फिलिस्तीनी जनता के समर्थन में अमेरिकी छात्र-छात्राओं का संघर्ष जिंदाबाद !
पिछले कई दिनों से अमेरिका में एक के बाद एक विश्वविद्यालयों में छात्रों के प्रदर्शन हो रहे हैं। लगभग 25 विश्वविद्यालय के छात्र अपने कैंपस में प्रदर्शन कर रहे हैं। यह प्रदर
पिछले कई दिनों से अमेरिका में एक के बाद एक विश्वविद्यालयों में छात्रों के प्रदर्शन हो रहे हैं। लगभग 25 विश्वविद्यालय के छात्र अपने कैंपस में प्रदर्शन कर रहे हैं। यह प्रदर
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) कोलंबिया विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ अपनी अटूट एकजुटता व्यक्त करता है जो साहसपूर्वक इजरायल के युद्ध और फिलिस्तीन क
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) कोलंबिया विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ अपनी अटूट एकजुटता व्यक्त करता है जो साहसपूर्वक इजरायल के युद्ध और फिलिस्तीन क
हम कोलंबिया में छात्र कार्यकर्ता हैं जो नरसंहार से मुक्ति की मांग कर रहे हैं।
दुनिया के कई क्षेत्रों में महाशक्तियों के बीच टकराव तीव्र से तीव्रतर होते जा रहा है। अमरीकी साम्राज्यवादी अभी भी सबसे ताकतवर बने हुए हैं। लेकिन उनके प्रभाव को जगह-जगह पर
रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के दो वर्ष से ज्यादा का समय बीत गया है। यह युद्ध लम्बा खिंचता जा रहा है। इस युद्ध के साथ ही दुनिया में और भी युद्ध क्षेत्र बनते जा रहे हैं। इजरायली यहूदी नस्लवादी सत्ता द्वारा गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार जारी है। इस नरसंहार के विरुद्ध फिलिस्तीनियों का प्रतिरोध युद्ध भी तेज से तेजतर होता जा रहा है।
अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति और आगामी चुनाव में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प के दामाद जेरेड कुशनर हैं। रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट
माईलाइ नरसंहार : अमेरिकी सैनिकों ने इन वियतनामी महिलाओं और बच्चों को एक साथ इकट्ठा किया फिर आग लगा कर मार डाला।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को