हर वर्ष ‘मई दिवस’ दुनिया भर के मजदूरों को उनके संघर्षों की महान विरासत की याद दिलाता है। उन्हें याद दिलाता है कि कैसे मजदूरों ने अपने संघर्षों की बदौलत इस निर्मम पूंजीवादी दुनिया से ‘आठ घण्टे काम के, आठ घण्टे आराम के, आठ घण्टे मनोरंजन के’ का अधिकार हासिल किया था। उन्नीसवीं सदी में मजदूरों ने संघर्षों की अनेकानेक मिसालें कायम की थीं। इनमें सबसे ऊपर ‘पेरिस कम्यून’ (मार्च, 1871) था। ‘पेरिस कम्यून’ के जरिये मजदूर वर्ग ने दिखला दिया था कि वह गुलामी की जंजीरों को तोड़कर सत्ता को अपने हाथ में ले सकते हैं। और एक ऐसी व्यवस्था कायम कर सकते हैं जो शोषण, अन्याय, उत्पीड़न से मुक्त हो।
इस तरह से ‘मई दिवस’ सिर्फ आठ घण्टे की लड़ाई को ही याद करने का दिन नहीं है बल्कि यह दिन मजदूर वर्ग के नेतृत्व में की गई महान क्रांतियों को भी याद करने का दिन है। यह दिन ‘पेरिस कम्यून’ (1871), ‘महान समाजवादी अक्टूबर क्रांति’ (1917), ‘चीन की नवजनवादी क्रांति’ (1949), ‘महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति’ (1967) आदि को भी याद करने का दिन है।
यह दिन इस बात को भी याद करने का दिन है कि कैसे मजदूर वर्ग ने अलग-अलग देशों की आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर भूमिका निभायी थी। एशिया, अफ्रीका महाद्वीप के देशों में चली राष्ट्रीय मुक्ति की लड़ाई से अनेकानेक मिसालें दी जा सकती हैं।
स्वयं हमारे देश में आजादी की लड़ाई में भारत के मजदूर वर्ग ने अनेकोनेक जुझारू संघर्ष छेड़े थे। 1908 में राष्ट्रीय नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की गिरफ्तारी के विरुद्ध की गयी प्रथम राजनैतिक हड़ताल से होता हुआ यह संघर्ष शोलापुर कम्यून (1930) से होते हुए 1946 के महान नौसैनिक विद्रोह के समय तक जाता है। 1946 में जब भारत के महान नौसैनिकों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था तब बम्बई के मजदूरों ने हर कदम पर उनका साथ दिया था। विद्रोही नौसैनिकों का साथ सिर्फ उस वक्त की क्रांतिकारी पार्टी भाकपा ने ही दिया था। कांग्रेस, मुस्लिम लीग ने तो नौसैनिकों को आत्मसमर्पण की ही सलाह दी थी।
इस तरह से देखें तो मई दिवस उन हजारों-हजार मजदूरों को याद करने का भी दिन है जिन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई में जान कुर्बान कर दी। भारत की आजादी में मजदूर वर्ग की भूमिका को लगभग नजरअंदाज कर दिया गया है। यह भारत के मजदूर वर्ग की अहम जिम्मेवारी बन जाती है कि वह अपने उन सभी पूर्वजों को याद करे जिन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई से लेकर उन हजारों-हजार संघर्षों में अपनी जान कुर्बान कर दी जो उन्होंने मजदूरों की बेहतरी के लिए लड़े थे। मई दिवस संघर्षों की महान परम्परा को आगे बढ़ाने का दिन है।
‘मई दिवस’ का दिन एक ऐसा दिन है जो पूरी दुनिया के मजदूरों के बीच आपसी एकता और भाईचारे का संदेश देता है। यह संदेश देता है कि दुनिया भर के मजदूर आपस में भाई-भाई हैं। उनके बीच झगड़े की कोई जमीन नहीं है। वास्तव में कोई वजह नहीं है। दुनिया भर के देशों में आपसी लड़ाई का कारण साम्राज्यवाद है। खासकर अमेरिकी साम्राज्यवाद। आज दुनिया भर में अलग-अलग देशों के बीच चल रहे युद्ध, तनाव के पीछे अक्सर ही अमेरिकी साम्राज्यवाद होता है। यह दिन मजदूर वर्ग को याद दिलाता है कि जब तक दुनिया में साम्राज्यवाद है, पूंजीवाद है तब तक दुनिया में कभी शांति नहीं कायम हो सकती है। न तो गरीब देशों का शोषण-उत्पीड़न रुक सकता है। और न ही देशों के आपसी झगड़े मिट सकते हैं। सिर्फ मजदूर वर्ग ही वह वर्ग है जो मानव जाति को समाजवादी क्रांति के जरिये शांति की राह में ले जा सकता है। तब ही एक ऐसा समय आयेगा जब पूरी दुनिया एक होगी। हर ओर शांति होगी।
मई दिवस के दिन ‘दुनिया के मजदूरों एक हो’ के नारे को लगाने का वास्तविक अर्थ है कि हम उन सब प्रवृत्तियों का खुलकर विरोध करें जो मजदूर-मेहनतकशों को आपस में बांटती हैं। इसका सीधा अर्थ है कि जो कोई भारत के मजदूरों को ‘हिन्दू-मुस्लिम’ के नाम पर लड़ाने की कोशिश करे, उसका डटकर विरोध करें। हम भारत के मजदूरों के लिए यह खुलकर घोषणा करने का दिन है कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल ही नहीं पूरी दुनिया के मजदूर एक हैं। भारत के मजदूर पाकिस्तान को दुश्मन बताये जाने के विरुद्ध हैं। वे अंधराष्ट्रवाद के विरुद्ध हैं। भारत और पाकिस्तान की जनता के असल दुश्मन इन देशों के शासक वर्ग हैं। पूंजीपति वर्ग है। जो एक ओर अपनी सत्ता को मजबूत और बनाये रखने के लिए सीमा पर युद्ध और तनाव की स्थिति बनाये रखते हैं और दूसरी ओर सालों-साल एक-दूसरे से व्यापार बढ़ाते जाते हैं। यही बात चीन के संदर्भ में भी लागू होती है।
मई दिवस के दिन यह बात भी याद की जानी चाहिए कि कैसे दुनिया के मजदूर वर्ग के नेतृत्व में फासीवाद को बीसवीं सदी में मात दी गयी थी। हिटलर और मुसोलिनी को धूल चटा दी गयी थी। फासीवाद को बीसवीं सदी में मात नहीं दी जा सकती थी यदि सोवियत संघ में मजदूर वर्ग का राज न होता। स्तालिन और बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में सोवियत संघ सहित दुनिया के मजदूर वर्ग ने फासीवाद को हार का मुंह दिखलाया था। अमेरिकी, ब्रिटिश साम्राज्यवाद का वश चलता तो वह मजदूरों के राज को 1940 में ही ध्वस्त कर देते। हिटलर-मुसोलिनी को पालने-पोसने में अमेरिकी साम्राज्यवाद की एक बड़ी भूमिका थी। वही आज भी फासीवाद का मुख्य संरक्षक है।
यहीं से यह बात भी निकलती है कि आज भारत सहित दुनिया के बड़े हिस्से में मंडरा रहे फासीवाद के खतरे से पुनः मुक्ति सिर्फ और सिर्फ मजदूर वर्ग के नेतृत्व व संघर्षों के दम पर ही मिल सकती है। मजदूर वर्ग ही अन्य मेहनतकश वर्गों को अपने साथ लेकर मानव जाति को फासीवाद की बर्बरता से बचा सकता है। यही बात भारत पर भी लागू होती है। भारत में हिन्दू फासीवाद को तभी हराया जा सकेगा जब भारत का मजदूर वर्ग आगे आयेगा। पहलकदमी लेगा और उन सभी लोगों को एकजुट करेगा जो हिन्दू फासीवाद के आतंक के साये में जी रहे हैं। हिन्दू फासीवाद से प्रताड़ित हैं।
मई दिवस को जो सिर्फ ‘आठ घण्टे की लड़ाई’ तक सीमित करते हैं वे या तो नासमझ हैं या फिर पूंजीवादी सोच, विचारधारा से ओत-प्रोत लोग हैं। जो मजदूर वर्ग को पूंजीवादी गुलामी में बांध रखना चाहते हैं। इसी तरह से भारत में ऐसे लोगों की अच्छी खासी संख्या है जो भारत के मजदूर वर्ग की समस्या की जड़ कुछ नीतियों (नई आर्थिक नीति) या कुछ कानूनों में देखते हैं। मजदूर क्रांति की राह में आगे न बढ़ें इसके लिए वे उसे कभी पूंजीवादी संविधान की दुहाई दिलाते हैं तो कभी अदालत, चुनाव आदि के जरिए बेहतरी के सब्जबाग दिखलाते हैं। मई दिवस मजदूर वर्ग सहित सम्पूर्ण मानवजाति के लिए साम्राज्यवाद, पूंजीवाद से मुक्ति के आह्वान का दिवस, नये समाज समाजवाद को शीघ्र अति शीघ्र कायम करने के लिए संघर्षों की शुरूवात करने का दिवस है।
मई दिवस मजदूर क्रांतियों की महान विरासत को याद करने व नई क्रांतियों को संभव बनाने के लिए संकल्प लेने व उस दिशा में पूरे प्राण-प्रण से जुटने का दिवस है। मई दिवस के इस महत्व को यदि कोई इससे कम कर के आंकता या स्थापित करता है वह मजदूर वर्ग का किसी भी कीमत पर हितैषी नहीं हो सकता।