एन डी ए बनाम इंडिया

सत्ता के लिए बनते अवसरवादी गठबंधन

2024 के लोकसभा चुनावों के लिए सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों की तैयारियां जोर पकड़ने लगी हैं। भाजपा के नेतृत्व वाला राजग गठबंधन बीते 9 वर्षों से सत्तासीन है। हालांकि कहने को ही यह गठबंधन सत्तासीन है वास्तव में सत्ता के सारे सूत्र भाजपा-संघ के हाथों में ही केन्द्रित हैं। भाजपा के भीतर भी मोदी-शाह की ही अधिक चलती है और प्रधानमंत्री कार्यालय सारे मंत्रालयों के निर्णय लेता दिखता है। बीते 9 वर्षों के इनके शासन ने संघ के फासीवादी एजेण्डे को तेजी से आगे बढ़ाया है। संघ का एजेण्डा भारत को एक ‘फासीवादी हिन्दू राष्ट्र’ में तब्दील करने का है। इसी एजेण्डे के तहत संघ-भाजपा सरकार न केवल मजदूरों-मेहनतकशों पर तीखे हमले बोल रही है बल्कि विपक्ष को भी खत्म करने की मंशा से विपक्षी दलों को भी ईडी-सीबीआई आदि के जरिये घेर रही है। संघ-भाजपा के इन हमलों ने विपक्षी दलों के सामने केवल यही राह छोड़ी है कि या तो वे खत्म हो जायें या फिर एकजुट हो आगामी चुनावों में भाजपा-संघ का मुकाबला करें।
    
विपक्ष के 26 दलों ने बंगलुरू में अपने गठबंधन का नाम इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया) रखकर और 2024 के मुकाबले को इंडिया बनाम एन डी ए घोषित कर जुमलेबाजी व नारे गढ़ने में माहिर मोदी को उन्हीं की भाषा में करारा जवाब दिया है। पर इंडिया गठबंधन दरअसल कितना आगामी चुनाव तक एकजुट रह पायेगा यह वक्त ही बतायेगा। इस गठबंधन में भांति-भांति की विचारधारा के लोग हैं। इनमें भाकपा-माकपा सरीखे सुधारवादी भी हैं तो फासीवादी तेवर लिए आप-शिवसेना-तृणमूल कांग्रेस भी हैं। इसमें जनता दल के विभिन्न धड़े भी हैं तो पूंजीपतियों की पुरानी चहेती कांग्रेस पार्टी भी है। इतने भांति-भांति के लोग अगर एक साथ एकजुट होने को मजबूर हुए हैं तो उसके पीछे लक्ष्य इंडिया को या भारत की जनता को संघी फासीवादी हमले से बचाना नहीं है बल्कि खुद के अस्तित्व को बचाना ही अधिक है।
    
इसीलिए अगर यह गठबंधन 2024 का चुनाव जीत भी जाता है तो देश की मजदूर-मेहनतकश जनता के जीवन में कोई बेहतरी नहीं आयेगी। पूंजीपति वर्ग की लूट का शिकंजा पहले की तरह जस का तस कायम रहेगा। जहां तक प्रश्न हिन्दू फासीवादी भाजपा-संघ का है तो वे साम्प्रदायिक वैमनस्य-हिंसा को और बढ़ा फिर से सत्तासीन होने के लिए पूरा जोर लगा देंगे। स्पष्ट है कि हिन्दू फासीवादी आंदोलन को चुनौती देने वाला काम ऐसा गठबंधन कर ही नहीं सकता जिसके भीतर खुद फासीवादी सोच की पार्टियां मौजूद हैं।
    
इंडिया गठबंधन के जवाब में भाजपा ने छोटे-छोटे 41 दलों की बैठक कर खुद के गठबंधन को बड़ा दिखाने की कोशिश की है। हालांकि सब जानते हैं कि इस गठबंधन में सब कुछ भाजपा ही है, छोटे-छोटे दल तो बस सत्ता की मलाई चाटने को ही साथ में हुए हैं। इसीलिए इंडिया गठबंधन ने 2024 के चुनावों के लिए संघ-भाजपा की बेचैनी बढ़ा दी है। वे अब ज्यादा सजग होकर 2024 की तैयारी में जुटेंगे।
    
भाजपा-संघ की कोशिश ‘इंडिया’ गठबंधन में दरार डालना होगी। उन्होंने 2024 के लिए समान नागरिक संहिता का एजेण्डा उछाल इसकी शुरूआत कर भी दी है। समान नागरिक संहिता पर ‘इंडिया’ के दल एकजुट नहीं हैं। आप व शिवसेना पूर्व में इसके समर्थन में बयान दे चुके हैं। अब देखना होगा कि इन मुद्दों पर ‘इंडिया’ गठबंधन अपनी एकता बनाये रखता है। ज्यादा संभावना यही है कि चुनाव आते-आते इस गठबंधन के 2-4 पाये इधर-उधर खिसक लें।
    
कुछ दल मसलन बसपा, अकाली दल आदि अभी दोनों गठबंधनों से दूर रहकर तमाशा देख रहे हैं। ये अवसरवादी हवा का रुख देख रंग बंदलने में माहिर हैं। अतः ये जीतने वाले घोड़े पर दांव लगाने को अभी दूर खड़े हैं।
    
जहां तक प्रश्न सुधारवादी दलों का है तो किसी जमाने में कांग्रेस को हराने के लिए भाजपा का साथ दे इन्होंने भाजपा को स्थापित होने में मदद की थी। आज भाजपा से लड़ने के नाम पर पूंजीवादी-फासीवादी-दक्षिणपंथी दलों के कुनबे में शामिल हो ये अपने को ही और पतन की दिशा में धकेल रहे हैं।
    
जहां तक हिन्दू फासीवादी आंदोलन को चुनौती देने का प्रश्न है तो इसे देश के क्रांतिकारी मजदूर वर्ग के नेतृत्व में बनने वाला फासीवाद विरोधी मोर्चा ही कारगर चुनौती दे सकता है। वही हिन्दू फासीवादियों व बड़े पूंजीपतियों के गठजोड़ को निशाने पर ले सकता है और हिन्दू फासीवादियों के साथ उन्हें पालने वाले बड़े एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग को भी धूल चटा पूंजीवाद के अंत के साथ समाजवाद की दिशा में कदम बढ़ा सकता है। समाजवाद में ही मजदूरों-मेहनतकशों को पूंजी की गुलामी से मुक्ति मिलेगी।
    
विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन संघ-भाजपा पर तो हमलावर है पर एकाधिकारी पूंजी के शासन, उदारीकरण-वैश्वीकरण की जनविरोधी नीतियों पर दरअसल संघ-भाजपा के साथ खड़ा है। अधिक से अधिक वह ‘कुछ पूंजीपतियों को मोदी लाभ पहुंचा रहे हैं’ की बात करता है। वह समग्रता में एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग पर न तो हमलावर है और न ही हो सकता है। क्योंकि इस गठबंधन के ढेरों दल भी एकाधिकारी पूंजी के टुकड़ों पर पलते हैं व उन्हीं की सेवा करते हैं। कांग्रेस इसमें सर्वप्रमुख है।
    
बड़ी पूंजी द्वारा अपने हितों में कायम की जा रही फासीवादी तानाशाही का मुकाबला बड़ी पूंजी को निशाने पर लिए बगैर नहीं हो सकता। और ‘इंडिया’ गठबंधन बड़ी पूंजी को निशाने पर नहीं ले सकता। केवल मजदूर वर्ग के नेतृत्व में बनने वाला मोर्चा ही हिन्दू फासीवादी तत्वों व बड़ी पूंजी दोनों को निशाने पर ले फासीवाद विरोधी संघर्ष को आगे बढ़ा सकता है। ऐसे में सभी न्याय प्रिय-इंसाफ पसंद लोगों को ‘इंडिया’ गठबंधन से मोह पालने के बजाय फासीवाद के खिलाफ वास्तविक संघर्ष की तैयारी में जुट जाना चाहिए।

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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