गया और अनुचित श्रम व्यवहार के आरोप में कार्यवाही करने की चेतावनी दी। किंतु फिर भी कंपनी मालिक बाज न आया और श्रमिकों को बर्खास्त करने की कार्यवाही जारी रखी। मजदूरों ने अपना आंदोलन जारी रखा। दोनों प्लांटों की यूनियन द्वारा इसके खिलाफ हाईकोर्ट उत्तराखंड में याचिका दाखिल करके मजदूरों के उक्त बर्खास्त करने के आदेश पर रोक लगाने और समझौते को लागू कराने की मांग की।
इसके पश्चात हाईकोर्ट उत्तराखंड में सुनवाई जारी रही और 11 जनवरी 2024 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सभी 12 मजदूरों की बर्खास्तगी पर रोक लगाकर आदेश पारित किया। हाईकोर्ट में ।स्ब् द्वारा जारी 13 अक्टूबर 2023 को जारी उक्त नोटिस और लोक अदालत और लेबर कोर्ट द्वारा पारित उक्त आदेशों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। -पंतनगर संवाददाता