फैक्टरी में सीमेंट की चादरें बदलनी हैं, काम पर ठेकेदार ने जल्दी बुलाया है। अर्जुन को ठेकेदार के अंडर में काम करते हुए एक लम्बा अरसा हो गया था। अलग-अलग फैक्टरियों में काम का तजुर्बा और अलग-अलग प्रकृति के काम वैल्डिंग, ग्राइडिंग, चादरें बिछाना ये सामान्य दिनचर्या के काम थे और अब इन कामों में कुछ भी नया नहीं था। निश्चित काम के एवज में निश्चित दिहाड़ी। ठेकेदार के पास काम करने के दौरान काम लगभग रोज ही मिल जाता है। कुल मिलाकर छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव के साथ जीवन समचाल से चल रहा है।
50 फीट ऊंचे लोहे की शेड की चादरें बदलवाने का काम आज अर्जुन के जिम्मे है। मजदूरों के ऊपर शिकारी नजरें जमाए एच.आर. पाण्डे की नजर कभी भी सुरक्षा उपकरणों पर नहीं जाती। अभी कल ही की बात है जब सुरेश की कैंटीन में बैठने को लेकर क्लास लगवाई थी, मगर सेफ्टी बेल्ट जैसे सामान्य परन्तु जीवनरक्षक उपकरणों की सुध लेने वाला यहां कोई नहीं है। ठेकेदार के पास अर्जुन के लिए एक ही जवाब है जब फैक्टरी वाले ही नहीं दे रहे हैं तो मैं कहां से लाऊं ऐसे ही करना पड़ेगा।
ऊंचाई पर होने के दो अर्थ होते हैं। एक वह जो दौलत के, शोहरत के तथाकथित सफलता के मानदण्डों पर खड़ा होता है। एक चकाचौंध भरी दुनिया उसे हासिल होती है परन्तु ऊंचाई पर होने का दूसरा पहलू बहुत स्याह होता है। अर्जुन के लिए ऊंचाई का अर्थ बहुत स्याह है जिसमें कोई चकाचौंध नहीं है, कोई खूबसूरती नहीं है मगर जीवन की त्रासदी है कि न चाहते हुए भी आपको उस ऊंचाई पर चढ़ना है और उस ऊंचाई से नीचे का सच बहुत डरावना और पीड़ादाई होता है।
बारम्बार ऊंचाई पर बगैर सुरक्षा उपकरणों के चढ़ते अर्जुन का दिल कांपता है उसे एक ओर ऊंचाई से गिरने का भय और दूसरी ओर भूख दिखाई देती है। भूख भय पर काबू पाती है। अर्जुन भूख से लड़ने की खातिर बगैर सुरक्षा उपकरणों के आज भी ऊंचाई पर चढ़ता है। इस उम्मीद से कि ऊंचाई उसे हरा नहीं पायेगी पर हर बार ऊंचाई से जीत जाने वाला अर्जुन आज हार जाता है, उसका संतुलन गड़बड़ाता है और वह शहतूत की तरह 50 फीट की ऊंचाई से जमीन पर गिर जाता है।
शहतूत के गिरने के बाद जमीन उसके लाल रस से भीग जाती है। लाल रस के निशान जमीन में जम जाते हैं और धरती पर पड़े हुए नुकीले टुकड़ों पर चिपका लहू और चिपका हुआ मांस का टुकड़ा ऊंचाई से गिरने के दर्द को बयां कर रहा होता है। उस ऊंचाई को देखकर दिल में सिहरन उठ जाती है। पूरे वातावरण में कोलाहल होता है जब शहतूत को बहुत सी बांह उठाकर ले जा रही होती हैं, संवेदनाओं में डूबे शब्द गूंजते हैं और हर संवेदनशील दिल से टीस उठती है।
शहतूत के गिरने के बाद चतुर सियार अपने चिर-परिचित अंदाज में भेड़ों को काम पर लगने का हुक्त देते हैं और इंसान होने का लबादा ओढ़ लेते हैं। सीमेंट की टूटी चादरें सबूत बन जाती हैं और उन टूटी चादरों के बीच में से झांकता हुआ नीले आसमान का टुकड़ा खामोश खड़ा दिखाई देता है। और कुछ अदृश्य चेहरे दिखाई देते हैं जिन पर तथाकथित ऊंचाई की सभ्यता की चमक होती है। परन्तु उनके होठों पर लालिमा होती है शहतूत की इस बीच ऊंचाई से टपका अर्जुन अस्पताल में जीवन और मृत्यु की जंग लड़ रहा होता है। और इससे बेपरवाह चतुर सियार ठेकेदार से अर्जुन का अधूरा काम बगैर सुरक्षा उपकरणों के पूरा करने के लिए नये ‘अर्जुन’ की मांग कर रहा होता है। -पथिक
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