
इंकलाबी मजदूर केन्द्र के एक कार्यकर्ता की बातचीत एक खुशी नाम की महिला से होती है।
खुशी आप क्या करती हैं? खुशी ने बताया मैं थैला सिलती हूं। थैला आप कहां से लाती हैं? खुशी ने बताया पास के मोहल्ले में एक बड़ी दुकान है उसमें थैलों की कटिंग व छपाई होती है। उसी का मालिक हमारे यहां थैला सिलने को भेजता है।
खुशी एक थैले की सिलाई आप को कितनी मिलती है। खुशी ने बताया एक थैला सिलने पर 1ः30 रुपये मिलते हैं। आप एक दिन में कितने थैले सिलती हैं। खुशी ने बताया 1 दिन में 100 थैला सिलती हूं। 100 थैला सिलने पर 130 रुपये मिलते हैं। लेकिन थैला सिलने में जो धागा लगता है वह हमें अपने पास से लगाना पड़ता है? मशीन व पायदान हमारा घिसता है। इसे देखते हुए तो आप को बहुत कम पैसा मिलता है। ऐसे में आपका घर का खर्च कैसे चलता है? उसने बताया अभी मेरी शादी नहीं हुई है। इसलिए अपना खर्च हो जाता है। हां अगर सोचें तो हम पाते हैं कि मालिक लोग बिना फैक्टरी लगाये शहर में बेरोजगार महिलाओं के सस्ते श्रम को लूट रहे हैं और अपना खूब मुनाफा कमा रहे हैं।
अगर ये मालिक लीगल तरीके से काम करता तो एक बिल्डिंग बनवाता, सरकार को टैक्स देता व उसे फैक्टरी कानून भी लागू कराने पड़ते व ई.एस.आई. फंड, बोनस इत्यादि देना पड़ता। बिना कारखाना खोले ये मालिक टैक्स विभाग व श्रम विभाग और सरकार की नजर से बच जाते हैं और गरीब महिला-बच्चों के सस्ते श्रम को लूटते रहते हैं। ऐसे में मालिकों की पूंजी दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती है और वे माला-माल हो जाते हैं। ऐसे में महिलाएं शिक्षित हों और संगठित हो संघर्ष करें तो उनके श्रम की लूट बच सकती है। धन्यवाद
-एक पाठक, बरेली