म्यांमार में विनाशकारी भूकंप

म्यांमार की जनता विनाशकारी प्राकृतिक आपदा की शिकार बनी है। विनाश की छाया थाइलैण्ड तक पहुंची है। 28 मार्च को दो शक्तिशाली भूकंप के विनाश से म्यांमार अभी उभर भी नहीं पाया थ
म्यांमार की जनता विनाशकारी प्राकृतिक आपदा की शिकार बनी है। विनाश की छाया थाइलैण्ड तक पहुंची है। 28 मार्च को दो शक्तिशाली भूकंप के विनाश से म्यांमार अभी उभर भी नहीं पाया थ
बांग्लादेश शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से ही लगातार अशांत है। वहां नयी गठित अंतरिम सरकार में मौजूद भांति-भांति के तत्व देश को शांति की ओर नहीं बढ़ने दे रहे हैं। इस
बांग्लादेश में जन उभार द्वारा शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद से यह चर्चा होने लगी है कि भारत के पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ रही है। श्रीलंका और बांग्लाद
बांग्लादेश की सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक स्थिति इस बात को बार-बार रेखांकित कर रही है कि आम जनों, मजदूरों-मेहनतकशों, छात्र-युवाओं की बुनियादी समस्याओं का समाधान न तो शेख हसीना, न मोहम्मद यूनुस, न बेगम जिया के पास है। इसका समाधान उन्हें स्वयं करना होगा। पूंजीवादी निजाम का खात्मा और समाजवाद ही अंततः समाधान का रास्ता खोल सकता है।
इस चुहिया का नाम मोहम्मद यूनुस है। यह सज्जन बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार के मुखिया बने हैं। वे नई अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री नहीं बल्कि मुख्य सलाहकार हैं। नई सरकार के
भारत के पड़ोस में स्थित म्यांमार बीते कुछ समय से गृहयुद्ध का शिकार है। फरवरी 2021 में म्यांमार में सेना ने चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर यहां सैन्य शासन कायम कर लिया था। इ
चीन की मध्यस्थता में हुए साऊदी अरब और ईरान के बीच समझौते से अशांत पश्चिम एशिया में शांति की दिशा में प्रयास शुरू हो गये हैं। इन शांति प्रयासों से इस क्षेत्र में इजरायल काफी हद तक पश्चिम एशिया के शा
ट्रम्प के सामने चीनी साम्राज्यवादियों से मिलने वाली चुनौती से निपटना प्रमुख समस्या है। चीनी साम्राज्यवादियों और रूसी साम्राज्यवादियों का गठजोड़ अमरीकी साम्राज्यवाद के विश्व व्यापी प्रभुत्व को कमजोर करता है और चुनौती दे रहा है। इसलिए, हेनरी किसिंजर के प्रयोग का इस्तेमाल करने का प्रयास करते हुए ट्रम्प, रूस और चीन के बीच बने गठजोड़ को तोड़ना चाहते हैं। हेनरी किसिंजर ने 1971-72 में चीन के साथ सम्बन्धों को बहाल करके और चीन को सोवियत संघ के विरुद्ध खड़ा करने में भूमिका निभायी थी।
भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश है और उसकी अर्थव्यवस्था भी खासी बड़ी है। इसीलिए दुनिया के सारे छोटे-बड़े देश उसके साथ कोई न कोई संबंध रखना चाहेंगे। इसमें कोई गर्व की बात नहीं है। गर्व की बात तब होती जब उसकी कोई स्वतंत्र आवाज होती और दुनिया के समीकरणों को किसी हद तक प्रभावित कर रहा होता। सच्चाई यही है कि दुनिया भर में आज भारत की वह भी हैसियत नहीं है जो कभी गुट निरपेक्ष आंदोलन के जमाने में हुआ करती थी।
भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग में महिला एवं पुरुष मजदूर दोनों ही शामिल हैं लेकिन इस क्षेत्र में एक बड़ा हिस्सा महिला मजदूरों का बन जाता है। भारत में इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत श्रम शक्ति महिला मजदूरों की है। इतनी बड़ी मात्रा में महिला मजदूरों के लगे होने के चलते इस उद्योग को महिला प्रधान उद्योग के बतौर भी चिन्हित किया जाता है। कई बार पूंजीवादी बुद्धिजीवी व भारत सरकार महिलाओं की बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में कार्यरत होने के चलते इसे महिला सशक्तिकरण के बतौर भी प्रचारित करती है व अपनी पीठ खुद थपथपाती है।
भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।
आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।