सड़ते हुए पूंजीवाद में जनता बेहाल

पूंजीवाद में मजदूर

मजदूर

आज के समाज में हम देख रहे हैं कि मेहनतकश जनता बेहाल है। अपने रोजमर्रा जीवन के लिए। एक तरफ इसी पूंजीवादी समाज में कुछ लोग ही खुश हैं जो लोग मेहनत नहीं कर रहे हैं जो सिर्फ दूसरे की मेहनत को लूट रहे हैं।
    
लेकिन इस दुनिया को चलाने वाली मेहनतकश जनता का पूरा जीवन इस समाज में उत्पादन में लगे होने से खत्म हो जाता है। लेकिन वह अपने बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, भी सही नहीं दे पाता है। एक तरफ देखते हैं कि जो पूरे दिन कुर्सी पर बैठा रहता है- श्रम की लूट कर रहा है उसके बच्चे विदेशों में पढ़ने जाते हैं। कुर्सी पर बैठा हुआ जब बीमार होता है तो वह इलाज के लिए अच्छे से अच्छे अस्पताल में या विदेशों में चला जाता है। सवाल यह है कि एक ही समाज में ऐसा क्यों? इतना भेदभाव क्यों?
    
मैंने शुरूआत की लाइन में सड़़ता हुआ पूंजीवाद इसलिए कहा है कि मैं खुद एक फैक्टरी मजदूर हूं। मैंने अपने ही कारखाने में देखा है कि उत्पादन में लगे हुए मजदूर की कीमत कुछ भी नहीं समझी जाती है मालिक के द्वारा। जैसे कि आज मुनाफे की भूख इतनी बढ़ गयी है कि किसी मजदूर के हाथ-पैर कट जाता है तो उसे कंपनी से निकाल दिया जाता है बजाय उसका इलाज करवाने की जगह। 
    
वह मजदूर दिन-रात मुनाफे को बढ़ाने में लगा होता है। पूंजीपति उस मजदूर को सिर्फ एक मशीन का पुर्जा समझता है। उसे उसके परिवार से कोई लगाव नहीं होता है। उसे सिर्फ और सिर्फ मुनाफे से लगाव होता है। जबकि वह मजदूर अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय उस उत्पादन या पूंजीपति को दे देता है। वह मजदूर यह सोचता है कि मालिक उसके बारे में अच्छा सोचेगा, लेकिन आज उल्ट हो रहा है। किसी कारणवश उस मजदूर का एक्सीडेंट या मृत्यु हो जाती है तब मालिक उसके बारे में या उसके बच्चों-परिवार के बारे में कुछ नहीं सोचता। तो मेरा सवाल है कि क्या मजदूर का कोई सम्मान नहीं है। क्या वह सिर्फ पूंजीपति के मुनाफे की हवस की बलि चढ़ने के लिए ही है?
    
क्या इस पूंजीवादी समाज में मजदूर को उसका सम्मान मिलेगा?
    
क्या मजदूर पूंजीपतियों की लूट के आगे ऐसे ही भेंट चढ़ता रहेगा? 
    
क्या उसके जीवन में इस समाज में अच्छे दिन आयेंगे? 

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता