2022 में नया भारत

    भाजपा की संघी सरकार में प्रधानमंत्री से लेकर गुमनाम मंत्री तक यह बात दोहराते रहते हैं कि 2022 तक एक नया भारत बन जायेगा। 2022 की समय सीमा इसलिये रखी गई है कि उस साल भारत की आजादी को पचहत्तर साल हो रहे होंगे। 2022 में नया भारत की बात करते हुये संघी अनकहे यह कह रहे होतेेे हैं कि तब तक वे ही सत्ता में रहेंगे।<br />
    इस बात को छोड़ भी दें कि आपातकाल के पहले के जो भी आंदोलन से लेकर अब तक कई बार नये भारत की बात होती रही है, तो भी यह सवाल बचा रहता है कि इस नये भारत में नया क्या होगा? 2022 का नया भारत 2017 के भारत से 1977 के भारत से या फिर 1947 के भारत से किस मायने में भिन्न होगा?<br />
    2022 के नये भारत की कई तरह से कल्पना की जा सकती है। मसलन यह कल्पना की जा सकती है कि तब टाटा-बिरला, अंबानी-अडाणी जैसे <span style="font-size: 13px; line-height: 20.8px;">पूंजी</span>पति नहीं होंगे। पूंजीपतियों की सारी पूंजी सरकार जब्त कर चुकी होगी। देश की समूची अर्थव्यवस्था सरकार के हाथों में होगी और सरकार उसे चला रही होगी। छोटी-छोटी दुकानों के बदले सरकारी दुकानें होंगी और छोटी-छोटी खेती के बदले सामूहिक खेती। देश के सारे लोग रोजगारशुदा होंगे और काम के घंटे रोेजना छः-सात ही रहे गये होंगे। भूखमरी-बेरोजगारी खत्म हो चुकी होगी। धर्म, जाति, लिंग, राष्ट्रीयता इत्यादि के आधार पर भेदभाव और उत्पीड़न समाप्त हो गया होगा। आज के सारे शोषक-उत्पीड़क विदेश भाग गये होंगे।<br />
    पर यह संघियों का नया भारत नहीं हो सकता। यह उनकी कल्पना का भारत नहीं है।<br />
    नया भारत ऐसा भी हो सकता है कि उसमें टाटा-बिड़ला, अम्बानी-अडाणी तो हों पर उन पर सरकार का कठोर नियंत्रण हो। निजी क्षेत्र पर सरकारी क्षेत्र की प्रधानता हो, जन राहत कार्यों पर सरकार भारी मात्रा में खर्च करती हो। यातायात, शिक्षा और स्वास्थ्य पूर्णतया सरकारी हों। बेरोजगारों को बेराजगारी भत्ता मिलता हो। धर्म को राज्य से पूर्णतया अलग कर दिया गया हो, धार्मिक भेदभाव व उत्पीड़न पर सख्त पाबंदी हो। जातिगत व लैंगिंक भेदभाव व उत्पीड़न पर प्रहार हो रहा हो। देश की सभी राष्ट्रीयताओं को स्वायत्तता मिली हुई हो। यह नया भारत उतना नया तो नहीं होगा पर आज के भारत से यकीनन बेहतर होगा। पर यह भी संघियों का नया भारत नहीं हो सकता।<br />
    तब फिर संघियों का नया भारत कैसा होगा?<br />
    संघियों के नये भारत में टाटा-बिरला, अम्बानी-अडाणी बने रहेंगे। वे और फलेंगे-फूलेंगे। उनकी सम्पत्ति और तेजी से बढ़ेगी। रहा सहा सरकारी क्षेत्र भी समाप्त हो जायेगा। शिक्षा और स्वास्थ्य पूर्णतया निजी क्षेत्र के हवाले होंगे। पुराने श्रम कानूनों के तहत मजदूरों को मिली हुई कानूनी सुरक्षा पूर्णतया समाप्त कर दी जायेगी। किसानों को बाजार में लुटने के लिये और फिर आत्महत्या करने के लिये पूर्णतया मुक्त कर दिया जायेगा। जो कोई भी इन सबका विरोध करेगा उसे सीखचों के पीछे बंद कर दिया जायेगा। सरकार के विरोध में कोई भी आवाज देशद्रोह घोषित कर दी जायेगी।<br />
    इस नये भारत में हिन्दू धर्म की पौराणिक कथायें ही इतिहास होंगीं। उन्हें इतिहास के तौर पर बच्चों को पढ़ाया जायेगा। उनमें प्रस्तुत कल्पनायें विज्ञान का दर्जा हासिल करेंगी और विद्वान उन्हीं पर शोध करेंगे। बाद के भारत के इतिहास को बाहरी आक्रांताओं के इतिहास के तौर पर पढ़ाया जायेगा।<br />
    संघियों के इस नये भारत में राज-काज के संचालन में बाबा-साधुओं की महत्वपूर्ण भूमिका होेगी। हो सकता है आधे मंत्री व मुख्यमंत्री भगवाधारी हों। ये भांति-भांति के अखाडा़ परिषद के सदस्य हों। यह भी हो सकता है कि संसद व विधान सभा भवनों को संघ को और अखाड़ा-परिषद को सौंप दिया जाये। <br />
    जहां तक समाज के संचालन की बात है, संघ के पास पहले से ही एक आदर्श समाज की आचार-संहिता मौजूद है। मनु-स्मृति नामक इस आचार संहिता को देश में लागू करने से आज मौजूद सामाजिक तनाव समाप्त हो जायेंगे क्योंकि ये तनाव ईश्वर द्वारा बनाई व्यवस्था से दूर जाने के कारण पैदा हो रहे हैं। वर्णाश्रम धर्म अपनाते ही सब सही हो जायेगा।<br />
    जहां तक मुसलमानों जैसे विधर्मियों का सवाल है, उनके सारे नागरिक अधिकार छीन लिये जायेंगे। वे केवल काम करेंगे और जिन्दा रहेंगे। यदि वे इससे ज्यादा कुछ मांग करेंगे तो उन्हें देश से निकाल दिया जायेगा। न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।<br />
    यह सब हासिल करके संघियों का 2022 का नया भारत विश्वगुरू बनने के लिये एकदम तैयार हो जायेगा। तब भारत का ज्ञान-विज्ञान ही दुनिया पर राज करेगा। सारी दुनिया में भागवत मोदी कथा की ही चर्चा होगी।<br />
    देश के सारे संघियों को इस नये भारत का बेसब्री से इंतजार है। बस खटके की बात केवल इतनी है कि संघी 2019 का चुनाव हार न जायें। पिछले कुछ समय से बयार कुछ अच्छी नहीं बह रही है। वैसे चुनाव हार जाने पर संघी अपने नये भारत के लिये कोई अन्य तरीका भी अपना सकते हैं।<br />

आलेख

/takhtaapalat-ke-baad-syria-mein-bandarbaant-aur-vibhajan

सीरिया में अभी तक विभिन्न धार्मिक समुदायों, विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं। बशर अल असद के शासन काल में उसकी तानाशाही के विरोध में तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों का गुस्सा था और वे इसके विरुद्ध संघर्षरत थे। लेकिन इन विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के मानने वालों के बीच कोई कटुता या टकराहट नहीं थी। लेकिन जब से बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध ये आतंकवादी संगठन साम्राज्यवादियों द्वारा खड़े किये गये तब से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध वैमनस्य की दीवार खड़ी हो गयी है।

/bharatiy-sanvidhaan-aphasaanaa-and-hakeekat

समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।    

/syria-par-atanki-hamalaa-aur-takhtaapalat

फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।

/bharatiy-arthvyawastha-ki-gati-aur-niyati

यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।