मजदूर संघर्ष

मासा के आह्वान पर मनाया गया ‘मजदूर प्रतिरोध दिवस’

दिनांक 8 फरवरी को भारत में 17 संघर्षशील और क्रांतिकारी श्रमिक संगठनों/यूनियनों के एक समन्वय मंच, मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिल

मध्य प्रदेश के हरदा में पटाखा फैक्टरी में विस्फोट

6 फरवरी को सुबह मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 150 किलोमीटर दूर हरदा जिले के बैरागढ़ गांव में पटाखा बनाने वाली फैक्टरी में विस्फोट होने से 13 लोगों की मौत हो गयी (हालांकि

बनभूलपुरा (हल्द्वानी) की घटना में शासन-प्रशासन की भूमिका की न्यायिक जांच की मांग; उत्तराखण्ड सरकार का पुतला दहन

हल्द्वानी के बनभूलपुरा में 8 फ़रवरी के प्रकरण, जिसमें एक मदरसा और नमाज स्थल ढहाने के बाद भड़की हिंसा में पुलिस फायरिंग में 5-6 लोगों की मौत हो चुकी है, जबक

बेलसोनिका यूनियन का प्रबंधन की छंटनी के खिलाफ ढ़ाई साल का शानदार संघर्ष, लड़ाई जारी है

बेलसोनिका प्रबंधन की छंटनी की साजिशों के खिलाफ यूनियन का वर्ष 2021 से संघर्ष जारी है। वर्ष 2021 से वर्ष 2023 तक चले लगभग ढ़ाई साल के इस शानदार संघर्ष में बेलसोनिका प्रबंधन

हिट एण्ड रन कानून के खिलाफ राष्ट्रव्यापी हड़ताल में आटो यूनियन की सक्रियता

बरेली/ औपनिवेशिक कानूनों से मुक्ति के नाम पर मोदी सरकार ने उससे भी ज्यादा कठोर काले कानून पास किये हैं। ‘भारतीय न्याय संहिता’, ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संह

ग्रामीण मजदूरों का अपनी मांगों के लिए प्रदर्शन

मऊ-बलिया/ 12 जनवरी को ग्रामीण मजदूर यूनियन बलिया की ओर से तहसील मुख्यालय रसड़ा पर धरना-प्रदर्शन किया गया। धरने से पहले दर्जनों महिला और पुरुष मजदूरों ने म

आलेख

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।