मणिपुर की साम्प्रदायिक आग की चपेट में आता समूचा उ.-पूर्व

मणिपुर पिछले तीन महीनों से साम्प्रदायिक-नृजातीय दंगों की आग में जल रहा है। वीभत्स से वीभत्स घटनाएं इन दिनों मणिपुर में घटती रही हैं। कुकी महिलाओं के साथ मैतई आतंकी भीड़ ने जो दुर्व्यवहार किया उसका वीडियो जब वायरल हुआ तब देश के प्रधानमंत्री मोदी की जुबान से कुछ बोल फूटे। परन्तु मोदी कब अपनी गलती मानते और कब कहते कि हां मणिपुर के लिए उनकी केन्द्र व मणिपुर की भाजपा सरकार जिम्मेदार है। 
    
पिछले सालों में मोदी-शाह ने कई-कई दफा यह डींग हांकी थी कि उ.पू. के राज्यों में शांति व विकास की गंगा बह रही है। मोदी-शाह अब भी ऐसा व्यवहार कर रहे हैं मानो मणिपुर में शांति कायम हो गई हो। वे न तो देश की संसद में और न ही सार्वजनिक सभाओं में मणिपुर के बारे में कोई चर्चा करते हैं। मोदी विपक्षी दलों की सारी कवायद के बाद भी संसद में मणिपुर के मसले पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। हकीकत में यह तनाव अब मिजोरम के बाद असम को अपनी लपेट में ले रहा है। इस तनाव को आदिवासी व जनजाति समूहों में बढ़ाने में ‘समान नागरिक संहिता’ का हिन्दू फासीवादी शिगूफा अपना काम अलग से कर रहा है। 
    
असल में मिजोरम में कुकी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की तीव्र प्रतिक्रिया हुयी। मिजोरम के कई संगठनों ने 25 जुलाई को एक रैली निकालने का फैसला किया। इस फैसले के साथ कुछेक मिजो संगठनों (परेमा- पीस एकार्ड एम एन एफ रिटर्नीज एसोसिएशन, मिजो जिरलाई पावल, मिजो स्टूडेंट्स यूनियन आदि) ने मैतई लोगों को चेतावनी दी कि वे अपनी सुरक्षा के प्रति सतर्क रहें। मिजोरम की राजधानी में रहने वाले मैतई समुदाय के बीच इससे घबराहट फैल गयी। वे या तो मणिपुर या फिर असम की बराक घाटी में चले गये। असम में रहने वाले मैतई समुदाय से जुड़े छात्र व युवा संगठनों ने ऐसी ही चेतावनी मिजो, कुकी व अन्य लोगों को दी। फलस्वरूप यह सिलसिला भय, आतंक व पलायन का कारण बनने लगा। 
    
मिजोरम के मिजो, मणिपुर के कुकी, जोमी, चिन व बांग्लादेश के कुकी-चिन (ये चटगांव हिल्स ट्रेक्टस में रहते रहे हैं) व म्यांमार के चिन एक जनजातीय समुदाय जो के हिस्से हैं। एक ही समुदाय के साथ ये अब मूलतः ईसाई धर्म के अनुयायी हैं। मिजोरम में जहां एक ओर मणिपुर से आये कुकी व जोमी ने शरण ली हुयी है वहीं दूसरी ओर वहां म्यांमार के चिन समुदाय के लोगों ने भी शरण ली हुयी है। म्यामांर में चिन वहां की सैनिक सरकार के निशाने पर हैं। चिन को मणिपुर में भी मणिपुर के शासन-प्रशासन द्वारा लम्बे समय से निशाना बनाया जा रहा था। मणिपुर के मुख्यमंत्री उकई में पहले से ही कुकी व चिन समुदाय के लोगों पर हथियार व अफीम की तस्करी के आरोप लगाते रहे थे। 
    
मिजोरम के मुख्यमंत्री (जो कि राजग के भी साथ हैं) जोरामथंगा ने मणिपुर के कुकी-चिन-जोमी समुदाय पर हो रहे हमलों के बाद से मिजो नेशनल फ्रंट (एम एन एफ) की पुरानी मांग ‘ग्रेटर मिजोरम’ को पुनः उठाना शुरू कर दिया है। ग्रेटर मिजोरम की मांग का अर्थ है कि मणिपुर व असम के जो जनजाति बहुल इलाके को मिजोरम में मिलाया जाये। 
    
मणिपुर में मैतई व पहाड़ी जनजातियों के बीच हुए भयानक संघर्ष व तनाव के कारण कुकी, चिन, जोमी व मैतईयों के बीच जहां एक ओर ध्रुवीकरण तेज हुआ है वहां इसने पूरे इलाके में पलायन व आंतरिक विस्थापन को बढ़ावा दिया है। मणिपुर में इम्फाल घाटी में रहने वाले कुकी-जोमी-नगा पहाड़ों की ओर तो पहाड़ों में रहने वाले मैतई इम्फाल घाटी या अन्य स्थानों को पलायन करने को मजबूर हुए हैं। इसी तरह मिजोरम में रहने वाले मैतई असम की बराक घाटी या इम्फाल की ओर पलायन को मजबूर हुए हैं। मैतई अपने को असमिया हिन्दू के नजदीक पाते हैं। इसी तरह असम में रहने वाले कुकी-मिजो-जोमी-नगा में भी असुरक्षा बोध पनपा है। 
    
मणिपुर के भीतर संघ-भाजपा की करतूतों का खामियाजा पूरा उ.-पूर्व भुगत रहा है। इनके हिन्दू फासीवादी मंसूबों के कारण असम (हिन्दू-मुस्लिम), मणिपुर व अन्य पूर्वोत्तर राज्य ईसाई-हिन्दू के साम्प्रदायिक तनाव की भेंट चढ़ रहे हैं। 

आलेख

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

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इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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