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भारत में हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। नई दिल्ली में भव्य परेड होती है। इस परेड के दौरान भारत की सैन्य ताकत का खुला प्रदर्शन होता है। साथ ही भारत की सांस
भारत में हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। नई दिल्ली में भव्य परेड होती है। इस परेड के दौरान भारत की सैन्य ताकत का खुला प्रदर्शन होता है। साथ ही भारत की सांस
हालिया विधान सभा चुनावों के परिणामों ने देश के उदारवादियों और वाम-उदारवादियों का दिल तोड़ दिया। वे उम्मीद कर रहे थे कि इन चुनावों में भाजपा की हार फिर 2024 के लोकसभा चुनाव
‘‘खाओ गाली, दो गाली’ भारत की राजनीति का नारा बन गया है। चुनाव के समय मुद्दे गायब हो जाते हैं और जो चीज सबसे आगे रहती है वह अपने विपक्षियों पर चर्चा की गयी गालियां होती है
सिलक्यारा की सुरंग में फंसे 41 मजदूर काफी जद्दोजहद के बाद सकुशल बचा लिये गये। पूंजीवादी मीडिया ने क्रिकेट विश्व कप के बाद सुरंग में फंसे मजदूरों को बचाने के आपरेशन को ही
तृणमूल कांग्रेस की सांसद मोहुआ मोइत्रा के बारे में एक भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की सूचना और सर्वोच्च न्यायालय के एक वकील जय अनंत देहाद्राई की गवाही के बाद संसद की नैतिकता
कहने को राज्यपाल का पद एक संवैधानिक पद होता है और उसका दायित्व होता है कि वह संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करे। राज्य का औपचारिक प्रधान होने के नाते वह इस बात के लिए बाध्य
राजस्थान राइफल एसोसिएशन के कोच द्वारा पिछले कुछ वर्षों में पांच महिला निशानेबाजों के साथ बलात्कार और छेड़छाड़ करने का मामला सामने आया है। महिला खिलाड़ियों ने कोच की शिकायत प
आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को लागू हुए पांच वर्ष बीत चुके हैं। इस योजना को लागू करते समय दावे किए गये कि इस योजना से देश की सबसे गरीब 40 प्रतिशत आबादी लाभ
अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं।
पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।
उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता
इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है।
1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।