7 जनवरी 2024 को बांग्लादेश में सम्पन्न हुए आम चुनाव में शेख हसीना की अवामी लीग एक बार फिर से भारी बहुमत से विजयी हुई। इस चुनाव का प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने बहिष्कार किया था। खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने चुनाव से पूर्व मांग की थी कि चुनाव अस्थाई कार्यवाहक सरकार गठित कर उसके नेतृत्व में कराये जायें तभी चुनाव निष्पक्ष हो सकते हैं। पर अवामी लीग ने मुख्य विपक्षी पार्टी की इस मांग को ठुकरा दिया।
7 जनवरी को हुए चुनाव में महज 40 प्रतिशत मतदान हुआ जबकि इससे पूर्व 2018 के चुनाव में 80.2 प्रतिशत मतदान हुआ था। मतदान का गिरा हुआ प्रतिशत दिखलाता है कि मुख्य विपक्षी पार्टी के बहिष्कार व बांग्लादेश बंद के आह्वान का व्यापक असर पड़ा है। चुनाव के करीब 2 माह पूर्व से ही बांग्लादेश नेशनिलस्ट पार्टी बड़े पैमाने पर आंदोलनरत थी। चुनाव पूर्व हुई हिंसा में ढेरों लोग मारे गये थे। विपक्षी पार्टी व पुलिस-सेना दोनों ओर से हिंसक गतिविधियां हुईं थीं।
बगैर किसी खास विपक्ष के हुए इस चुनाव में अवामी लीग की जीत पहले से तय थी। पर इसके बावजूद अवामी लीग की सीटों में गिरावट उसकी बांग्लादेशी जनमानस में घटती लोकप्रियता को दिखाती है। अवामी लीग को करीब 36 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा।
चुनाव पूर्व विपक्षी दल के ढेरों नेताओं की गिरफ्तारी व उन पर मुकदमे लादने का शेख हसीना ने अभियान सा छेड़़ दिया था। चुनाव के पश्चात चुनाव आयुक्त ने जहां पहले 28 प्रतिशत मतदान की बात की वहीं कुछ देर बाद 40 प्रतिशत का आंकड़ा सामने आ गया। चुनाव में अवामी लीग को 222 सीटें व निर्दलीय उम्मीदवारों को 62 सीटें मिली हैं। संसद में कुल 300 सीटें हैं।
इस तरह बांग्लादेश में शेख हसीना 2008 के बाद से लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री पद संभालने जा रही हैं। वैसे प्रधानमंत्री पद वो 5वीं बार संभालेंगी। बीते 15 वर्षों के शासन में उन्होंने वो सारे कारनामे दोहराये हैं जो इससे पूर्व खालिदा जिया सरकार करती रही थी। गौरतलब है कि 2008 से पूर्व अवामी लीग चुनाव के वक्त निष्पक्ष कार्यवाहक सरकार की मांग करती रही थी और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी उसे ठुकराती रही थी।
कहने को इस चुनाव की निष्पक्षता साबित करने के लिए शेख हसीना ने विदेशी पर्यवेक्षक भी बुलाये थे। पर जब चुनाव ही एकतरफा हां तो चुनाव में धांधली करने की शेख हसीना सरकार को कोई खास जरूरत ही नहीं थी। उसने प्रमुख विपक्षी दल के नेताओं खालिदा जिया व उसके पुत्र को पहले ही अलग-अलग मामलों में जेल भेज रखा है।
1971 में पाकिस्तान से अलग होने के बाद बांग्लादेश एक तरह से पाकिस्तान का ही अनुसरण करता रहा है। यहां भी कभी सैन्य शासन तो कभी चुने हुए मुखिया शासनरत रहे हैं। जमात-ए-इस्लामी सरीखे मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों का यहां ठीक-ठाक प्रभाव रहा है। कहा जाता है कि मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के तार जमात-ए-इस्लामी से जुड़े हुए हैं।
मुस्लिम कट्टरपंथ के प्रभाव के अलावा बांग्लादेश में चुनावों में बड़ी धांधली की बातें भी सामने आती रही हैं। यह मतपेटियों में छेड़छाड़ से लेकर विपक्षी नेताओं को प्रचार न करने देने, उनकी गिरफ्तारी आदि अनेकों तरीकों से अंजाम दिया जाता रहा है। सत्ताधारी दल किसी भी तरह से चुनाव को अपने पक्ष में मोड़ने को प्रयासरत रहा है। पहले बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने इस तरह की हरकतें कीं और अब सत्ताशीन अवामी लीग यह सब कर रही है।
बांग्लादेश में चुनावी प्रक्रिया का इस तरह नियोजन, विपक्षी दल का बहिष्कार, लगभग 40 प्रतिशत मतदान दिखलाता है कि ये चुनाव एक तरह से नई सरकार गठन की तय समय सीमा पूरी होने से पूर्व संवैधानिक मजबूरीवश कराया गया चुनाव था। चुनाव में अवामी लीग की जीत पहले से ही तय थी। एक तरह से यह चुनाव महज दिखावे का चुनाव था।
अवामी लीग के बीते 15 वर्षों के शासनकाल में जनवादी अधिकारों को कुचलने का काम जमकर हुआ है। इसके शिकार मजदूरों-मेहनतकशों के साथ विपक्षी दल भी हुए हैं। बांग्लादेश की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को उबारने के नाम पर विदेशी पूंजी निवेश, गारमेंट सेक्टर को बढ़ावा दिया गया। आज गारमेंट सेक्टर में सैकड़ों कारखानों में मजदूर बेहद अल्प वेतन में अधिकारविहीन हालत में काम करने को मजबूर हैं। मजदूर जब भी संघर्ष करते हैं तो दमन का शिकार बनते हैं। दमन का शिकार विपक्षी दल को भी बना उसके सैकड़ों कार्यकर्ताओं को भी जेल में ठूंसा हुआ है।
इन हालातों में विपक्षी दल के बहिष्कार के बीच हुए चुनाव के प्रति जहां अमेरिकी व यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने चिंता का रुख अपनाते हुए शेख हसीना सरकार पर निष्पक्ष चुनाव का दबाव बनाया। वहीं चीन-भारत के शासकों ने इसे बांग्लादेश का आंतरिक मामला बताते हुए शेख हसीना सरकार का समर्थन किया। चुनाव पश्चात जीत पर भी बधाई देने वाले देशों में भारत-चीन अग्रणी रहे।
कुल मिलाकर बांग्लादेश पूंजीवादी दलों के झगड़े के बीच स्थिरता-शांति हासिल करने से काफी दूर है। ये चुनाव इस दिशा में कोई बदलाव नहीं लायेंगे। शेख हसीना एक तरह से चुनाव का नाटक करा बांग्लादेश में अपनी शेखशाही कायम कर रही हैं। अरब की शेखशाहियों की तरह वह किसी भी तरह गद्दी से चिपकी हुई हैं।
बांग्लादेश चुनाव : शेख हसीना की शेखशाही
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