अमरीकी साम्राज्यवादी असद हुकूमत को सत्ताच्युत करने पर आमादा है। सीरिया में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप की संयुक्त राष्ट्रसुरक्षा परिषद से स्वीकृति लेने में असफल होने के बाद वे अन्य विकल्पों पर जोर-शोर से लग गए हैं। यह अब समय की बात है कि वे ‘हुकूमत परिवर्तन’ की मुहीम को कब तक अंजाम देना चाहते हैं। वे तो इसे तत्काल चाहते हैं। लेकिन चाहत एक बात है और उसे अमली शक्ल देना दूसरी बात है। यह जरूरी नहीं है कि अमरीकी साम्राज्यवादियों की हर चाहत को उनके लिये अमली शक्ल देना संभव ही हो।
सीरिया में ‘हुकूमत परिवर्तन’ के अभियान में अमरीकी साम्राज्यवादी लगे हुए हैं। साथ ही तुर्की, सउदी अरब और कतर की हुकूमतें असद के विरोधियों की मदद कर रही हैं। तुर्की में सी.आई.ए. की मदद से विरोधियों के प्रशिक्षण और हथियार दिये जा रहे हैं। सीरियाई राष्ट्रीय परिषद (एस.एन.सी.) के नेतृत्व में ऐसे लोगों को रखा गया है जो सी.आई.ए. से लंबे समय से धन प्राप्त कर रहे हैं और उनके विश्वासपात्र रहे हैं। सउदी अरब और कतर के माध्यम से सीरिया के भीतर विद्रोहियों को हथियार, साजो-सामान और बड़े पैमाने पर धन मुहैया कराया जा रहा है। मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ नाटो, ब्रिटिश सीरिया के भीतर असद हुकूमत के विरुद्ध सक्रिय है। अल-कायदा से जुड़ी ताकतों की मदद असद हुकूमत के विरुद्ध ली जा रही है।
अमरीकी साम्राज्यवादी सीरिया में लीबिया जैसा सैनिक आक्रमण करने की योजना बना रहे थे। लेकिन सीरिया और लीबिया में कुछ समानता होने के बावजूद असमानताएं ज्यादा हैं। यह सही है कि सीरिया में असद का तानाशाही भरा निरंकुश राज्य लंबे समय से कायम है, लेकिन असद की हुकूमत इस क्षेत्र में अमरीकी प्रभुत्व का समय-समय पर विरोध करती रही है। इसके साथ ही शिया, सुन्नी, द्रुज, ईसाई एवं कुर्द लोगों के बीच सामंजस्य भी कायम करती रही है। सीरिया के शासक अलावी शिया हैं, जबकि स्थानीय आबादी में बहुमत सुन्नी लोगों का है। एक तरफ, असद की बाथ पार्टी की सत्ता निरंकुश रही है, तो दूसरी तरफ यह सभी धर्मावलम्बियों के बीच अपना एक आधार बनाए रही है। इसलिये यहां न तो लीबिया जैसी स्थिति है जिसकी सत्ता का अधिकार अत्यंत संकुचित था और न ही मिस्र या ट्यूनीशिया जैसी स्थिति है जहां पर अमरीकी साम्राज्यवाद परस्त सत्ताएं थी, जिनके विरोध में जनता उठ खड़ी हुई थी।
सीरिया आंदोलन शुरू हुआ था। यह आंदोलन सीरिया के भीतर राजनीतिक सुधारों, लोगों के जनतांत्रिक अधिकारों को बहाल करने और राजनीतिक विरोधियों को जेल से रिहा करने तथा राजनीतिक गतिविधियों को खुले रूप से करने की मांगों को लेकर चल रहा था। एक तरफ तो निरंकुश असद की हुकूमत ने इन आंदोलनों का बर्बरता से दमन किया तो दूसरी तरफ में अरब विद्रोहों की कड़ी अमरीकी साम्राज्यवादियों को यह मौका मिला कि वे इसे अपनी लंबे समय से चली आ रही ‘हुकूमत परिवर्तन’ की योजना की दिशा में तेजी से आगे बढ़े। असद हुकूमत ने ज्यों-ज्यों सीरियाई जनता के आंदोलन को कुचलने के लिये कड़े दमनकारी कदम उठाए हैं, त्यों-त्यों आंदोलन और ज्यादा व्यापक होता गया। सीरियाई सेना का एक हिस्सा विद्रोह करके सीरियाई हुकूमत के विरुद्ध हथियारबंद लड़ाई तेज करने की ओर गया। सेना से विद्रोह करने वाले सैनिकों एवं अन्य शामिल लोगों ने स्वतंत्र सीरियाई सेना (थ्ण्ैण्।ण्) का गठन किया। इस सेना के शीर्ष में सीरियाई सेना से विद्रोह करने वाले सैनिक अधिकारी व अन्य शामिल हैं। इस सेना के नेताओं ने विदेशी हस्तक्षेप की मांग शुरू की थी। अमरीकी साम्राज्यवादी यही चाहते थे। वे अब यह दिखावा कर सकते थे कि निरंकुश सत्ता के विरुद्ध वे ‘जनतंत्र’ की स्थापना में मदद कर रहे हैं। वे ‘मानवीय हस्तक्षेप’ के लिये जमीन पाने का दावा कर सकते थे।
हालांकि स्वतंत्र सीरियाई सेना के भीतर विविध शक्तियां कार्यरत हैं। लेकिन इसका नेतृत्व उन लोगों के हाथ में है जो असद हुकूमत को हटाने में विदेशी मदद विशेष तौर पर अमरीकी साम्राज्यवादियों से मदद मांग रहे हैं। सीरिया के भीतर चल रही असद विरोधी शक्तियों में ऐसी भी शक्तियां हैं जो असद हुकूमत को हटाने के लिये किसी बाहरी सैनिक हस्तक्षेप की विरोधी हैं। लेकिन वे समूचे देश में स्थानीय पैमाने पर बिखरी हुई हैं। उनके भीतर तालमेल का अभाव है। वे विचारधारात्मक और राजनीतिक तौर पर अलग-अलग जमीन पर खड़ी हैं। इसलिये उनकी आवाज ज्यादा सुनाई नहीं पड़ती। कभी-कभी वे एक दूसरे के विरुद्ध कार्यरत रहती हैं।
2011 के अंत से इन स्थानीय विरोधी शक्तियों के बीच तालमेल बैठाने की काशिशें हुई हैं। ये स्थानीय जन-प्रतिरोध की संस्थाएं तालमेल कमेटी के बतौर जानी जाती हैं। इन स्थानीय तालमेल कमेटियों को मिलाकर एक राष्ट्रीय तालमेल कमेटी का गठन किया गया है। हालांकि सभी स्थानीय तालमेल कमेटियां राष्ट्रीय तालमेल कमेटी से संबद्ध नहीं हंै। लेकिन 300 से ज्यादा तालमेल कमेटियां राष्ट्रीय तालमेल कमेटी से जुड़ी हुई हैं। राष्ट्रीय तालमेल कमेटी (एन.सी.सी.) किसी भी विदेशी सैनिक हस्तक्षेप की विरोधी रही है। इस राष्ट्रीय तालमेल कमेटी के भीतर भी मतभेद हैं। इनमें से एक हिस्सा असद की हुकूमत के रहते हुए उसमें राजनीतिक सुधार का पक्षधर है। जबकि दूसरा हिस्सा असद को सत्ताच्युत करके एक नई जनतांत्रिक हुकूमत कायम करने के पक्ष में है।
अमरीकी साम्राज्यवादी व अन्य पश्चिमी ताकतें सीरिया के भीतर उठने वाली इन आवाजों को सुन रहे हैं और वे इन आवाजों को या तो अपने डैने के नीचे समाहित कर लेना चाहते हैं या फिर उनको हाशिये में डाल देने की कोशिश कर रहे हैं।
अमरीकी साम्राज्यवादियों की मदद से एक सीरियाई राष्ट्रीय परिषद (एन.सी.सी.) का गठन किया गया है। इसमें मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ-साथ कुछ स्थानीय तालमेल कमेटियां, कुर्दों के कुछ गुट तथा निर्वासित लोगों के कुछ समूह हैं। जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि इसके शीर्ष नेतृत्व में सी.आई.ए. के लंबे समय से विश्वस्त रहे लोग हैं। सीरियाई राष्ट्रीय परिषद खुले तौर पर असद हुकूमत को उखाड़ फेंकने का आह्वान करती है और इसके लिये वह अमरीकी व पश्चिमी देशों के सीधे सैनिक हस्तक्षेप की पक्षधर है। सीरियाई राष्ट्रीय परिषद को साम्राज्यवादी ताकतंे ‘‘मुख्य विरोधी गठबंधन’’ के बतौर चित्रित करते हैं। वाशिंगटन टाइम्स समाचार पत्र इसे सीरिया से बाहर आधारित प्रतिस्पर्धी संगठनों का एक संयुक्त (अम्बे्रला ग्रुप) ग्रुप की संज्ञा देता है। अमरीकी साम्राज्यवादी सबसे अधिक इसी ग्रुप को बढ़ावा देते हैं। 2012 की फरवरी में ट्यूनीशिया में संपन्न ‘सीरिया के दोस्त’ के उद्घाटन भाषण में अमरीकी साम्राज्यवादियों के प्रवक्ता विलियम हेग ने घोषणा की थी ‘‘....हम अन्य देशों के साथ समान रूप से अब उनको (यानी सीरियाई राष्ट्रीय परिषद को) सीरियाई जनता के न्यायसंगत प्रतिनिधि के बतौर व्यवहार करेंगे तथा मान्यता देंगे।’’
अगर सीरियाई राष्ट्रीय परिषद के शीर्ष नेताआंे की पृष्ठभूमि को देखा जाय तो इनके अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ संबंधों को आसानी से समझा जा सकता है। इसमें एक बासमा कोदमनी है जो सीरियाई राष्ट्रीय परिषद के कार्यकारी ब्यूरो की सदस्य तथा विदेशी मामलों की मुखिया है। उनका कहना है कि ‘‘शासक हुकूमत से कोई भी संवाद संभव नहीं है। हम सिर्फ यह बहस कर सकते हैं कि कैसे भिन्न राजनीतिक व्यवस्था में जाया जा सकता है।’’ उन्होंने अभी हाल ही में घोषणा की है ‘‘अगला कदम अध्याय-अपप के अंतर्गत प्रस्ताव की आवश्यकता है जो तमाम न्यायसंगत तरीकों, दबाव के तरीकों, हथियारों पर प्रतिबंध के साथ-साथ हुकूमत को मानने के लिये मजबूर करने वाले ताकत के इस्तेमाल करने की स्वीकृति देना है।’’ यह महिला कोदमनी 2005 से ही काहिरा में फोर्ड फांउडेशन के साथ काम रही थीं। फोर्ड फांउडेशन के प्रधान कार्यालय न्यूर्याक में स्थित है। 2005 में उसे अरब सुधार पहल (।तंइ त्मवितउ प्दपजपंजपअम) का कार्यकारी निदेशक घोषित किया गया। यह पहल अमरीका की विदेश संबंधों की परिषद का एक कार्यक्रम था। इसी प्रकार, रवादान जियादेह सीरियाई राष्ट्रीय परिषद के विदेश संबंधों का निर्देशक है। यह वाशिंगटन के थिंक टैंक यू.एस. शांति संस्थान (न्ैप्च्) के निदेशक मंडल में रहा है जिसमें सी.आई.ए. और अमरीकी विदेश विभाग के कई पूर्व व वर्तमान अधिकारी हैं। जियादेह के अलावा सीरियाई राष्ट्रीय परिषद में ओसामा मोनाजेह के अलावा सीरियाई राष्ट्रीय परिषद में ओसामा मोनाजेद और नजीब घादबियान जैसे लोग हैं, जिनके सी.आई.ए. से फंड प्राप्त संस्थाओं से घनिष्ठ संबंध रहे हैं।
अमरीका के विदेश विभाग द्वारा संचालित मध्यपूर्व साझीदारी पहल (डपककसम म्ंेज च्ंतजमतदमतेीपच प्दपजपंजपअम) की प्रवक्ता ने कुछ महीनों पहले इसके बारे में कहा था ‘‘इसने अमरीका की जनतंत्र को प्रोत्साहन देने के प्रयासों में एक सकारात्मक ब्रांड तैयार किये हैं। उन्होंने आगे घोषणा की कि ‘सीरिया और अन्य देशों में अनेक संगठन हैं जो अपनी सरकारों को बदलना चाहते हैं...यह एक ऐसी कार्यसूची है जिसमें हम विश्वास करते हैं और हम इसका समर्थन करने जा रहे हैं।’
अमरीकी साम्राज्यवादी ‘‘सीरिया के जनतंत्र कार्यक्रम’’ को धन उपलब्ध कराने में करोड़ों डाॅलर व्यय कर रहे हैं। वे असद हुकूमत के विकल्प के बतौर सीरियाई राष्ट्रीय परिषद को स्थापित करने में जोर-शोर से लगे हुए हैं। इसके लिये उन्होंने सीरियाई व्यापारियों की सेवाएं भी लीं हैं। वे प्रचार माध्यमों के जरिये सीरियाई राष्ट्रीय परिषद को स्थापित करने में लगे हैं। इसके लिये प्रचारतंत्र के कलम घसीटू लोगों की सेवाओं के जरिये वे विश्वव्यापी झूठे प्रचार में लगे हुए हैं।
असद हुकूमत के विरोध में उठ रही सीरियाई मजदूरों, बुद्धिजीवियों और समाज के अन्य हिस्सों की आवाजों को हाशिये पर डालने की कोशिशें और तेज हो गई हैं। सीरियाई राष्ट्रीय परिषद, स्वतंत्र सीरियाई सेना इत्यादि की चर्चा समूची दुनिया में हो रही है। यह सब अमरीकी साम्राज्यवादी जोर-शोर से कर रहे हैं।
असद हुकूमत को रूस का समर्थन मिला हुआ है। रूस असद हुकूमत को मुख्य रूप से हथियारों की आपूर्ति करता है। रूस का नौसेनिक अड्डा सीरिया के तारकुस में स्थित है। रूस और चीन में असद हुकूमत के विरुद्ध विदेशी सैनिक हस्तक्षेप का विरोध किया है। उधर लातिनी अमेरिकी देशों के समूह ए.एल. बी.ए. ने सीरिया में अमरीकी व अन्य साम्राज्यवादी देशों द्वारा सैनिक हस्तक्षेप का विरोध किया है। ऐसी स्थिति में अमरीकी साम्राज्यवादी एक तरफ तो असद हुकूमत द्वारा किये गए दमन के विरोध में ‘मानवीय हस्तक्षेप’ करने के आधार को इस्तेमाल कर रहे हैं। वे स्वतंत्र सीरियाई सेना के चुनिंदा गु्रपों को जमीनी स्तर पर मदद कर रहे हैं-हथियारों और अन्य तरीकों से इसके साथ ही अपने नौसेैनिक बेड़े को खाड़ी में तैनात किये हुए हैं। ब्रिटिश नौसैनिक बेड़े ओलंपिक खेलों की समाप्ति के बाद पूर्वी भूमध्यसागर की ओर कूच कर जाएंगे। इस प्रकार, जमीन पर स्वतंत्र सीरियाई सेना की मदद के लिये हवाई और नौसैनिक ‘कवर’ अमरीका - नाटो की सेनाओं की रहेगी।
ऐसी स्थिति में सीरिया में ‘सत्ता परिवर्तन’ की मुहिम इस समूचे इलाके में बड़े युद्ध को जन्म दे सकती है। अरब विद्रोहों के बाद जो भी सत्ताएं आई हैं वे अभी फिलहाल खुले तौर पर अमरीकी साम्राज्यवादियों का साथ नहीं दे सकतीं। इसके अतिरिक्त सीरिया के भीतर बड़े पैमाने पर अमरीकी साम्राज्यवाद के हस्तक्षेप का विरोध होगा। इजरायल इस क्षेत्र में और ज्यादा अलगाव की ओर जायगा। इस स्थिति को अमरीकी साम्राज्यवादी अच्छी तरह समझ रहे हैं। इसलिये वे इराक की तरह या यहां तक की लीबिया की तरह भी सीधा हमला करने की जुर्रत नहीं कर पा रहे हैं।
तब फिर क्या कारण है कि अमरीकी साम्राज्यवादी सीरिया में ‘हुकूमत परिवर्तन’ के लिये आमादा हैं? सीरिया में ऐसा कोई तेल भंडार भी नहीं है, जिसके लिये उन्हें इतनी जद्दोजहद करनी पड़े। दरअसल, सीरिया तो शुरुवात है। वह ईरान पर अपना नियंत्रण कायम करने की चैकी है। पश्चिम एशिया में सीरिया और ईरान, दो देशों की हुकूमतें ऐसी हैं, जो अमरीकी साम्राज्यवादियों के इस क्षेत्र में प्रभुत्व के रास्ते में रोड़ा बनी हुई हैं। यदि सीरिया में असद हुकूमत को सत्ताच्युत कर दिया जाता है, तो फिर ईरान में अपनी पक्षधर हुकूमत कायम करने के रास्ते का एक अवरोध समाप्त हो जायगा।
दूसरे, लंबे दौर में रूस और चीन की हुकूमतों के विरुद्ध अपने अभियान में अमरीकी साम्राज्यवादी एक और कदम आगे बढ़ सकते हैं। यह अमरीकी साम्राज्यवादियों की विश्वप्रभुत्व की दीर्घकालिक सोच है।
लेकिन अमरीकी साम्राज्यवादी आर्थिक तौर पर पहले से कमजोर हुए हैं और इन्हें अपनी प्रतिद्वंदी ताकतों के द्वारा चुनौती मिल रही है। वे जितना अधिक आर्थिक तौर पर चुनौती पा रहे हैं, उतना ही अधिक वो सैनिक ताकत का सहारा ले रहे हैं। वे न सिर्फ कमजोर देशों को झुकाने और उनको अपने वर्चस्व के अंतर्गत लाने के लिये सैनिक ताकत का इस्तेमाल कर रहे हैं, बल्कि अपने आर्थिक प्रतिद्वंद्वियों को भी अपनी सैनिक ताकत की धौंस के अंतर्गत रखना चाहते हैं। रूस चाहे सैनिक तौर पर कितना भी कमजोर हो, वह लीबिया के बाद अब पीछे हटने को ज्यादा तैयार नहीं है। चीन भी अमरीकी प्रभुत्व के विरोध में आ खड़ा होगा।
इसलिये सीरिया में अमरीकी-नाटो सैनिक हस्तक्षेप बड़ा खतरा लिये हुए हैं। यह युद्ध हो सकता है कि व्यापक क्षेत्रीय युद्ध का रूप ग्रहण कर ले। सीरिया की भौगोलिक स्थिति और पश्चिम एशिया की राजनैतिक स्थिति भारी उथल-पुथल को जन्म दे सकती है। लेबनान में हिजबुल्ला-फिलस्तीनी राष्ट्र के लिये संघर्ष और सीरिया में विघटन की स्थिति की संभावना, तुर्की के भीतर कुर्दाें का राष्ट्रीय आत्मनिर्णय का संघर्ष ये सभी तेज हो सकते हैं, जो अमरीकी साम्राज्यवादियों की चाहत को दुःस्वप्न में बदल सकते हैं और देर-सबेर अमरीकी साम्राज्यवादियों को इस दुःस्वप्न का सामना करना पड़ेगा।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के तात्कालिक निशाने पर सीरिया
राष्ट्रीय
आलेख
सीरिया में अभी तक विभिन्न धार्मिक समुदायों, विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं। बशर अल असद के शासन काल में उसकी तानाशाही के विरोध में तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों का गुस्सा था और वे इसके विरुद्ध संघर्षरत थे। लेकिन इन विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के मानने वालों के बीच कोई कटुता या टकराहट नहीं थी। लेकिन जब से बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध ये आतंकवादी संगठन साम्राज्यवादियों द्वारा खड़े किये गये तब से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध वैमनस्य की दीवार खड़ी हो गयी है।
समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।
फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।
यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।