प्रोटेरियल (हिताची) के मजदूरों का जुझारू संघर्ष के बाद समझौता संपन्न

प्रोटेरिअल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (हिताची), प्लाट नं 94-95, सेक्टर-8, आईएमटी मानेसर के ठेका मज़दूरों का 23 दिन की जुझारू हड़ताल के बाद समझौता सम्पन्न हुआ। 22 जुलाई 2023 को श्रम विभाग की मध्यस्थता में प्रोटेरियल मजदूरों के प्रतिनिधि और प्रबंधन के बीच हुए समझौते में प्रबंधन मजदूरों की कई मूलभूत मांगों को मानने पर मजबूर हुआ है। 
    
एक साल या उससे ज्यादा पुराने मजदूरों के वेतन में 1500 रुपए की वृद्धि, नियमानुसार छुट्टियां व अब तक संघर्ष में निकाले गए सभी मज़दूरों की पुनः कार्यबहाली पर समझौता हुआ। मज़दूरों की तीन किस्तों में 178+22+22=222 करके ज्वाइनिंग शामिल है। पहले निकाले गए 25 मजदूरों को नवंबर 2023 तक लेने का समझौता हुआ है।
    
प्रोटेरियल हिताची के मज़दूर लम्बे समय से प्रबंधन के खिलाफ संघर्षरत थे साथ ही वे अन्य फैक्टरी के मजदूरों के संघर्ष में भी भागीदारी करते रहे हैं। मज़दूरों ने जुलाई 2022 में अपना मांग पत्र दाखिल किया था। मजदूरों ने समान काम का समान वेतन और स्थाई काम का स्थाई रोजगार की मांग को लेकर लघु सचिवालय गुड़गांव पर प्रदर्शन कर ज्ञापन भी दिया। 9 अक्टूबर 2022 को हिताची के मजदूरों ने 8 घंटे की भूख हड़ताल की और ज्ञापन दिया। उसके बाद हिताची के मजदूरों ने बेलसोनिका यूनियन द्वारा आयोजित मजदूर-किसान पंचायत में भागीदारी की। 4 फरवरी 2023 को मारुति सुजुकी मानेसर के गेट नंबर 4 से मानेसर तहसील तक 8 किलोमीटर लंबा जुलूस निकाला।15 फरवरी 2023 को मारुति के निकाले गए मजदूरों के संघर्ष में भागीदारी की। हिताची के मजदूर 8 किलोमीटर लंबा जुलूस 3 बार (4 फरवरी, 21 अप्रैल और 1 मई) निकाल चुके हैं। 
    
विभिन्न धरना-प्रदर्शन-जुलूस के आयोजनों व 11-12 मई 2023 में 2 दिवसीय हड़ताल और 12(3) के समझौते के बाद भी प्रबंधन द्वारा उनके मांगपत्र व उनकी बुनियादी मांगों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। साथ ही प्रबंधन द्वारा मज़दूरों के साथ बदसलूकी और उन पर काम की प्रक्रिया में दबाव बढ़ाने की गतिविधि लगातार चल रही थी। इस दौरान प्रबंधन ने 25 मजदूरों को प्रताड़ित कर निकाल दिया। 30 जून 2023 को प्रबंधन द्वारा मनमाने तरीके से 5 मजदूरों की शिफ्ट बदलने के खिलाफ, ए, बी और जरनल शिफ्ट के मजदूर दोपहर 2ः30 बजे कंपनी के अन्दर हड़ताल पर बैठ गए।
    
मजदूरों के संघर्ष को तोड़ने के लिए कंपनी प्रबंधन ने हर चाल, हर साजिश का इस्तेमाल किया। बिजली, पानी बंद कर देने से शुरू करके खाना अन्दर ना ले जाने देना व कोर्ट में मज़दूरों पर कंपनी से एक किलोमीटर के दायरे में प्रदर्शन ना करने के स्थायी निषेधाज्ञा की अर्ज़ी भी लगायी। कोर्ट से उनकी अर्जी अस्वीकार होने पर मज़दूरों को खदेड़े जाने की धमकियां भी दी गयीं। लेकिन प्रबंधन के इन सभी पैंतरों के बावजूद न केवल मजदूर दृढ़ता से संघर्ष में डटे रहे बल्कि अपने संघर्ष को और व्यापक रूप देने की कोशिश में लगे रहे।
    
20 दिन की हड़ताल के बावजूद प्रबंधन व श्रम विभाग के रवैय्ये को देखते हुए मजदूरों ने पिछले हफ्ते ही 26 जुलाई के लिए कंपनी गेट के सामने गेट मीटिंग व वहां से शुरू हो कर गुड़गांव डीसी आफिस तक जुलूस का आह्वान किया था। जुलूस की तैयारी में अन्य कंपनी की यूनियनों को आमंत्रित करना व विभिन्न मजदूर संगठनों तक पहुंचने की प्रक्रिया भी तेजी से जारी थी। इसके अतिरिक्त मजदूरों ने लगातार धरना स्थल पर सामूहिक रसोई चला कर, खतरनाक बारिश में तिरपाल के नीचे रात बिता कर, खाना न पहुंचाए जाने पर भूख हड़ताल का ऐलान करके आंदोलन की ऊर्जा को बनाए रखते हुए मालिकों के ऊपर दबाव कायम रखा। अंततः 22 जुलाई को शाम 9 बजे समझौता सम्पन्न हुआ।
    
इन ठेका मजदूरों ने 12(3) का समझौता कर ठेका मजदूरों के लिए एक नई मिशाल पेश की। कि ठेका मजदूर भी अपनी एकता बनाकर मालिकों और सरकार को झुका सकते हैं। समझौता होने के बावजूद भी प्रोटेरियल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (हिताची) के मजदूरों को अपना संघर्ष जारी रखना होगा। तभी वे समझौते को लागू करवा सकते हैं।
    
प्रोटेरियल प्राइवेट लिमिटेड (हिताची) मानेसर हरियाणा के ठेका मजदूरों का संघर्ष समस्त ठेका मजदूरों में संघर्ष की उम्मीद जगाता है। 
        -मानेसर संवाददाता

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।